ब्रिटेन: किएर स्टार्मर के आने और ऋषि सुनक के जाने से भारत पर क्या असर होगा

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ब्रिटेन में 4 जुलाई को हुए आम चुनाव में कंज़र्वेटिव पार्टी को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद ऋषि सुनक की जगह किएर स्टार्मर ने प्रधानमंत्री पद संभाला है। अब सवाल यह उठता है कि इस बदलाव का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

कंज़र्वेटिव पार्टी की हार के कारण
कंज़र्वेटिव पार्टी की हार के पीछे कई कारण हैं। मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी की डॉक्टर नीलम रैना का मानना है कि एक के बाद एक आए घोटालों और कुप्रबंधन ने पार्टी की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया। कोविड-19 महामारी से निपटने में हुई गलतियों और लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन ने भी जनता का विश्वास खो दिया। बोरिस जॉनसन, लिज़ ट्रस, और फिर ऋषि सुनक की सरकारों ने भी स्थिति को सुधारने में सफलता नहीं पाई।

लेबर पार्टी की जीत और स्टार्मर की चुनौतियाँ
किएर स्टार्मर ने लेबर पार्टी को एक नई दिशा दी है। वीरेंद्र शर्मा, जो साउथॉल से लेबर पार्टी के सांसद रह चुके हैं, का मानना है कि स्टार्मर के नेतृत्व में भारत-ब्रिटेन के संबंधों में सुधार आएगा। लेकिन इस राह में कई चुनौतियाँ भी हैं।

कश्मीर मुद्दा
जब जर्मी कोर्बिन लेबर पार्टी के नेता थे, तब पार्टी ने कश्मीर को लेकर भारत-विरोधी प्रस्ताव पारित किया था। स्टार्मर ने इसे सुधारने का प्रयास किया है और वादा किया है कि वे भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाएंगे। हालांकि, लेबर पार्टी की मानवाधिकार नीति और पाकिस्तानी मूल के सांसदों का दबाव, इस राह में अड़चनें पैदा कर सकते हैं।

मुक्त व्यापार समझौता
स्टार्मर सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना होगा। संभावित विदेश मंत्री डेविड लैमी ने संकेत दिया है कि वे जल्द ही इस पर काम शुरू करेंगे। लेकिन प्रवासियों के वर्क परमिट जैसे मुद्दे इस समझौते में रोड़ा बन सकते हैं।

भारत-ब्रिटेन के भविष्य के संबंध
चैटम हाउस के डॉक्टर क्षितिज वाजपेयी का मानना है कि स्टार्मर के नेतृत्व में भारत-ब्रिटेन के संबंधों में उच्च स्तर की निरंतरता देखने को मिलेगी। हालांकि, उन्होंने यह भी आगाह किया है कि कई मुद्दे, जैसे मानवाधिकार, दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट ला सकते हैं।

निष्कर्ष
किएर स्टार्मर के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत-ब्रिटेन के संबंधों में सुधार की संभावना है, लेकिन इसके लिए उन्हें संतुलन बनाना होगा। लेबर पार्टी की पारंपरिक विदेश नीति, मानवाधिकार मुद्दे, और पाकिस्तानी मूल के सांसदों का दबाव, इस राह में अड़चनें पैदा कर सकते हैं। यदि स्टार्मर इन चुनौतियों को संभालने में सफल रहते हैं, तो दोनों देशों के बीच संबंध नए आयाम छू सकते हैं।

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