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जयपुर का नेशनल आयुर्वेदिक संस्थान विश्वस्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। वर्तमान में इस संस्थान में 16 देशों के करीब 150 छात्र आयुर्वेद की पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, इरान, इराक, फ्रांस, वेस्टइंडीज, जापान, सऊदी अरब, ब्रिटेन, युगोस्लाविया जैसे देश शामिल हैं।
जयपुर का नेशनल आयुर्वेदिक संस्थान विश्वस्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। वर्तमान में इस संस्थान में 16 देशों के करीब 150 छात्र आयुर्वेद की पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, इरान, इराक, फ्रांस, वेस्टइंडीज, जापान, सऊदी अरब, ब्रिटेन, युगोस्लाविया जैसे देश शामिल हैं।
कोविड के बाद विश्वस्तर पर आयुर्वेद का प्रसार बढ़ा है। 13 नवंबर 2020 को प्रधान मंत्री मोदी ने जयपुर के इस नेशनल आयुर्वेदिक संस्थान को डीम्ड विश्वविद्यालय में शामिल कर दिया है।
केवल जयपुर शहर में ही एनआईए के द्वारा अनेक तरह के कोर्सेज और संस्थान संचालित हैं इनमें बॉम्बे वाला आयुर्वेदिक अस्पताल इसमें भी OPD और IPD की व्यवस्था है।
जवाहर नगर में सैटेलाइट क्लिनिक, जमवारामगढ़ में सैटेलाइट क्लिनिक, और एक पंचकुला में 250 बैड का अस्पातल साथ ही विश्वविद्यालय भी बनाया जा रहा है, यहा चिकित्सा व्यवस्था के साथ-साथ स्नातक और स्नात्कोत्तर की पढ़ाई कराई जाएगी। ये सब NIA के द्वारा ही किया जा रहा है।
यहां पढ़ाई करने के बाद छात्र अपना करियर बना सके इसकी भी पुख्ता व्यवस्था करता है यह संस्थान और हर स्तर पर उनके बेहतर भविष्य के लिए काम करता है।
यही नहीं नेशनल आयुर्वेदिक संस्थान के अंदर स्नातक, स्नात्तकोत्तर, पी.एचडी और तमाम तरह के शॉर्ट टर्म कोर्सेस के अलावा एक मल्टीस्पेशलिस्टी हॉस्पिटल भी है
जिसमें 280 बेड की व्यवस्था है, दूर-दूर से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं इनमें ज्यादातर विदेशी लोग हैं, जब हमने उनसे जानने की कोशिश की वो अपने देश की बेहतर मेडिकल सेवाएं छोड़कर इड़िया इलाज के लिए क्यों आते हैं और वो भी आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट।
तो जवाब मिला- आयुर्वेद विश्व को भारत की ही देन है, हमें यहां आकर पता चला भारत के लोग पता नहीं क्यों इस ज्ञान को तव्वजो नहीं देते।
और इस जवाब के साथ वो मुझे यहां मिले इलाज से काफी संतुष्ट लगे। इसी तरह आगे हमारी मुलाकात यहां पढ़ रहे कुछ विदेशी छात्रों से हुई।
पसवीना और अनाहीता अफगानिस्तान से हैं, वहीं फातिमा इरान से हैं और इरान में पहली आयुर्वेदिक डॉक्टर भी हैं जो फातिमा के लिए काफी गर्व का विषय है,
जिस तरह उन्होंने हमें बताया। फातिमा ने आयुर्वेद में पीएचडी किया है और अब इसी संस्थान में प्रैक्टिस कर रही हैं। इसके अलावा अविनेश नरीन वेस्टइंडीज से हैं और यहां पीएचडी कर रहे हैं।
फातिमा आयुर्वेद को न सिर्फ करियर बल्कि इसे सामाजिक सेवा के रूप में देखती हैं, वहीं अनाहीता और पसवीना की भी यही सोच हैं ये दोनों छात्राएं ऐसे मुल्क से आती हैं जहां लड़कियों का पढ़ना बैन है
फिर भी इन्होंने आयुर्वेद को करियर के रुप में चुनकर हिम्मत दिखाई है। वहीं अविनेश नरीन भी अपने देश वेस्ट इंडीज जाकर आयुर्वेद का प्रचार प्रसार में अपना जीवन बिताना चाहते हैं। वो कहते हैं आयुर्वेद सिर्फ एक करियर नहीं हैं बल्कि यह तो जीवन जीने की कला है आयु+ वैद्द
मतलब जीवन का रहस्य, जो हमें सिर्फ आयुर्वेद से ही मिल सकता है। ये कहना था इन छात्रों का (सुनिए उनसे बातचीत के कुछ अंश ????)
इसके अलाका हमारी मुलाकात नेशनल आयुर्वेदिक संस्थान के कुलपति संजीव शर्मा से भी बात हुई। उन्होंने हमें आयुर्वेद में करियर, छात्रों के लिए स्कोप, सुविधाएं आदि से संबंधित विषयों पर खुलकर चर्चा की। (देखें ये वीडियो)