Highlights
पायलट अगर अलग पार्टी बनाते हैं , तो कितना असर होगा ? इसी डर के बीच सीएम अशोक गहलोत के संकट मोचक कहे जाने वाली शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ की टीम संभावित डेमेज कंट्रोल को लेकर कवायद में जुट गयी है। वहीं सूत्र बताते हैं कि पार्टी के प्रभारी महासचिव सुखजिंदर सिंह रंधावा भी "वार रूम " में बैठकर पायलट की वजह से होने वाले नुकसान का आकलन कर रहे हैं।
दिल्ली में पायलट बड़ी रैली करते हैं तो दिल्ली ही नहीं ,हरियाणा ,पश्चिम उत्तरप्रदेश और राजस्थान से भी उनके समर्थकों की इतनी जबरदस्त भीड़ जुटेगी कि कांग्रेस लम्बे समय तक चैन की नींद भी नहीं ले पायेगी।
कहने को राजस्थान कांग्रेस में सब कुछ सामान्य है। सीएम अशोक गहलोत और पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच समझौते का फार्मूला निकालने का दावा भी कांग्रेस का दिल्ली दरबार कर रहा है।
सचिन पायलट ने भी कांग्रेस में बने रहने और पार्टी को मजबूत बनाने के दावे भी किये हैं लेकिन अंदर ही अंदर एक डर ,कांग्रेस को सताये ,या यूँ कहें, खाये जा रहा है। पायलट अगर अलग पार्टी बनाते हैं ,तो कितना असर होगा ?
इसी डर के बीच सीएम अशोक गहलोत के संकट मोचक कहे जाने वाली शांति धारीवाल ,महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ की टीम संभावित डेमेज कंट्रोल को लेकर कवायद में जुट गयी है। वहीं सूत्र बताते हैं कि पार्टी के प्रभारी महासचिव सुखजिंदर सिंह रंधावा भी "वार रूम " में बैठकर पायलट की वजह से होने वाले नुकसान का आकलन कर रहे हैं।
रंधावा के फीडबैक के आधार पर गहलोत के "त्रिदेव"-शांति धारीवाल ,महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़,पायलट खेमे के हर नेता को टटोल रहे हैं और उनको सीधे सीएम से मिलवाने के उपक्रम में जुटे हुए हैं।
गहलोत सरकार के ही एक मंत्री "थिंक 360 " से बातचीत में मानते हैं कि पायलट के लिए कांग्रेस में ज्यादा संभावनाएं बची नहीं है। पायलट फेस सेविंग के साथ अपना हक़ सुनश्चित करना चाहते हैं ,वहीं गहलोत महाभारत की तर्ज पर सुई की नोक टिकाने जितनी जगह देने को भी तैयार नहीं।
इन मंत्रीजी की मानें तो गहलोत बहले ही मुस्कुरा कर समझौते की बातें कर रहे हों, सच यही है कि पायलट उन्हें किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं।
कांग्रेस पायलट के संभावित कदम को लेकर चौकन्नी है। लेकिन पायलट पार्टी में ससम्मान बने रहें ,यह सुनिश्चित करने की स्थिति में भी नहीं। लिहाजा ,सबकी निगाह कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे राजेश पायलट की स्मृति में उनकी पुण्य तिथि पर दौसा में होने वाले कार्यक्रम पर सबकी निगाह टिकी है।
ख़ुफ़िया सूत्रों ने भी प्रगतिशील कांग्रेस या राजस्थान जन संघर्ष समिति जैसे नामों के साथ पायलट की भावी रणनीति पर सत्ता के गलियारों तक अपनी रिपोर्ट पेश की है। यानीं ,जल्द ही पायलट के किसी बड़े कदम की और इशारा किया है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या पायलट ग्यारह जून को ही कुछ बड़ा एलान करेंगे ? सरकार तक पहुँच रही सूचनाएं तो इसी और इशारा कर रही है। लेकिन सचिन पायलट के प्रति सम्मान और सहानुभूति रखने वाले गहलोत खेमे के ही एक मंत्री के मुताबिक वह इतना जल्दी कोई फैसला करेंगे, ऐसा लगता नहीं।
वजह -पायलट अपने पिता की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में भावुकता के साथ ऐसा ऐलान करेंगे ,यह सम्भव नहीं। तो फिर क्या होगा ? "थिंक 360" के इस सवाल का जवाब भी मंत्रीजी कुछ यूँ देते हैं -पायलट परिवार के प्रति लोगों का सम्मान राजस्थान तक ही सीमित नहीं। गुजरात से जम्मू कश्मीर तक इस परिवार का बड़ा प्रभाव है।
पायलट अगर कोई बड़ा फैसला लेंगे (जिसको ;लेकर कोई भी दवा सम्भ्याव नहीं ) तो उसका ऐलान दौसा में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह के भावुक अवसर पर नहीं ,दिल्ली में पूरे राजनितिक अंदाज में संभव है।
वह कहते हैं -दिल्ली में पायलट बड़ी रैली करते हैं तो दिल्ली ही नहीं ,हरियाणा ,पश्चिम उत्तरप्रदेश और राजस्थान से भी उनके समर्थकों की इतनी जबरदस्त भीड़ जुटेगी कि कांग्रेस लम्बे समय तक चैन की नींद भी नहीं ले पायेगी। मंत्री इसे अपना आकलन करार देते हैं। लेकिन लगता यही है। पायलट पहली बात तो कांग्रेस में बने रहेंगे।
अगर बाहर की राह पकड़ी तो एलान दौसा में नहीं ,दिल्ली में होगा। और, उस मंच पर कांग्रेस से निकल अपना -अपना वजूद साबित करने वाले शरद पवार,ममता बनर्जी और जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता भी हों तो आश्चर्य नहीं। जाहिर है ,कांग्रेस इन सभी संभावनाओं को देखते हुए पायलट को नहीं ,पायलट के समर्थकों को साध रही है।