नीलू की कलम से: सियाळो

सियाळो
सियाळो
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Highlights

सर्दी के मारे घोड़ा बिल में घुस गया होगा

राजसी घोड़ा जबरा है और बटाऊ भोला

दिखाओ तो आखिर घोड़ा और खांडा होते कैसे हैं

आखिर लगाम पकड़कर 'धर कूंचां धर मंजलां' चलने लगा

एक बार किसी भोले आदमी की चाकरी से प्रसन्न हो कर ठिकाणे ठाकर ने उसे घोड़ा और खांडा बक्शीश में दिया। आम आदमी को भारत रत्न मिल जाए तो 'छंट' रहता है?

कड़ाके की रात, घरबार ठिकाने से तनिक दूर और मोट्यार घर पहुंचने को उतावळा। तिस पर घोड़े पर बैठना न जाने। आखिर लगाम पकड़कर 'धर कूंचां धर मंजलां' चलने लगा।

शरीर ठंड में ठिठुरकर ठूंठा हुआ जा रहा था। हाथों पैरों में टूंटे जमने लगे। रात के रास्ते ने रड़क निकाल दी। किसी गांव के गुवाड़ से जलती अंगीठी की लपटें दिखी तो सोचा थोड़ा तप लें।

घोड़े को रास्ते में ही खांडा रोप कर उससे बांध दिया और जाकर तपने लगा। गांव वालों ने अनजान आदमी से पूछा- "बटाऊ! सिंह की दाढ़ों जैसी ठंड में घर से क्योंकर निकले? कहां से आए और कहां जाओगे? "

"ठिकाणे से आया हूं, घर तो अब जाऊंगा। ठाकर सा ने घोड़ा बक्शीशा है,लुगाई टाबरों को दिखाए बिना रहा न गया सो चल पड़ा।"

आग तापते एक ठग ने यह बात सुनी और सुनते ही घोड़े के पास पहुंच गया। देखा- राजसी घोड़ा जबरा है और बटाऊ भोला।

आस-पास नजर दौड़ाइ तो ऊंदरे का बिल दिखा। घोड़े की पूंछ के कुछ बाल काटकर बिल में रख दिए और खांडे की जगह दांतळी रखकर थूंक मुट्ठी में भागा।

बटाऊ तप-तपाकर लौटा तो देखता है कि न खांडा न घोड़ा। हां,बिल में घोड़े की पूंछ जरूर दिख रही है। सोचा सर्दी के मारे घोड़ा बिल में घुस गया होगा।

"कोई बात नहीं भाई! इतनी देर तू भी निवाया हो लिया। चल अब बाहर आ जा!"

बाल पकड़कर खींचे कि सारे बाल हाथ में। ओहोहो! गजब हो गया!! घोड़ा तो पताल में पहुंच गया। चलो खांडा ही सही,वही दिखाएंगे घरवाली को लेकिन यह क्या? सर्दी के प्रकोप से खांडा भी पिघल गया! आखिर दांतळी लेकर घर पहुंचा। लुगाई टाबर सोए न थे,दौड़कर बाहर आए।

"दिखाओ तो आखिर घोड़ा और खांडा होते कैसे हैं?"

भोला जीव दांतळी सामने रखता हुआ बोला-

सी पड्या जी सी पड्या, सी पड्या अकारां।
घोड़ा गिया पताळ मं' र, खांडा भया कटारां ।।

- नीलू शेखावत

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