World: इथियोपिया में 12 हजार साल बाद ज्वालामुखी फटा, दिल्ली तक राख

इथियोपिया (Ethiopia) का हेली गुब्बी ज्वालामुखी (Heli Gubbi volcano) 12 हजार साल बाद फटा, जिससे 15 किमी ऊंचा राख का गुबार उठा। यह राख लाल सागर (Red Sea) पार कर 4300 किमी दूर दिल्ली (Delhi) तक पहुंची, जिससे कई उड़ानें रद्द हुईं।

इथियोपिया में 12 हजार साल बाद ज्वालामुखी फटा

अदीस अबाबा: इथियोपिया (Ethiopia) का हेली गुब्बी ज्वालामुखी (Heli Gubbi volcano) 12 हजार साल बाद फटा, जिससे 15 किमी ऊंचा राख का गुबार उठा। यह राख लाल सागर (Red Sea) पार कर 4300 किमी दूर दिल्ली (Delhi) तक पहुंची, जिससे कई उड़ानें रद्द हुईं।

इथियोपिया में 12 हजार साल बाद ज्वालामुखी विस्फोट

इथियोपिया का हेली गुब्बी ज्वालामुखी, जो लगभग 12 हजार सालों से शांत था, रविवार को अचानक फट गया। इस भीषण विस्फोट से राख और सल्फर डाइऑक्साइड का एक विशाल गुबार लगभग 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया। यह गुबार हवा के साथ उड़कर लाल सागर को पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गया, जिससे इन क्षेत्रों में भी इसका असर देखा गया।

सोमवार रात लगभग 11 बजे, यह ज्वालामुखी राख इथियोपिया से करीब 4300 किलोमीटर दूर भारत की राजधानी दिल्ली के आसमान पर भी छा गई। इंडिया मेट स्काई वेदर अलर्ट के अनुसार, राख का यह गुबार जोधपुर-जैसलमेर की ओर से भारतीय सीमा में प्रवेश कर चुका है और अब उत्तर-पूर्व दिशा की ओर बढ़ रहा है।

भारत के कई राज्यों में दिखा असर, उड़ानें रद्द

यह राख का बादल अब राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के ऊपर फैल चुका है। इसका एक हिस्सा गुजरात को भी छू सकता है, जिससे वहां भी हल्का असर देखने को मिल सकता है। रात में पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों और हिमाचल प्रदेश पर भी इसके प्रभाव की आशंका जताई गई है। इस अप्रत्याशित घटना के कारण कई एयरलाइंस ने अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं, जिससे यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि राख का यह गुबार इतनी अधिक ऊंचाई पर है कि आम लोगों के दैनिक जीवन पर इसका बहुत कम असर पड़ेगा। फिर भी, हल्की मात्रा में राख गिरने की संभावना बनी हुई है। मंगलवार सुबह सूर्योदय के समय आसमान थोड़ा असामान्य और रंग-बिरंगा दिखाई दे सकता है, जो इस ज्वालामुखी राख के प्रभाव का संकेत होगा।

हेली गुब्बी ज्वालामुखी विस्फोट की तस्वीरें और प्रभाव

ज्वालामुखी से निकली राख आसमान में कई किलोमीटर तक फैल गई है। इस विशाल गुबार के कारण कई अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करना पड़ा है या उनके मार्ग बदलने पड़े हैं। VAAC (Volcanic Ash Advisory Center) के सैटेलाइट आकलन से पता चला है कि राख के बादल पूर्व में लाल सागर पार कर यमन और ओमान तक पहुंच चुके हैं।

फिलहाल ज्वालामुखी शांत हो गया है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि शील्ड ज्वालामुखियों में शुरुआती विस्फोट के बाद कभी-कभी दोबारा धमाके भी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों को यह पता लगाने के लिए कि वहां क्या हो रहा है, सैटेलाइट तस्वीरों और रिमोट सेंसिंग तकनीक पर ही भरोसा करना पड़ रहा है।

घटना में कोई हताहत नहीं, सावधानी बरतने की सलाह

यह विस्फोट अफार इलाके में हेली गुब्बी ज्वालामुखी में हुआ, जो इतना पुराना और शांत था कि आज तक इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं था। राहत की बात यह है कि इस घटना में अब तक किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। हालांकि, यमन और ओमान की सरकारों ने अपने नागरिकों को सावधानी बरतने की सलाह दी है, विशेषकर उन लोगों को जिन्हें सांस संबंधी समस्याएं हैं।

आसमान में फैली राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है। राख के कण विमान के इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए इंटरनेशनल एविएशन प्रोटोकॉल के तहत अत्यधिक सतर्कता बरती जा रही है। दिल्ली-जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर विशेष नजर रखी जा रही है।

डीजीसीए ने जारी किए दिशानिर्देश, हवाई यात्रा पर असर

भारत के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एयरलाइनों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। डीजीसीए ने स्पष्ट किया है कि भारत के ऊपर मौजूद राख बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए फिलहाल टेकऑफ और लैंडिंग पर कोई बड़ा खतरा नहीं माना जा रहा है।

डीजीसीए ने एयरलाइंस को निर्देश दिया है कि यदि किसी विमान को राख के संपर्क में आने का जरा भी संदेह हो, जैसे इंजन के प्रदर्शन में गड़बड़ी, केबिन में धुआं या असामान्य गंध, तो एयरलाइन को इसकी जानकारी तुरंत देनी होगी। यदि राख हवाई अड्डे के संचालन को प्रभावित करती है, तो संबंधित हवाई अड्डे को रनवे, टैक्सीवे और एप्रन की तुरंत जांच करनी होगी।

डीजीसीए ने सभी एयरलाइंस और हवाई अड्डों को सावधानी बरतने की चेतावनी दी है। ज्वालामुखी की राख के कारण अकासा एयर, इंडिगो और KLM जैसी एयरलाइंस ने कई उड़ानें रद्द की हैं।

डीजीसीए के प्रमुख दिशानिर्देश इस प्रकार हैं:

  • एयरलाइंस राख वाले इलाकों के ऊपर उड़ान न भरें।
  • उड़ान का रूट और प्लानिंग बदलें।
  • अगर किसी विमान को राख मिले तो तुरंत रिपोर्ट करें।

फ्लाइट ट्रैकर से ली गई तस्वीरों में देखा जा सकता है कि खतरे वाले लाल और नारंगी क्षेत्रों से बचने के लिए कई उड़ानों ने अपना रास्ता बदल दिया है या उन्हें रद्द कर दिया गया है।

कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के मार्ग बदले

मुंबई हवाई अड्डे ने यात्रियों से अपील की है कि वे हवाई अड्डे आने से पहले अपनी उड़ानों की जानकारी जरूर जांच लें, क्योंकि कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के मार्ग में बदलाव हो सकता है।

  • अकासा एयर ने बताया कि 24 और 25 नवंबर की जेद्दा, कुवैत और अबू धाबी की उड़ानें रद्द कर दी गई हैं।
  • इंडिगो ने कहा कि वे स्थिति पर लगातार नजर रख रहे हैं और यात्रियों की सुरक्षा उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
  • एयर इंडिया ने बताया कि उनकी उड़ानों पर फिलहाल ज्यादा असर नहीं है, लेकिन वे सतर्क हैं।
  • KLM ने भी एम्स्टर्डम से दिल्ली की अपनी उड़ान रद्द कर दी है।

वैज्ञानिक महत्व और भविष्य की आशंकाएं

वैज्ञानिकों ने हजारों साल बाद ज्वालामुखी फटने की इस घटना को इस क्षेत्र के भूवैज्ञानिक इतिहास की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक बताया है। गल्फ न्यूज के अनुसार, विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) भी निकली है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित असर को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

एमिरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन इब्राहिम अल जरवान ने कहा कि यदि ज्वालामुखी अचानक बड़ी मात्रा में SO₂ छोड़ रहा है, तो यह दर्शाता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है, मैग्मा हिल रहा है और आगे और विस्फोट हो सकते हैं। अल जरवान ने यह भी कहा कि यह घटना वैज्ञानिकों के लिए एक दुर्लभ अवसर है, जिसमें वे एक ऐसे ज्वालामुखी को करीब से समझ सकते हैं, जो बहुत लंबे समय बाद सक्रिय हुआ है।

टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने का संकेत

हेली गुब्बी, अफार रिफ्ट का हिस्सा है। यह एक ऐसा इलाका है जहां धरती की टेक्टॉनिक प्लेटें लगातार खिसक रही हैं। इस क्षेत्र के अन्य ज्वालामुखी, जैसे एर्टा एले, को पहले से ही लगातार मॉनिटर किया जाता है। ऐसे में हेली गुब्बी की अचानक सक्रियता इस बात पर सवाल उठाती है कि धरती के भीतर मैग्मा में कौन से गहरे बदलाव हो रहे हैं।

यह घटना अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली और सीमा पार जारी होने वाली राख संबंधी चेतावनियों के महत्व को भी सामने लाती है। ज्वालामुखी की राख हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती है, इसलिए कई देशों की एजेंसियां मिलकर इसकी ट्रैकिंग कर रही हैं। शोधकर्ता अब हेली गुब्बी को भविष्य के अध्ययन के एक प्रमुख स्थल के रूप में देख रहे हैं। वे यह समझने की कोशिश करेंगे कि हजारों साल शांत रहने के बाद यह ज्वालामुखी अब क्यों सक्रिय हुआ। इस तरह के अध्ययन टेक्टॉनिक रिफ्ट वाले इलाकों में स्थित शील्ड ज्वालामुखियों के व्यवहार के बारे में नए संकेत दे सकते हैं। वैज्ञानिक जब ऐसे दुर्लभ विस्फोटों का अध्ययन करेंगे, तो उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि उन ज्वालामुखियों का व्यवहार कैसा होता है जो टेक्टॉनिक रिफ्ट (जहां धरती की प्लेटें अलग हो रही होती हैं) वाले इलाकों में मौजूद हैं।