Sirohi, Rajasthan: अवैध पॉक्सो जांच पर कोर्ट का कड़ा रुख, एसपी से मांगा जवाब
पॉक्सो कोर्ट (POCSO Court) के विशिष्ट न्यायाधीश ने मंडार थाने (Mandar Police Station) में दर्ज पॉक्सो केस 147/2025 में अवैध अनुसंधान पर सख्ती दिखाई है। मामले में सहायक उप-निरीक्षक (Assistant Sub-Inspector) द्वारा जांच कराने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई, क्योंकि पॉक्सो जांच का अधिकार सिर्फ उप-निरीक्षक (Sub-Inspector) या उससे ऊपर के अधिकारी को है। कोर्ट ने एसपी (Superintendent of Police) से 7 दिन में विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है।
सिरोही:पॉक्सो कोर्ट (POCSO Court) के विशिष्ट न्यायाधीश ने मंडार थाने (Mandar Police Station) में दर्ज पॉक्सो केस 147/2025 में अवैध अनुसंधान पर सख्ती दिखाई है। मामले में सहायक उप-निरीक्षक (Assistant Sub-Inspector) द्वारा जांच कराने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई, क्योंकि पॉक्सो जांच का अधिकार सिर्फ उप-निरीक्षक (Sub-Inspector) या उससे ऊपर के अधिकारी को है। कोर्ट ने एसपी (Superintendent of Police) से 7 दिन में विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है।
अवैध अनुसंधान पर कोर्ट का कड़ा रुख
पॉक्सो कोर्ट के विशिष्ट न्यायाधीश ने मंडार थाने में दर्ज पॉक्सो केस 147/2025 के अवैध अनुसंधान पर गंभीर सख्ती दिखाई है। इस मामले में बड़ी चूक उजागर हुई है, जिसमें एक सहायक उप-निरीक्षक (ASI) से पॉक्सो मामले का अनुसंधान करवाया गया था।
न्यायालय ने इस पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की, क्योंकि कानूनन एक ASI को पॉक्सो मामलों की जांच का अधिकार नहीं है। इसे सीधे तौर पर कानून का उल्लंघन माना गया है।
महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाने का आरोप
कोर्ट ने पाया कि पीड़िता नाबालिग थी, फिर भी ASI ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया। धारा 180 BNSS में दिए गए पीड़िता के बयानों से यह स्पष्ट हो चुका था कि पीड़िता नाबालिग है और उसके साथ दुष्कर्म हुआ है।
इसके बावजूद, धारा 183 BNSS के बयानों हेतु तथ्यों को छुपाकर मजिस्ट्रेट नियुक्त करवाया गया। यह कृत्य जेजे एक्ट और 137(2) BNS धाराओं का उल्लंघन है।
एसपी और डीएसपी की निरीक्षण में चूक
कोर्ट ने टिप्पणी की कि इस अवैध अनुसंधान में एसपी और डीएसपी की निरीक्षण और पर्यवेक्षण में बड़ी चूक हुई है। कानूनी निर्देशों की अवहेलना पर न्यायालय ने गहरी चिंता जताई है।
न्यायालय ने एसपी से 7 दिन के भीतर विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही, रेवदर वृताधिकारी और ASI पर की गई कार्रवाई का ब्योरा भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि ब्योरा नहीं दिया गया, तो इसे एसपी की इस अवैध अनुसंधान में मौन स्वीकृति माना जाएगा। अवैध कृत्यों में संलिप्तता के संकेत पर कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए एसपी पर भी कार्रवाई की चेतावनी दी है।
पॉक्सो एक्ट में जांच का अधिकार किसे?
पॉक्सो एक्ट के तहत जांच के लिए कुछ विशिष्ट नियम और पात्रता मानदंड निर्धारित किए गए हैं, जिनका पालन अनिवार्य है।
उप-निरीक्षक (SI) या उससे ऊपर का अधिकारी
पॉक्सो एक्ट की धारा 19(1) और CrPC के प्रावधानों के अनुसार, पॉक्सो मामलों की जांच सिर्फ सब-इंस्पेक्टर (SI) रैंक या उससे ऊपर के पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। सहायक उप-निरीक्षक (ASI) या उससे नीचे के अधिकारी इन मामलों की जांच नहीं कर सकते।
अधिमानतः महिला अधिकारी
कानून यह भी कहता है कि जहां संभव हो, जांच एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। इससे पीड़ित बच्चे को सुरक्षित और संवेदनशील वातावरण मिलता है, जिससे वह अपनी बात खुलकर रख पाता है।
विशेष किशोर पुलिस इकाई (SJPU) को प्राथमिकता
पॉक्सो एक्ट में यह भी प्रावधान है कि यदि उपलब्ध हो, तो स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट (SJPU) के प्रशिक्षित अधिकारी ही जांच करें। इन इकाइयों के अधिकारियों को बच्चों से जुड़े मामलों में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
सिरोही पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल
कोर्ट के इस सख्त रुख ने सिरोही पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पॉक्सो जैसे संवेदनशील मामले में इस तरह की लापरवाही सिस्टम पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है।