Supreme Court on anti-conversion law: SC ने राजस्थान धर्मांतरण कानून के संपत्ति प्रावधानों पर उठाए सवाल

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राजस्थान (Rajasthan) के धर्मांतरण विरोधी कानून के कुछ प्रावधानों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है, जो कथित अपराधियों की संपत्ति जब्त करने और ध्वस्त करने की अनुमति देते हैं।

Supreme Court on anti-conversion law

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राजस्थान (Rajasthan) के धर्मांतरण विरोधी कानून के कुछ प्रावधानों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है, जो कथित अपराधियों की संपत्ति जब्त करने करने और ध्वस्त करने की अनुमति देते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान धर्मांतरण विरोधी कानून के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है।

इन प्रावधानों में कथित अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करने और ध्वस्त करने का अधिकार राज्य को दिया गया है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि ये प्रावधान बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के संपत्ति को ध्वस्त करने और जब्त करने की अनुमति देते हैं, जो उच्चतम न्यायालय के पहले के निर्णयों का उल्लंघन है।

यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करता है।

कानून के प्रावधानों पर आपत्ति

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप गुप्ता की पीठ ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) द्वारा दायर याचिका पर राज्य को नोटिस जारी किया।

यह याचिका राजस्थान गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2025 की धारा 5(6), 10(3), 12 और 13 की संवैधानिकता को चुनौती देती है।

इन धाराओं में कथित अवैध धर्मांतरण के लिए गंभीर दंड का प्रावधान है, जिसमें संपत्तियों की जब्ती, अधिग्रहण और विध्वंस शामिल है।

पीठ ने मुख्य याचिका और कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग वाली याचिका दोनों पर नोटिस जारी किया।

न्यायपालिका पर सीधा हमला

जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि ये प्रावधान न्यायपालिका पर सीधा हमला हैं।

यह शीर्ष अदालत के 2024 के ऐतिहासिक फैसले का विधायी उल्लंघन है।

उस फैसले में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया था कि दोषी ठहराए बिना कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती।

याचिका में कहा गया है कि राजस्थान धर्मांतरण कानून जिला मजिस्ट्रेट या एक राजपत्रित अधिकारी को सारांश पूछताछ के माध्यम से संपत्तियों की जब्ती या विध्वंस का आदेश देने की अनुमति देता है।

यह न्यायिक प्रक्रिया को मनमाने कार्यकारी विवेक से प्रतिस्थापित करता है।

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि अधिनियम की धारा 5(6) निर्दोष मालिकों की संपत्तियों को “सहमति के साथ या बिना” जब्त करने की अनुमति देती है।

यह सामूहिक दंड और पूर्ण परोक्ष दायित्व के एक रूप को संस्थागत बनाता है।

पूर्व के निर्णयों का उल्लंघन

याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि कानून शीर्ष अदालत के उस फैसले का उल्लंघन करता है।

उस फैसले में बिना उचित नोटिस और बचाव का समय दिए संपत्तियों को ध्वस्त करने पर रोक लगाई गई थी।

यह कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेषकर संपत्ति के अधिकार और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन करता है।

उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से इन गंभीर आपत्तियों पर अपना पक्ष रखने को कहा है।

इस मामले पर अगली सुनवाई में और अधिक स्पष्टता आने की उम्मीद है।