कोयले की कहानी: कोयला कैसे निकाला जाता है और वह पावर प्लांट तक कैसे पहुंचता है?
देश में कोयले के खनन का इतिहास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के समय का है। जब 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे पर रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया। रानीगंज कोलफील्ड मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले में स्थित भारत की सबसे पुरानी कोयला खदान है।
कोयले की कहानी- आइए जानते हैं, भारत में कितनी खदानें हैं और वहां किस तरह से कोयला निकाला जाता है। ये जानने वाली बात इसलिए भी है कि कुछ समय पहले बिजली की खपत और देश में कोयले की कमी को लेकर अलर्ट जारी हो चुका है तब देश में कोयले की किल्लत का मुद्दा उठा था-
फोटो सोर्स- गूगल
कोयला उत्पादन में विश्व में दूसरे नंबर पर है भारत
आज भारत कोयले के उत्पादन और खपत के मामल में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। भारत 70 फ़ीसदी से अधिक अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का कोयला संचालित संयंत्रों से ही हासिल करता है। 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन, सरकारी कंपनियां ही करती हैं।
सबसे अधिक कोयले का आयात भारत में इंडोनेशिया से किया जाता है। मालूम हो, भारत के तटीय इलाकों में स्थित कोयला प्लांट खरीद के कोयले से ही संचालित होते हैं। और इन प्लांटों की कुल क्षमता 16.2 गिगावॉट है।
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आपको बतादें, तेलंगानी की सिंगरेनी खदानों में हर साल 65 लाख मिट्रिक टन कोयला निकलता है और इस जगह से हर साल 1000 करोड़ रुपए का मुनाफा बनता है। सिंगरेनी खदानों में 44000 कर्मचारी काम करते हैं। गोदावरी घाटी में पड़ने वाली सिंगरेनी खदानों का तेलंगाना की सामाजिक, सांस्कृति और आर्थिक जिंदगी पर गहरा असर दिखता है।
यहां विस्फोटक के माध्यम से कोयला निकाला जाता है, भारत में कुल बिजली उत्पादन का 64 फीसदी हिस्सा कोयले से आता है।
अमेरिकन वेब सीरीज कोल वैली में दिखाया गया है कि कोल वैली के सारे मर्द कोयला खदानों में काम करते हैं कोयला खदानों से निकलने वाली हानिकारक गैस तो कई बार खदान में दबने के कारण वहां के लगभग सभी मर्द अपनी जान गंवा बैठेते हैं।
हाई टैक्निक से होता है सिंगरेनी खदानों में काम
हालांकि भारत में सिंगरेनी की खदानों में हाई टैक्निक से कोयला निकाला जाता है, कोयला कई परतों में दबा होता है, 3 परतों में कोयला होता है तो 1 परत पत्थर की होती है यहां की कई खदानों में एलिवेटर के जरिए तो कईयों में रोप-वे के जरिए जाया जाता है। उसके बाद सही जगह देखकर विस्फोटक लगाया जाता है।
वहां के कर्मचारियों का कहना है कि हम औजार से खदान की छत की पड़ताल करते हैं और विस्फोट वाली जगह जाने से पहले जाँच-पड़ताल कर लेते हैं। इसलिए हम आवाज से पता कर लेते हैं कि वह जगह सुरक्षित है या नहीं. हमें इसका अनुभव होता है इसके बाद हम पैकिंग करते हैं। उसके बाद हम उन्हें सतर्क रहने और बाहर जाने की सूचना देते हैं। जब सभी लोग हमारी बात सुन लेते हैं तब हम धमाके करते हैं।
हम धमाका करने के 10 मिनट बाद तक इंतजार करते हैं ताकि वहां कोई धुंआ न रहे। विस्फोट के बाद मशीन वो कोयला उठाती है जो वहां इकट्ठा हो चुका होता है। इसके लिए अलग-अलग तरह के उपकरण इस्तेमाल होते हैं जैसे साइड डिस्चार्ज लोडर, कंटीन्यूअस माइनर लॉंग वर्क टेक्नोलॉजी और बहुत सारी चीजें।
वो आगे कहते हैं, कि हम मेकेनिकल तरीके से 20 मीटर की दूरी से कोयले को हटाते हैं। हर मिनट 10 टन कोयला काट लिया जाता है। कोयला निकालने के बाद इसे कन्वेयर बिल्ट या बिन कंटेनर ट्रेन के जरिए मैदानों तक पहुँचाया जाता है। यहां से इसे ट्रकों में लोड करके रेलगाड़ियों तक पहुँचाया जाता है, बाद में रेलगाड़ियों के जरिए इसे पावर प्लांट तक पहुँचाया जाता है।
जब कोयले को गाँव जितने बड़े बड़े गड्डों से निकाला जाता है तो इसे ऑपन कास्ट माइनिंग कहते हैं। यहां कोयला निकालने के लिए विस्फोट कराना ही पड़ता है। ब्लास्टिंग के लिए 400-500 मिलिसेकंड का समय लगता है। इन 40 छेदों के टारगेट को भी मिलिसेकंड में धमाकों से उड़ाया जा सकता है।
खदानों में धमाका करने के लिए वो पहले छेद करते हैं। फिर उनमें विस्फोटक भरा जाता है। धमाके करने के बाद बड़े बड़े ट्रैकों से कोयला ट्रांसपोर्ट किया जाता है। भारत में कोल इंडिया कोयला निकालने का काम करती है जो भारत सरकार की कंपनी है। लेकिन सिंगरेनी इकलौती ऐसी कंपनी है जिसकी कमान राज्य सरकार के हाथों में हैं। निजाम की हुकुमत के दौरान अंग्रेजों की मदद से सिंगरेनी की नींव रखी गई थी।
खुली खदानों या ओपन कास्ट माइन्स से निकाला जाता है कोयला
भारत में 1200 मीटर की गहराई तक खदानों में कोयला खोदा जा रहा है। भारत में मिलने वाला अधिकतर कोयला खुली खदानों या ओपन कास्ट माइन्स से निकाला जाता है। जैसे-जैसे खदान की गहराई बढ़ती जाती है कोयला निकालने का खर्च भी बढ़ता जाता है।
आपको बतादें, गेवरा भारत और एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान है। गेवरा छत्तीसगढ़ के कोरबा में स्थित है। वहीं रानीगंज कोलफील्ड मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले में स्थित भारत की सबसे पुरानी कोयला खदान है।
देश के अधिकांश पॉवर प्लांट कोयले से बिजली बनाते हैं। इन पॉवर प्लांट को वर्तमान में कोयले की सप्लाई कोल इंडिया की 7 कंपनियों के अंतर्गत 8 राज्यों में 345 कोयला खदानें हैं। इनमें से 151 अंडरग्राउंड, 172 ओपन कास्ट और 22 खदानों में इन दोनों तरीकों से कोयला निकाला जाता है। देश में कोयला उत्पादन का 83 फीसदी कोयला कोल इंडिया की खदानों से ही निकाला जाता है।
मालूम हो, देश में कोयले के खनन का इतिहास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के समय का है। जब 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे पर रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया।