मिथिलेश के मन से: रुक जा रात, ठहर जा रे चंदा ( बरस्ता कचौड़ी गली) दूसरी किश्त

रुक जा रात, ठहर जा रे चंदा ( बरस्ता कचौड़ी गली) दूसरी किश्त
kachori
Ad

Highlights

उसके कचौड़ी गली बनने से जुड़ी कहानी भी हम आपको जल्दी ही सुनाएंगे 

यह भी बताने- समझने की कोशिश करेंगे कि बनारस की कचौड़ी गली मिर्जापुर में शिफ्ट क्यों और कैसे कर गयी

उसके पीछे की कहानी क्या है?  

मिथिलेश के मन से: कचौड़ी गली सून कइलs बलमू - पहली किश्त

कोई रात किसी के रोके से नहीं रुकती है। कोई दिन किसी के टाले से नहीं टलता है। लेकिन कुछ चीज़ें हैं जो आपका रस्ता रोक लेती हैं, जो  आपकी तंद्रा पर बुलडोजर चला देती हैं, जो आपको ठहर जाने को लाचार कर देती हैं, जो आपको उस दुनिया में ले जाती हैं जहां से लौटने का जी नहीं करता।  

यह सिर्फ नोस्टैल्जिया या युफोरिया नहीं है जहां कस्तूरी मृग रहते हैं, जहां अबाबील के घोंसले हैं और जहां शिकारियों की रफ्तनी पर बैन है। यह भागना भी नहीं है।

यह सिर्फ और सिर्फ एक अलग किस्म की और वह दुनिया है जहां हम सुस्ताना चाहते हैं.. जहां हम ताज़ादम होना चाहते हैं...लाम पर जाने से पहले अपने फेफड़ों में जहां से हम आक्सीजन का अक्षय स्रोत भर लेना चाहते हैं।

यह रीफिलिंग है। यह रीफ्यूलिंग है और हमारे आसपास इसके सैकड़ों स्टेशन- सबस्टेशन बिखरे पड़े हैं। लेकिन जाना तो पड़ेगा। सुखेन या धन्वंतरि या लुई पाश्चर आपके पास चल कर नहीं आयेंगे।

असल इतिहास में ऐसी दुनिया के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि वहां क्रोनोलोजी का मतलब होता है। वहां समय कीमती होता है। वहां पल- पल बदलती घटनाएं कीमती होती हैं। सुस्ताने और ताजादम होने की चाहत वहां के नियम- कानून के खिलाफ है।

इतिहास ने ऐसी चाहतों के चलते सल्तनतों को मिटते देखा है, देखा है वाज़िद अली शाह को गिरफ्तार होते, उनकी बेग़म हज़रत महल को जंगे आजादी की लड़ाई में अग्रिम मोरचा संभालते, बहादुर शाह ज़फ़र को रंगून जाते, कुंअर सिंह को अस्सी साल की उमर में तलवार उठाते, लक्ष्मी बाई को लड़ते और सिंधिया घराने की दुरभिसंधियों की भेंट चढ़ते।

असल इतिहास इसलिए भी बेरहम होता है क्योंकि वह ठोस और ठस्स होता है, उसने क्रूरताएं देखी होती हैं। उसकी आंखें इन क्रूरताओं की अभ्यस्त होती हैं। उसने अपने आसपास को लुटते- पिटते देखा होता है।

भय, आतंक, साजिशें, खूंरेजी, बाढ़, अकाल- सब उस इतिहास की अंतश्चेतना के हिस्से हैं जो हम- आप पढ़ते हैं।  इसीलिए इतिहास के साथ हो लेना आसान नहीं होता।

इसीलिए हम उस इतिहास का तसव्वुर करते हैं जहां ताज़ादम होने के ज्यादा से ज्यादा मौके हों, जिसकी फैंटेसी हमें उड़ना सिखा सके- जटिल से जटिल और सख्तजान दिनों में भी। यह नया इतिहास भी रचा जा रहा है।

पीढ़ी दर पीढ़ी। हमारे-आपके कंठस्वरों में। किंवदंतियों में। फसानों- अफसानों में। सच की प्रतीति कराते उन किस्सों में जिनका कोई लिखित और ठोस दस्तावेजी सबूत उस तरह उपलब्ध नहीं है जिसकी दरकार होती है खतियान मिलाते समय।

हो भी तो किताबें उन्हें खारिज कर देती हैं। उनके तथ्यों पर सवाल उठते हैं, उन्हें बौद्धिक जुगाली और जाने किन- किन विशेषणों से नवाजा जाता है। कुछ ऐसी ही है पटना सिटी के चौक क्षेत्र की कचौड़ी गली भी।

इतिहास और उसकी हकीकतें जहां हथियार डाल देते हैं, वहां से शुरू होता है यह नया इतिहास। थोड़ी हकीकत, थोड़ा फसाना वाला। आप नहीं जानते होंगे कि सिटी की कचौड़ी गली अरसे तक कचहरी गली के नाम से क्यों जानी जाती थी?

इसका नाम कचौड़ी गली क्यों पड़ गया? किसने इसे यह नाम दिया और दिया तो फिर पुराना नाम गायब क्यों हो गया? सरकारी दस्तावेज तक में इसका नामोल्लेख कचौड़ी गली के रूप में ही क्यों होता है?

इसके ऐन पहले वाले एपिसोड में हमने बनारस की कचौड़ी गली का जिक्र किया था।

उसके कचौड़ी गली बनने से जुड़ी कहानी भी हम आपको जल्दी ही सुनाएंगे और यह भी बताने- समझने की कोशिश करेंगे कि बनारस की कचौड़ी गली मिर्जापुर में शिफ्ट क्यों और कैसे कर गयी। उसके पीछे की कहानी क्या है?  

थोड़ी देर भी लगे तो धैर्य बनाये रखें। यह वह इतिहास है जिसे आप ओरल हिस्ट्री कह सकते हैं। मौखिक इतिहास।

वह इतिहास जो सुना गया, उन लोगों से जिन्होंने वास्तविक इतिहास को सैकड़ों दफा बनते- बिगड़ते, टूटते- फूटते देखा था।

यह इतिहास हकीकतों के लगभग समानांतर चलता है लेकिन इसकी पकड़ वास्तविक इतिहास से ज्यादा गहरी, ज्यादा मजबूत है। 

क्रमश: तीसरी किश्त

Must Read: कचौड़ी गली सून कइलs बलमू - पहली किश्त

पढें Blog खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें thinQ360 App.

  • Follow us on :