Jaipur: देवकीनंदन ठाकुर: कलयुग में भगवानों की भीड़, एक इष्ट पर टिके रहें

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan Thakur) ने जयपुर (Jaipur) में कहा कि कलियुग (Kaliyuga) में भगवानों की भीड़ हो गई है। उन्होंने जोर दिया कि थोड़ा सा फेमस होते ही लोग उसे ही ईश्वर मान लेते हैं, जो अपने इष्ट का अपमान है।

कलयुग में भगवानों की भीड़: देवकीनंदन ठाकुर

जयपुर: कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan Thakur) ने जयपुर (Jaipur) में कहा कि कलियुग (Kaliyuga) में भगवानों की भीड़ हो गई है। उन्होंने जोर दिया कि थोड़ा सा फेमस होते ही लोग उसे ही ईश्वर मान लेते हैं, जो अपने इष्ट का अपमान है।

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने मानसरोवर स्थित वीटी रोड मेला ग्राउंड में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान यह बात कही। श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार को उन्होंने श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा के विषय पर विस्तार से चर्चा की।

उन्होंने कहा कि आज के समय में हालात ऐसे हो गए हैं कि भगवानों की गिनती नहीं की जा सकती। जो व्यक्ति थोड़ा सा भी फेमस हो जाता है, उसे तुरंत भगवान घोषित कर दिया जाता है।

इंसान को भगवान बनाना गलत

देवकीनंदन ठाकुर ने स्पष्ट किया कि कोई उसे कृष्ण का अवतार बताता है, कोई राम का, कोई हनुमान का और कोई शंकर का। किसी को देवी और किसी को नरसिंह का अवतार कह दिया जाता है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि इंसान को इंसान ही रहने देना चाहिए। अगर इंसान को भगवान बना दिया जाएगा, तो न वह धरती पर टिक पाएगा और न आकाश में उड़ पाएगा।

ऐसी स्थिति में वह बीच में त्रिशंकु की तरह लटक जाता है। ठाकुर ने कहा कि अपने इष्ट पर ध्यान रखकर जो व्यक्ति आगे बढ़ता है, उसे न भटकना पड़ता है और न ही लटकना पड़ता है।

कई दरवाजों पर जाना इष्ट का अपमान

कथा पंडाल में मौजूद श्रद्धालुओं से संवाद करते हुए उन्होंने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया। उन्होंने पूछा कि लोग कहते हैं कि हम भजन करते हैं, भक्ति करते हैं, हमने कोई दरवाजा नहीं छोड़ा, फिर भी हम दुखी क्यों हैं, परेशान क्यों हैं?

ठाकुर जी ने कहा कि आपके प्रश्न में ही उत्तर छिपा है: आपने कोई दरवाजा नहीं छोड़ा, यही आपकी सबसे बड़ी गलती है। यह शान नहीं, बल्कि अपने इष्ट का अपमान है।

एक ही दरवाजे पर टिके रहने का महत्व

उन्होंने समझाया कि अगर व्यक्ति एक ही दरवाजे पर टिके रहते, तो उन्हें रोना या पछताना नहीं पड़ता। लोग इसमें अपनी शान समझते हैं कि हमने कोई दरवाजा नहीं छोड़ा।

यह कोई बड़ी बात नहीं है, बल्कि बहुत छोटी बात हो गई है। आपने तमाम दरवाजे इसलिए चुने, क्योंकि आपको अपने इष्ट पर विश्वास नहीं था। इसलिए तमाम दरवाजों पर जाकर माथा पटका।

निष्ठा का अर्थ: पति-पत्नी का उदाहरण

कथा के दौरान देवकीनंदन ठाकुर ने निष्ठा का अर्थ समझाने के लिए पति-पत्नी का उदाहरण दिया। उन्होंने पंडाल में मौजूद लोगों से पूछा कि अगर कोई स्त्री अपने पति को छोड़कर कई दरवाजों पर अपना माथा टकराए, तो आपको अच्छा लगेगा या बुरा लगेगा?

इसी तरह, एक पुरुष अपनी पत्नी में निष्ठा रखने की बजाय कई महिलाओं से चंचलता करता है, तो यह भी बुरा ही लगेगा। उन्होंने इस उदाहरण से एक इष्ट के प्रति निष्ठा का महत्व समझाया।

भगवान को जानना और मानना दोनों जरूरी

देवकीनंदन ठाकुर ने अपनी कथा में यह भी कहा कि भगवान को जानना भी जरूरी है और भगवान को मानना भी। उन्होंने आधुनिक मनुष्य की स्थिति पर टिप्पणी की।

उन्होंने कहा कि आज का मनुष्य बिना जाने ही जी रहा है। वह भगवान को न ठीक से जानता है और न पूरी तरह मानता है, लेकिन फिर भी जीवन चला रहा है।