राजस्थान की बेटी, नीदरलैंड में प्रोफेसर: प्रोफेसर शारदा एस. नंदराम के साथ विशेष साक्षात्कार
शारदा एस. नंदराम, जो सूरीनाम में जन्मी हैं, 1985 से नीदरलैंड में रह रही हैं और राजस्थान, भारत से तीसरी पीढ़ी की भारतीय हैं। वह वर्तमान में एम्स्टर्डम विश्वविद्य
राजस्थान की बेटी डॉ. शारदा एस. नंदराम ने नीदरलैंड में प्रोफेसर के रूप में मनोविज्ञान और प्रबंधन में अपनी पहचान बनाई है। उनके परिवार की जड़ें राजस्थान के बिलनियासर गांव से जुड़ी हैं, लेकिन तीन पीढ़ी पहले उनके दादा-दादी सूरीनाम जाकर बस गए।
शारदा की भारतीयता और सनातन धर्म के प्रति लगाव ने उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखा, और वे अक्सर भारत आती हैं, जिससे उन्हें गहरी आत्मीयता और सांस्कृतिक जुड़ाव महसूस होता है। जैसलमेर के सूर्यागढ़ होटल में प्रदीप बीदावत से बातचीत में उन्होंने बताया कि गांव के लोग उन्हें अपनी बेटी की तरह मान और प्रेम देते हैं।
शारदा एस. नंदराम, जो सूरीनाम में जन्मी हैं, 1985 से नीदरलैंड में रह रही हैं और राजस्थान, भारत से तीसरी पीढ़ी की भारतीय हैं। वह वर्तमान में एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में हिंदू आध्यात्मिकता और समाज की प्रोफेसर हैं। उन्होंने मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की है और सामाजिक विज्ञान में पीएचडी की।
शारदा ने 70 से अधिक शैक्षिक और पेशेवर लेख प्रकाशित किए हैं, साथ ही 30 से अधिक पुस्तक अध्याय, 21 किताबें, और 70 से अधिक समाचार पत्र लेख लिखे हैं। वह स्वास्थ्य, बैंकिंग, शिक्षा, और खेल जैसे क्षेत्रों में तीन दशकों का अनुभव रखती हैं।
उनका शोध हिंदूवाद के एकीकृत दृष्टिकोण, आध्यात्मिकता, और हिंदू ज्ञान प्रणालियों के अनुसंधान तरीकों पर केंद्रित है। शारदा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा देती हैं और योग, आध्यात्मिकता और नेतृत्व पर पाठ्यक्रम विकसित कर रही हैं। उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते हैं, जिनमें 2012 में 'बेस्ट केस स्टडी' का अमिटी पुरस्कार शामिल है।
शारदा नंदराम अपनी भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के प्रति प्रेम के चलते अपने बच्चों को भी भारत भेजती हैं, ताकि वे भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें। उनके घर में कैथोलिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद सनातन धर्म का पालन होता है, और त्योहारों जैसे नवरात्र और दीपावली में वे पूजा करती हैं, जो उन्हें विशेष आनंद देता है।
शारदा भारतीय युवाओं को अपनी संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़े रहने का संदेश देती हैं, और इस पर चिंता व्यक्त करती हैं कि भारतीय युवा तेजी से बाजारवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
डॉ. नंदराम नीदरलैंड के न्येनरोडे बिजनेस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, जहां उन्होंने योग, ध्यान और समग्र प्रबंधन के सिद्धांतों पर गहन शोध किया है। उनके शोध में यह दर्शाया गया है कि जैन, बौद्ध, और योग आधारित सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत बल्कि टीम के प्रदर्शन, स्थिरता और संतुष्टि को बढ़ावा देते हैं। उनकी पुस्तकें और शोध पूर्व और पश्चिम के विचारों को जोड़ते हैं, जिसमें माइंडफुलनेस और बिजनेस में आध्यात्मिकता का महत्व स्पष्ट किया गया है। उनके इस योगदान ने उन्हें शैक्षिक और व्यावसायिक दोनों ही क्षेत्रों में सम्मानित किया है।
उनकी यह कहानी न केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े रहने का कितना महत्व है, चाहे कोई व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो।
शारदा एस. नंदराम ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं, जो मुख्य रूप से उद्यमिता, आध्यात्मिकता और संगठनात्मक नवाचार पर आधारित हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं:
- द स्पिरिट ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप (2006) – यह पुस्तक उद्यमिता पर व्यक्तिगत कहानियों के माध्यम से व्यवसाय में मानव व्यवहार के सार को प्रस्तुत करती है।
- स्पिरिचुअलिटी एंड बिजनेस (2009) – आध्यात्मिकता और व्यापार प्रबंधन को जोड़ने वाली पुस्तक।
- ऑर्गनाइजेशनल इनोवेशन बाय इंटेग्रेटिंग सिम्प्लीफिकेशन (2015) – यह पुस्तक संगठनात्मक बदलाव पर आधारित है।
- मैनेजिंग वीयूसीए थ्रू इंटीग्रेटिव सेल्फ-मैनेजमेंट (2017) – यह पुस्तक व्यापारिक परिवर्तनों से निपटने के लिए मार्गदर्शन करती है।
शारदा एस. नंदराम के साथ विशेष साक्षात्कार
प्रदीप बीदावत: शारदा जी, आपका स्वागत है। आपने सात समंदर पार नीदरलैंड में इतनी बड़ी पहचान बनाई है, इस सफर की शुरुआत कैसे हुई?
शारदा नंदराम: धन्यवाद! यह सफर कई पीढ़ियों पहले शुरू हुआ था। मेरे दादा-दादी करीब एक सदी पहले राजस्थान के गांवों से सूरीनाम गए थे। वहां से, मेरे माता-पिता नीदरलैंड पहुंचे, जहां मेरा और मेरी बहनों का जन्म हुआ। हालांकि हम नीदरलैंड में रहते हैं, हमारे दिल और विचार आज भी भारतीय संस्कृति से जुड़े हैं।
प्रदीप: आपने अपनी जड़ों की ओर लौटने की बात की, इसमें किस चीज़ ने आपको सबसे अधिक प्रेरित किया?
शारदा: भारत और भारतीयता का भाव हमेशा मेरे मन में रहा। मेरी नानी राजस्थान के बिलनियासर गांव की हैं और यहां आना मुझे अपनी जड़ों से जुड़ने का एहसास कराता है। यहां के लोगों का अपनापन और सम्मान मुझे हर बार खींच लाता है। मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चे भी इस संस्कृति को समझें और महसूस करें। मेरा बेटा भी नियमित रूप से भारत आता है, ताकि वह अपनी भारतीय जड़ों से जुड़े रह सके।
प्रदीप: आप नीदरलैंड में बिजनेस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और अध्यात्म व योग का गहरा अध्ययन किया है। इसका आपके शिक्षण में क्या प्रभाव है?
शारदा: योग और ध्यान मेरे शिक्षण का अभिन्न हिस्सा हैं। नीदरलैंड के न्येनरोडे बिजनेस यूनिवर्सिटी में मैंने पाया कि ध्यान और भारतीय अध्यात्म आधारित प्रबंधन सिद्धांत व्यक्ति और टीम की उत्पादकता और संतुष्टि को बढ़ाते हैं। भारतीय दर्शन और माइंडफुलनेस से प्रेरित ये सिद्धांत छात्रों और पेशेवरों में आत्मिक संतुलन और स्थिरता लाने का कार्य करते हैं।
प्रदीप: आप भारतीय युवाओं के बाजारवाद की ओर बढ़ने से थोड़ी चिंतित हैं, इस बारे में आपका क्या विचार है?
शारदा: हाँ, यह एक गंभीर चिंता है। भारत में समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है, जो युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ती है। मेरे विचार में भारतीय युवाओं को बाजारवाद में उलझने के बजाय अपनी संस्कृति और मूल्यों को अपनाना चाहिए। यह उन्हें जीवन में गहरी समझ और संतुलन देगा।
प्रदीप: आपने अपनी संस्कृति और भाषा को बनाए रखा, यह कैसे संभव हुआ?
शारदा: यह हमारे परिवार का संकल्प था। डच भाषा के प्रभाव के बावजूद हमने हिंदी को जीवित रखा। हम घर में हिंदी बोलते हैं और अपने बच्चों को भी इसे सिखाते हैं। मेरे पति कैथोलिक हैं, परन्तु हमारे घर में सनातन परंपराएं और पूजा-अर्चना होती है। विशेषकर नवरात्रि और दीपावली जैसे त्योहार हमें भारतीयता का एहसास कराते हैं।
प्रदीप: आप भारत में महिलाओं और युवाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?
शारदा: मैं सभी को यही कहना चाहूंगी कि भारतीयता को अपनाएं, अपनी जड़ों से जुड़े रहें। भारतीय संस्कृति में जो आध्यात्मिकता और संतुलन है, वह हमें स्थिरता और आत्म-संतोष देता है। अपनी शिक्षा और करियर के साथ अपनी संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों को भी महत्व दें। यही आपकी पहचान है।
प्रदीप: बहुत-बहुत धन्यवाद, शारदा जी। आपकी बातों से हम सबको प्रेरणा मिली है। आशा है, आपकी यह यात्रा और भी सफल हो।
शारदा: धन्यवाद, प्रदीप जी। मुझे खुशी है कि मैं अपनी मातृभूमि और अपनी संस्कृति के प्रति अपने विचार साझा कर पाई।