राजनाथ सिंह जैसलमेर में, सैन्य मंथन: जैसलमेर में आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस: राजनाथ सिंह करेंगे सुरक्षा समीक्षा
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) जैसलमेर (Jaisalmer) में आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (Army Commanders Conference) में सैन्य सुरक्षा, अग्निवीर योजना (Agniveer Scheme) व तालमेल पर चर्चा करेंगे।
जैसलमेर: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) जैसलमेर (Jaisalmer) में आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (Army Commanders Conference) में सैन्य सुरक्षा, अग्निवीर योजना (Agniveer Scheme) व तालमेल पर चर्चा करेंगे।
रक्षा मंत्री का जैसलमेर दौरा और आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज दोपहर बाद जैसलमेर पहुंचेंगे।
वे दो दिन जैसलमेर से सटे भारत-पाकिस्तान सीमा पर बिताएंगे।
आज से 25 अक्टूबर तक तीन दिवसीय आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस जैसलमेर में आयोजित की जा रही है।
इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में रक्षा मंत्री सेना के अधिकारियों के साथ देश की सुरक्षा व्यवस्था और सैन्य तैयारियों पर गहन चर्चा करेंगे।
बताया जा रहा है कि इस दौरान वे लोंगेवाला में तैनात जवानों से भी बातचीत करेंगे।
यह कॉन्फ्रेंस देश की सीमाओं की मौजूदा स्थिति, तकनीकी बदलावों और आने वाले वर्षों में सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के मुद्दों पर विचार करेगी।
'सुधारों का वर्ष' और अग्निवीर योजना पर मंथन
सेना ने इस बार की कॉन्फ्रेंस को “Year of Reforms” (सुधारों का वर्ष) का हिस्सा बताया है।
इस दौरान सेना नेतृत्व नए ढांचे, तकनीकी सुधारों और आधुनिक युद्ध की तैयारियों पर विस्तृत चर्चा करेगा।
इसका मुख्य लक्ष्य सेना को अधिक टेक्नोलॉजी-ड्रिवन और फ्यूचर रेडी फोर्स बनाना है।
थलसेना के उच्च अधिकारियों का यह वार्षिक सम्मेलन कई दृष्टियों से विशेष माना जा रहा है।
इसमें देश की सैन्य नीति से जुड़े कई अहम फैसले लिए जा सकते हैं।
सबसे प्रमुख चर्चा का विषय अग्निवीर योजना में स्थायी नियुक्ति दर बढ़ाने से जुड़ा है।
वर्तमान में केवल 25 प्रतिशत अग्निवीरों को चार साल की सेवा के बाद स्थायी किया जाता है।
अब इसे बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक करने का प्रस्ताव रखा गया है।
सूत्रों के अनुसार, अग्निवीर योजना के तहत भर्ती हुए पहले बैच के जवान अगले वर्ष अपनी चार वर्षीय सेवा पूरी करेंगे।
ऐसे में उनकी पुनर्नियुक्ति और भविष्य की योजना तय करने को लेकर यह बैठक निर्णायक साबित हो सकती है।
रक्षा मंत्रालय अधिक संख्या में प्रशिक्षित अग्निवीरों को सेना में स्थायी अवसर देने पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
इसका उद्देश्य उनके अनुभव और दक्षता का उपयोग देश की सुरक्षा में बेहतर ढंग से करना है।
पूर्व सैनिकों का अनुभव और तीनों सेनाओं में तालमेल
सम्मेलन में बढ़ती पूर्व सैनिक संख्या को देखते हुए उनके अनुभव के उपयोग के विकल्पों पर भी चर्चा होगी।
अभी पूर्व सैनिक सीमित भूमिकाओं में कार्यरत हैं।
अब उनकी विशेषज्ञता का लाभ व्यापक स्तर पर उठाने की दिशा में सरकार कदम बढ़ा सकती है।
सम्मेलन में थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तालमेल और एकजुटता बढ़ाने के उपायों पर विशेष जोर दिया जाएगा।
इसमें साझा प्रशिक्षण, उपकरणों का मानकीकरण और लॉजिस्टिक व सप्लाई चेन सुधार जैसे कदमों पर चर्चा होगी।
इन प्रयासों का उद्देश्य भविष्य में थिएटर कमांड्स की स्थापना के लिए मजबूत आधार तैयार करना है।
ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा और महत्वपूर्ण उद्घाटन
जैसलमेर सम्मेलन में सेना की ऑपरेशनल तैयारियों की भी व्यापक समीक्षा होगी।
इसमें क्षतिग्रस्त उपकरणों की मरम्मत और प्रतिस्थापन जैसे विषय शामिल हैं।
आवश्यक सैन्य सामग्रियों की आपात खरीद और गोला-बारूद भंडारण की स्थिति पर भी विचार किया जाएगा।
मिशन सुदर्शन चक्र के क्रियान्वयन की प्रगति की समीक्षा भी की जाएगी।
यह मिशन तीनों सेनाओं और अन्य हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसलमेर के आर्मी वॉर म्यूजियम पहुंचेंगे।
यहां वे “शौर्य पार्क” और “कैक्टस पार्क” का उद्घाटन करेंगे।
इन स्थलों में भारतीय सेना के इतिहास और वीर जवानों की गाथाएं प्रदर्शित की गई हैं।
इसके अलावा शाम को एक नया लाइट एंड साउंड शो भी शुरू किया जाएगा।
लोंगेवाला का ऐतिहासिक महत्व और सुरक्षा व्यवस्था
दौरे के दूसरे दिन शुक्रवार को रक्षा मंत्री सीमा क्षेत्र लोंगेवाला जाएंगे।
यहीं 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।
राजनाथ सिंह यहाँ शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे और तैनात जवानों से संवाद करेंगे।
सेना की नई ऑपरेशनल क्षमताओं और उपकरणों का प्रदर्शन भी किया जाएगा।
रक्षा मंत्री की यात्रा को लेकर जैसलमेर प्रशासन और सेना ने मिलकर तैयारियां शुरू कर दी हैं।
एयरपोर्ट से लेकर कॉन्फ्रेंस स्थल तक सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
जैसलमेर सीमावर्ती जिला होने के कारण यह दौरा रणनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह कॉन्फ्रेंस आने वाले वर्षों में सेना की दिशा और रणनीति तय करेगी।