गांधीजी ने दारू पीने से मना कर दिया : गॉंधीजी पहली बार जहाज में बैठकर ऐसे लन्दन पहुंचे थे

मोहनदास करमचंद गांधी ने अपनी पहली समुंद्री यात्रा पर बीस पृष्ठ की एक डायरी लिखी। गांधी लड़कपन में अक्सर बन्दरगाहों पर जहाजों को आता जाता देखा करते थे। जिस जहाज में वो पहली बार चढ़े वो उन्हें लंदन लेकर जाने वाला था। उस जहाज का नाम एस एस क्लाइड था। चार सितंबर 1888 को वह जहाज मुम्बई से शाम पांच बजे रवाना हुआ।

गांधीजी की पहली समुद्री यात्रा ऐसे शुरू होती है 

मोहनदास करमचंद गांधी ने अपनी पहली समुंद्री यात्रा पर बीस पृष्ठ की एक डायरी लिखी। गांधी लड़कपन में अक्सर बन्दरगाहों पर जहाजों को आता जाता देखा करते थे। जिस जहाज में वो पहली बार चढ़े वो उन्हें लंदन लेकर जाने वाला था। उस जहाज का नाम एस एस क्लाइड था। चार सितंबर 1888 को वह जहाज मुम्बई से शाम पांच बजे रवाना हुआ। गांधी ने उस यात्रा में एक काला कोट पहन रखा था और जहाज में लंच डिनर के बावजूद हमारी परम्परा के अनुसार वो अपना कलेवा साथ लेकर गए जिसमें कुछ गुजराती मिठाइया भी थी।

गाँधी के साथ वाले बन्दे ने कहा कि ठण्ड बहुत है इसलिए दारु पीते है 

जब उनका जहाज पोर्ट सईद पहुंचा तो उनके एक सहयात्री ने बताया कि जब हम स्वेज नहर पार कर लेंगे तो मौसम बदल जायेगा और ऐसे में ठंड से बचने का सबसे बेहतर उपाय है मांसाहार खाना और मदिरा सेवन।

अव्वल तो गांधी की माँ उन्हें बैरिस्टरी पढ़ने के लिए बिलायत भेजने तक तो राजी नही थी। उनको अंदेशा था कि बिलायत में मोहनदास मांसाहार और मदिरा सेवन करने लगेगा। दूसरा उस जमाने मे समुन्द्र पार करना हमारे हिन्दू रीति रिवाजों में अशुभ माना जाता था जो आदमी समुन्द्र का काला पानी पार करता था उसे अपनी बिरादरी का विरोध झेलना पड़ता था। गांधी के साथ भी बिल्कुल यही हुआ। जिसका ज़िक्र उन्होंने मुम्बई में वकालत के दौरान अपने मित्र को लिखे एक पत्र में किया था। अपनी बिरादरी को खुश करने और विरोध से बचने के लिए गांधी ने लंदन से लौटने के बाद बिरादरी के प्रभावशाली लोगों को एक दावत भी दी थी।

लेकिन गाँधीजी अपनी माँ को प्रॉमिस कर चुके थे

ऐसे में गांधी की माँ ने लंदन जाने से पहले उनसे तीन वचन ले लिए। जिसमे दूसरा वचन यह कि वो मांसाहार और मदिरा का सेवन नही करेंगे तथा तीसरा परायी स्त्री के साथ सम्बन्ध नही बनाएंगे सो गांधी ने इन सभी वचनों को बिलायत में रहकर पूरा किया। लेकिन जहाजी यात्रा के दौरान ही गांधी को अपनी माँ को दिए वचन याद आने लगे।

जब उनका जहाज ब्रिंडीसी पहुंचा तो उनके एक सहयात्री ने जवान गांधी को देखकर कहा कि एक चौदह साल की सुंदर लड़की हैं, मैं आपको उसके पास ले चलूंगा ज्यादा पैसा नही लेगी। लेकिन माँ को दिए वचन याद कर गांधी ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया।

गांधीजी की मकान मालकिन भी उनकी तरफ आकर्षित होने लग गई 

गांधी ने अपनी आत्मकथा में इस बात का भी जिक्र किया है कि गांधी वहां ब्रिज का खेल खेला करते थे जिसमें उनकी जोड़ीदार उनकी मकान मालकिन थी। उस महिला ने गांधी के साथ मजाक करना शुरू किया और उनके तरफ आकर्षित होने लगी। गांधी भी उसकी तरफ आकर्षित होने लगे। गांधी ने लिखा कि ऐसा पहली बार हुआ जब मेरी पत्नी के सिवाय मैं किसी दूसरी महिला की तरफ आकर्षित हुआ। जब उत्तेजना ज्यादा बढ़ने लगी तो उन्हें अपनी माँ को दिया वचन याद आया और वो उस खेल से उठ खड़े हुए।

शुरुआती दिनों में गांधी ठंड के मारे लंदन में असहज महसूस कर रहे थे लेकिन बाद में उन्होंने अपने भाई को लिखा कि ठंड के बावजूद उन्हें यहां मांस और मदिरा की कोई जरूरत नही है।

डॉक्टर ने गांधीजी से कहा कि गौमांस खा लो 

गांधी की वहां पर शाकाहार और मांसाहार पर खूब बहस होती थी। एक बार उनकी मुलाकात एक अंग्रेज डॉक्टर से हुई जब डॉक्टर को मालूम चला कि गांधी मांस नहीं खाते तो उसने कहा कि तुम बीफ टी (गौमांस मिश्रित चाय) ले लो इस पर जब गांधी की उससे बहस हुई तो डॉक्टर ने खिन्न होकर जोर से कहा कि या तो तुम बीफ टी पियो या फिर मर जाओ।

गांधी वहां वेजिटेरियन सोसायटी से जुड़े और सोसायटी के कार्यक्रमों में शाकाहार पर भाषण और चर्चा करने लगे। जब उनकी बैरिस्टरी पूरी हुई तो उन्होंने वेजिटेरियन सोसायटी को एक शाकाहार विदाई भोज दिया। जिसमें गांधी ने एक भावुक भाषण दिया। गांधी उस वक्त ठीक से भाषण देना नहीं जानते थे।

गांधीजी जहाज में ही थे और पता चला कि माँ इस दुनिया में नहीं रही 

पढ़ाई पूरी कर गांधी जब भारत आये तो उनके भाई उन्हें बन्दगाह पर लेने खड़े थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक "इंडिया बिफोर गांधी" में बताते हैं कि रास्ते में उनके भाई ने बताया कि उनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। यह गांधी के लिए किसी झटके से कम न था। उनकी माँ उनको बिलायत नहीं भेजना चाहती थी क्योंकि उनको डर था कि उनका बेटा नैतिकता और भोजन सम्बन्धी विषय पर फिसल जाएगा। लेकिन गांधी ने इस दौरान मांस मंदिरा और पराई स्त्री को छुआ तक नहीं लेकिन उनकी उपलब्धियों को सुनने के लिए उनकी माँ अब जीवित नहीं थी।