वंदेमातरम पर मनोज झा का भावुक संबोधन: मनोज झा: वंदेमातरम की 150वीं वर्षगांठ पर देश को बांटा क्यों जा रहा?
आरजेडी (RJD) सांसद मनोज कुमार झा (Manoj Kumar Jha) ने वंदेमातरम (Vande Mataram) की 150वीं वर्षगांठ पर देश में नफरत व ध्रुवीकरण पर चिंता व्यक्त की। बोले, चुनाव जीतने को देश बांटा जा रहा है।
नई दिल्ली: आरजेडी (RJD) सांसद मनोज कुमार झा (Manoj Kumar Jha) ने वंदेमातरम (Vande Mataram) की 150वीं वर्षगांठ पर देश में नफरत व ध्रुवीकरण पर चिंता व्यक्त की। बोले, चुनाव जीतने को देश बांटा जा रहा है।
राज्यसभा में वंदेमातरम की 150वीं वर्षगांठ पर बोलते हुए राष्ट्रीय जनता दल के सांसद प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने अपने संबोधन में देश की वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने इस खूबसूरत गीत की सालगिरह को केवल उत्सव के रूप में मनाने के बजाय, आत्म-आकलन और चिंतन का अवसर बताया। झा ने हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा 'क्या भूलूं क्या याद करूं' का जिक्र करते हुए कहा कि यह अवसर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम क्या याद रखें और क्या भूल जाएं।
'गांठ' और 'गिरह' का महत्व
प्रोफेसर झा ने 'वर्षगांठ' शब्द में 'गांठ' और 'सालगिरह' शब्द में 'गिरह' के निहितार्थ पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इन 'गांठों' और 'गिरहों' को समझे बिना 150वीं साल का यह उत्सव अधूरा और बेईमानी होगा। उनका आशय था कि हमें इस गीत के ऐतिहासिक संदर्भ, इसके पीछे की भावना और वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता को गहराई से समझना चाहिए, न कि केवल सतही तौर पर इसका गुणगान करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी बातों से किसी को कष्ट न हो, क्योंकि इस देश की ऊर्जा पहले ही लोगों को कष्ट पहुँचाने में व्यर्थ हो रही है।
उन्होंने दुख व्यक्त किया कि जिन ओहदेदारों को देश के जख्मों पर मरहम लगाना चाहिए, वे नमक की बोरियां लेकर छिड़क रहे हैं। यह परिपाटी बंद होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कई सत्ता पक्ष के साथी भी निजी बातचीत में ऐसे ही विचार रखते हैं, जो गर्व की बात है।
वंदेमातरम: सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान का प्रतीक
मनोज झा ने वंदेमातरम को हमारी सांस्कृतिक और भावनात्मक एका पहचान का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह गीत बंगाल में लिखा गया था, लेकिन इसकी भावना सरहदों को पार कर गई। यह सिर्फ इसलिए नहीं कि इसके बोल बहुत अच्छे थे, बल्कि इसलिए कि इस गीत की 'स्पिरिट' बंगाल से पंजाब तक पहुंची, जहां लोग इसके शब्दार्थ को नहीं, बल्कि भावार्थ को समझ रहे थे।
उन्होंने भारत की बहुलवादी संस्कृति और विविधताओं में एकता पर जोर दिया। झा ने कहा कि हम ऐसे ही पले-बढ़े हैं, जहां कोई नुक्कड़, गली या गांव ऐसा नहीं है, जहां हमने हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और नास्तिकों को एक साथ न देखा हो। आजादी की लड़ाई में सभी का योगदान था, चाहे वे किसी भी धर्म या आस्था के हों। उन्होंने गर्व से कहा कि उन्होंने भी अपने जीवन के एक बड़े हिस्से में नास्तिक के रूप में भगत सिंह को पढ़ा और 'मैं नास्तिक क्यों हूं' जैसी उनकी रचनाओं से प्रेरणा ली।
नेहरू, गांधी और अंबेडकर: परस्पर विरोधी नहीं
प्रोफेसर झा ने सदन में जवाहरलाल नेहरू के बार-बार चर्चा में आने का जिक्र किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं, लेकिन खुद को नेहरूवादी, गांधीवादी और अंबेडकरवादी मानते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज के संदर्भ में इन तीनों महापुरुषों के विचार परस्पर विरोधी नहीं हैं। उन्होंने कल्पना की कि यदि ये तीनों आज पृथ्वी पर आएं, तो वे एक साथ मिलकर एक मोर्चा बना लेंगे, क्योंकि आज की हकीकत में उनकी एकता आवश्यक है।
अमृता शेरगिल का नेहरू को पत्र
अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए, मनोज झा ने अमृता शेरगिल द्वारा जवाहरलाल नेहरू को 6 नवंबर, 1937 को लिखे एक पत्र का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि आजकल लोग चिट्ठियां तो पढ़ते हैं, लेकिन बेईमानी से पढ़ते हैं, सेमी-कॉलन के बाद का हिस्सा पढ़ते हैं, पूरा पत्र नहीं। अमृता शेरगिल ने नेहरू को लिखा था,