Rajasthan: पाली में बांडी नदी का प्रदूषण देख भड़के रिटायर्ड जज, सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने नेहड़ा बांध से लिए पानी के सैंपल
पाली जिले में बांडी नदी और नेहड़ा बांध में बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी ने दौरा किया। रिटायर्ड जस्टिस संगीत लोढ़ा ने खुद मोबाइल से रंगीन पानी की तस्वीरें लीं और किसानों की समस्याएं सुनीं।
पाली | राजस्थान के पाली जिले में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित और रंगीन पानी ने बांडी नदी और नेहड़ा बांध को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित एक उच्च स्तरीय कमेटी ने हाल ही में प्रभावित क्षेत्रों का विस्तृत दौरा किया। कमेटी का नेतृत्व कर रहे सेवानिवृत्त जस्टिस संगीत लोढ़ा ने जब बांडी नदी की रपट पर बहता हुआ गहरा रंगीन पानी देखा, तो वे अपनी नाराजगी छुपा नहीं सके। उन्होंने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और इस प्रदूषित पानी की तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड किए ताकि अदालत के समक्ष पुख्ता सबूत पेश किए जा सकें। इस दौरान उनके साथ पर्यावरण विशेषज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी और बड़ी संख्या में स्थानीय किसान मौजूद रहे।
नेहड़ा बांध में जहर घोलता औद्योगिक कचरा
पाली शहर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेहड़ा बांध पिछले चार दशकों से इलाके के निवासियों के लिए वरदान के बजाय अभिशाप साबित हो रहा है। किसानों का आरोप है कि शहर की कपड़ा फैक्ट्रियों से निकलने वाला रासायनिक पानी सीधे तौर पर बांडी नदी में बहा दिया जाता है, जो अंततः इस बांध में जाकर जमा हो जाता है। यह दूषित पानी न केवल फसलों को नष्ट कर रहा है, बल्कि भूजल स्तर को भी जहरीला बना चुका है। स्थिति इतनी विकट है कि अब गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों से भी टैंकरों के जरिए दूषित पानी लाकर गुपचुप तरीके से बांडी नदी में खाली किया जा रहा है।
बीमारियों का घर बनते सत्तर गांव
प्रदूषण की इस मार ने इलाके के करीब 70 गांवों की किस्मत बदल दी है। स्थानीय ग्रामीणों और किसानों का कहना है कि वे पिछले 40 साल से इस जहर को झेल रहे हैं। दूषित पानी के संपर्क में आने और जहरीली उपज का सेवन करने के कारण यहां किडनी, हृदय रोग और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां आम हो गई हैं। किसानों ने जस्टिस लोढ़ा को बताया कि उनकी नस्लें और फसलें दोनों ही इस रासायनिक पानी की भेंट चढ़ रही हैं। कई क्षेत्रों में तो जमीन इतनी बंजर हो चुकी है कि वहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता।
अवैध पाइपलाइन और प्रशासन की लापरवाही
निरीक्षण के दौरान किसान नेता महावीर सिंह सुकरलाई ने कमेटी को अवगत कराया कि जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण मंडल की लापरवाही के कारण फैक्ट्रियां आज भी अवैध तरीके से पानी छोड़ रही हैं। हाल ही में मंडिया रोड विकास नगर में एक अवैध पाइपलाइन पकड़ी गई थी, जिसके जरिए फैक्ट्रियों का गंदा पानी सीधे बांध की ओर भेजा जा रहा था। किसानों ने मांग की है कि प्रदूषण का स्थाई समाधान निकाला जाए और पिछले कई वर्षों में हुए आर्थिक नुकसान का उचित मुआवजा दिया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम ने पाइपलाइन तो उखाड़ दी, लेकिन दोषियों के खिलाफ कोई सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।
किसानों की आपबीती और मजबूरी
गाँव गढ़वाड़ा के किसान नाथूदान ने कमेटी के सामने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि कई टीमें पहले भी आईं और जांच करके चली गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और जिम्मेदार अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं। वहीं, किसान वागाराम विश्नोई ने बताया कि उनके पास सिंचाई के लिए इस दूषित पानी के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। जब वे इस पानी से फसल उगाते हैं, तो बाजार में उसे कोई खरीदने वाला नहीं मिलता। जो उपज बच जाती है, उसे परिवार खुद खाता है, जिससे वे बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
टैंकरों के जरिए फैल रहा जहर
मौके पर मौजूद स्थानीय जनप्रतिनिधियों और भाजपा नेता पुखराज पटेल ने भी प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बांडी नदी में अनट्रीटेड पानी छोड़ने वालों के खिलाफ सिंचाई विभाग को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। पूर्व प्रतिपक्ष नेता मदन सिंह जागरवाल ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि पूर्व में गुजरात से आए रासायनिक टैंकरों को नदी में पानी खाली करते हुए पकड़ा गया था। उन्होंने सुझाव दिया कि रात के समय निगरानी रखने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए ताकि अंधेरे का फायदा उठाकर नदी को प्रदूषित करने वालों पर नकेल कसी जा सके।
कमेटी की सख्त जांच और सैंपल संग्रह
जस्टिस संगीत लोढ़ा की टीम ने नेहड़ा बांध पर पहुंचकर पानी के सैंपल लिए। शुरुआत में टीम ने अपने स्तर पर सैंपल लिए थे, लेकिन किसानों के आग्रह पर उन्होंने उन स्थानों से भी दोबारा सैंपल लिए जहां पानी सबसे अधिक काला और बदबूदार था। इसके बाद टीम जेतपुर और गढ़वाड़ा के बीच स्थित रपट पर पहुंची। वहां के हालात देखकर जस्टिस लोढ़ा ने अधिकारियों से तीखे सवाल पूछे। उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि नदी की यह स्थिति स्पष्ट करती है कि नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
छपरिया गांव का दौरा और प्रशासनिक नाराजगी
निरीक्षण के दौरान किसानों ने जस्टिस लोढ़ा से छपरिया गांव चलने का अनुरोध किया, जहां प्रदूषण का स्तर सबसे भयावह बताया गया। हालांकि यह स्थान मुख्य मार्ग से काफी दूर था, फिर भी जस्टिस लोढ़ा ने अपना तय कार्यक्रम बदला और वहां जाने का फैसला किया। कच्चे और उबड़-खाबड़ रास्तों पर करीब 8 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद जब वे गांव पहुंचे, तो वहां के हालात देखकर दंग रह गए। खेतों में खड़ा पानी पूरी तरह से रंगीन था। जस्टिस लोढ़ा ने खुद वहां की फोटोग्राफी की और ग्रामीणों से बातचीत कर उनकी समस्याओं को नोट किया।
ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण और भविष्य की रणनीति
गांवों का दौरा करने के बाद कमेटी पाली सर्किट हाउस पहुंची, जहां लंच के बाद उन्होंने हाईवे के किनारे स्थित विभिन्न ट्रीटमेंट प्लांट्स की कार्यक्षमता की जांच की। उन्होंने बांडी नदी के बहाव क्षेत्र में जेसीबी चलाकर उसे समतल किए जाने पर भी नाराजगी जताई। जस्टिस लोढ़ा ने उन स्थानों का भी निरीक्षण किया जहां टैंकरों के पहियों के निशान मिले थे, जो इस बात का संकेत थे कि वहां अवैध रूप से पानी खाली किया गया था। पूरी जांच प्रक्रिया के दौरान जिला कलेक्टर एलएन मंत्री, पुलिस अधीक्षक आदर्श सिधु और प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी अमित सोनी सहित भारी पुलिस जाब्ता तैनात रहा।
न्याय की उम्मीद में टकटकी लगाए किसान
इस उच्च स्तरीय दौरे से पाली के किसानों में एक बार फिर न्याय की उम्मीद जगी है। किसानों का कहना है कि अब मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के हाथ में है, इसलिए उन्हें विश्वास है कि इस बार दोषियों को सजा मिलेगी और बांडी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा। कमेटी अपनी विस्तृत रिपोर्ट जल्द ही अदालत को सौंपेगी, जिसके आधार पर आगे की कानूनी कार्रवाई और सुधारात्मक कदम तय किए जाएंगे। फिलहाल, पाली का किसान अपनी जमीन और स्वास्थ्य को बचाने के लिए इस लड़ाई को अंतिम सांस तक लड़ने का संकल्प ले चुका है।