अरावली विवाद : अरावली पर्वतमाला की 100 मीटर वाली नई परिभाषा पर सुप्रीम कोर्ट में आज बड़ी सुनवाई

अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच आज सुनवाई करेगी। 100 मीटर की ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली मानने के केंद्र के सुझाव का राजस्थान और हरियाणा में विरोध हो रहा है।

नई दिल्ली | अरावली पर्वतमाला के संरक्षण और उसकी भौगोलिक परिभाषा को लेकर छिड़ा विवाद अब एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत की दहलीज पर पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच आज इस महत्वपूर्ण मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई करने जा रही है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली इस विशेष बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। यह मामला सीजेआई की वैकेशन कोर्ट में पांचवें नंबर पर सूचीबद्ध किया गया है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस सुनवाई के दौरान केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के उद्देश्य से नए और कड़े निर्देश जारी हो सकते हैं।

विवाद की मुख्य वजह और नई परिभाषा का असर

दरअसल यह पूरा विवाद तब गहराया जब सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति द्वारा दी गई सिफारिश को स्वीकार कर लिया था। इस नए सुझाव के मुताबिक केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली पर्वत श्रृंखला का आधिकारिक हिस्सा माना जाएगा। अरावली का यह कानूनी मामला साल 1985 से चल रहा है और पूर्व में गोदावर्मन और एम.सी. मेहता मामले में इस पर्वत श्रृंखला को व्यापक सुरक्षा प्रदान की गई थी। अब नई परिभाषा आने से राजस्थान और हरियाणा के पर्यावरणविदों में भारी रोष व्याप्त है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर मंडराता संकट

नए आदेश के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली एनसीआर के इलाकों में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। पर्यावरणविदों और विपक्षी दलों का स्पष्ट कहना है कि अगर छोटी पहाड़ियों को अरावली की श्रेणी से बाहर कर दिया गया तो इससे अवैध खनन को भारी बढ़ावा मिलेगा। यह बदलाव स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है क्योंकि अरावली दिल्ली और आसपास के राज्यों के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती है। हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि यह जनता के बीच एक गलतफहमी है और सरकार अरावली के संरक्षण के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

कानूनी चुनौतियां और पूर्व अधिकारियों का पक्ष

हरियाणा वन विभाग के पूर्व अधिकारी आरपी बलवान ने भी इस नई परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने गोदावर्मन मामले के तहत याचिका दायर कर केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार, हरियाणा सरकार और पर्यावरण मंत्रालय को पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिए हैं। इस याचिका में तर्क दिया गया है कि पहाड़ियों की ऊंचाई के आधार पर उनका वर्गीकरण करना वैज्ञानिक रूप से गलत है और इससे अरावली के अस्तित्व को नुकसान पहुंचेगा।

खनन गतिविधियों पर केंद्र का प्रतिबंध

विवाद के बढ़ते स्तर और जन आक्रोश को देखते हुए केंद्र सरकार ने 24 दिसंबर को एक बड़ा कदम उठाया। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अरावली क्षेत्र में किसी भी नए खनन पट्टे को मंजूरी देने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि अरावली श्रृंखला में नई माइनिंग लीज पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा और सभी राज्य सरकारों को इसका कड़ाई से पालन करना होगा। इस आदेश का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को अनियमित और अवैध खनन से बचाना है। आज की सुनवाई में कोर्ट इन सभी पहलुओं पर विचार कर अपना रुख स्पष्ट करेगा।