Barmer Rajasthan: बाड़मेर में एसडीएम-भाजपा प्रधान में तीखी बहस: 'इस्तीफा दे दो'
बाड़मेर (Barmer) जिले के गुड़ामालानी (Gudamalani) में एसडीएम केशव कुमार मीना (SDM Keshav Kumar Meena) और भाजपा प्रधान बिजलाराम चौहान (BJP Pradhan Bijalaram Chauhan) के बीच तीखी बहस हो गई। प्रधान ने अपनी पंचायत समिति में सुनवाई न होने का आरोप लगाया, जिस पर एसडीएम ने 'इस्तीफा दे दो' कहा। किसानों की 11 मांगों पर ज्ञापन देने पहुंचे प्रधान ने एसडीएम पर 'मीठी गोली' देने का आरोप लगाया।
बाड़मेर: बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी में एसडीएम केशव कुमार मीना और भाजपा प्रधान बिजलाराम चौहान के बीच तीखी बहस हो गई। प्रधान ने अपनी पंचायत समिति में सुनवाई न होने का आरोप लगाया, जिस पर एसडीएम ने 'इस्तीफा दे दो' कहा। किसानों की 11 मांगों पर ज्ञापन देने पहुंचे प्रधान ने एसडीएम पर 'मीठी गोली' देने का आरोप लगाया।
यह घटना शुक्रवार को उस समय हुई जब किसान संघर्ष समिति, गुड़ामालानी के बैनर तले प्रधान बिजलाराम चौहान के नेतृत्व में बड़ी संख्या में किसान अपनी 11 सूत्री मांगों को लेकर एसडीएम कार्यालय पहुंचे।
इन मांगों में फसल बीमा क्लेम, बिजली समस्या, जंगली सुअरों के आतंक से फसलों का बचाव और आदान-अनुदान जैसी महत्वपूर्ण समस्याएं शामिल थीं।
किसानों ने अपनी समस्याओं के समाधान की मांग करते हुए ज्ञापन दिया और धरने पर बैठ गए। इसी दौरान एसडीएम केशव कुमार मीना और प्रधान बिजलाराम चौहान के बीच तीखी नोकझोंक शुरू हो गई, जिसने जल्द ही एक गर्मागर्म बहस का रूप ले लिया।
प्रधान की शिकायत और एसडीएम का सीधा जवाब
बहस की शुरुआत प्रधान बिजलाराम चौहान की शिकायत से हुई, जिसमें उन्होंने अपनी पंचायत समिति में अपनी बात न सुने जाने का आरोप लगाया।
प्रधान ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "मेरी पंचायत समिति में कोई सुनता नहीं है। वहां पर चमचे और एजेंट बैठा रखे हैं, जो केवल अपने हितों को साधने में लगे रहते हैं, किसानों और आम जनता की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देता।" प्रधान की इस सीधी टिप्पणी ने माहौल को और गरमा दिया।
एसडीएम केशव कुमार मीना ने प्रधान की बात का तुरंत जवाब देते हुए कहा, "आप इस्तीफा क्यों नहीं देते हो?" उन्होंने आगे अपनी प्रशासनिक सीमाओं को स्पष्ट करते हुए कहा, "जो मेरी क्षमता में होगा, वही काम करूंगा।
आप कह दोगे कि चांद लाकर दे दो, मैं कहां से लाकर दूंगा?" एसडीएम का यह बयान उनकी हताशा और प्रधान की मांगों को अव्यावहारिक मानने की स्थिति को दर्शाता था।
यह प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि के बीच अधिकारों और जिम्मेदारियों की सीमा को लेकर चल रही खींचतान का एक स्पष्ट उदाहरण था।
'मीठी गोली' का आरोप और जवाब-तलब
प्रधान बिजलाराम चौहान ने एसडीएम के बयान पर पलटवार करते हुए कहा, "कितने ज्ञापन दिए, आप मीठी गोली दे देते हो।"
उनका इशारा था कि प्रशासन केवल आश्वासन देता है, लेकिन जमीनी स्तर पर समस्याओं का समाधान नहीं होता। प्रधान ने एसडीएम से पूछा कि उनके द्वारा दिए गए पत्रों का जवाब क्यों नहीं दिया गया।
एसडीएम ने इस पर जवाब देते हुए कहा, "क्या गोली देते हैं? उत्तर आएगा तभी तो दूंगा।" उन्होंने प्रधान द्वारा उठाए गए 'सुअरों के आतंक' के मुद्दे पर कहा, "सुअर का काम तो आपका है।"
इस पर प्रधान ने एसडीएम से लिखित में कार्रवाई करने की मांग की। यह दिखाता है कि दोनों पक्षों के बीच जिम्मेदारियों के बंटवारे को लेकर भी गहरी असहमति थी।
इस्तीफे की बात और पंचायत समिति में अधिकारों का मुद्दा
बहस के दौरान एसडीएम ने एक बार फिर प्रधान से इस्तीफा देने की बात कही। एसडीएम ने कहा, "क्यों हो प्रधान, इस्तीफा दे दो आप।" इस पर प्रधान ने व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दिया, "इस्तीफा ही है।" प्रधान ने अपनी पंचायत समिति में अपनी बात न चलने की शिकायत दोहराई, जिस पर एसडीएम ने कहा कि "पावर प्रधान के पास है, काम करना है।"
प्रधान ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि पंचायत समिति में "चमचे और एजेंट बैठा रखे हैं" और उन्होंने एसडीएम से इस संबंध में पत्र लिखने का आग्रह किया। ए
सडीएम ने भी कहा कि उन्होंने भी "खूब लेटर लिखे हैं" लेकिन प्रधान ने आरोप लगाया कि एसडीएम उनके पत्रों को केवल आगे बढ़ा देते हैं, जिससे कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
एसडीएम ने अपनी कार्यप्रणाली स्पष्ट करते हुए कहा कि वे वही काम करेंगे जिसमें वे सक्षम हैं।
आदान-अनुदान का वादा और किसानों की निराशा
बहस का एक महत्वपूर्ण बिंदु किसानों को आदान-अनुदान (इनपुट सब्सिडी) दिलाने का वादा था। प्रधान ने याद दिलाया कि दीपावली से पहले धरना स्थल पर एसडीएम ने 15 दिन में आदान-अनुदान दिलाने का आश्वासन दिया था। इस पर एसडीएम ने अपनी असमर्थता जताते हुए कहा, "मेरे हाथ में है क्या? पैसे डालना मेरे हाथ में है क्या?"
प्रधान ने कहा कि एसडीएम कम से कम यहां से लिख तो सकते हैं। एसडीएम ने बताया कि उन्होंने "50 लेटर लिख रखे हैं" और स्पष्ट किया कि "मेरे ओटीपी से रुपए ट्रांसफर हो जाएंगे" यह संभव नहीं है।
प्रधान ने एसडीएम पर "लॉलीपॉप" देने और "मीठी गोली" खिलाने का आरोप लगाया, और कहा कि अब तो "आप जाओगे" (आपका तबादला होगा)। एसडीएम ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि "मीठी गोली आप देते हो।"
किसान नेताओं का हस्तक्षेप और पुराने मुद्दे
बहस के दौरान किसान संघ के पदाधिकारी भी एसडीएम से उलझ पड़े।
एक किसान पदाधिकारी ने एसडीएम के पिछले बयानों पर सवाल उठाते हुए कहा कि दो महीने पहले एसडीएम ने 2 हजार किसानों की उपस्थिति में कहा था कि एक जमीन "पर्यटन विभाग की जमीन है और वहां पर पट्टे है" लेकिन अब उनकी बात बदल गई है।
किसान पदाधिकारी ने कहा, "आपकी दो बातें आ गई साहब।"
एसडीएम ने अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश की और कहा कि अगर नियम के विरुद्ध है तो वे उसे तोड़ेंगे।
उन्होंने किसान पदाधिकारी से "दो बात मत करो, एक बात करो" कहते हुए धैर्य से बात करने को कहा।
प्रधान के बीच में बोलने पर एसडीएम ने उन्हें टोकते हुए कहा, "आप बीच में मत बोलों, मैं इनसे बात कर रहा हूं।"
पैमाइश और नर्मदा जल की समस्या
किसान पदाधिकारी ने दो साल से लंबित पैमाइश (भूमि माप) के मुद्दे को उठाया और एसडीएम से पूछा, "आप से पैमाइश नहीं होती है क्या?"
उन्होंने सरकारी जमीन की रक्षा न हो पाने और नर्मदा का पानी बंद होने जैसी समस्याओं पर भी सवाल उठाए। किसान ने कहा, "यहां की पूरी सरकार आप हैं।
आपकी कौन सी क्षमता नहीं है? 2 साल पहले काम हो रहा था, वह बंद हो गया। होता हुआ काम बंद हो गया आपकी क्षमता से बाहर कैसे हो गया?"
एसडीएम ने इस पर जवाब देते हुए पूछा, "कौन से काम बंद हो गए?" और फिर कहा, "पूरे फील्ड में जो समस्या हो रही है वो मेरी वजह से हो रही है क्या?"
किसान पदाधिकारी ने एसडीएम पर "मॉनिटरिंग" न करने का आरोप लगाया, जिस पर एसडीएम ने दावा किया कि वे "अच्छी मॉनिटरिंग कर रहे हैं।"
'नेतागिरी' पर टिप्पणी और ईमानदारी का दावा
बहस के दौरान जब किसान पदाधिकारी प्रहलाद जी बोल रहे थे, तो एसडीएम ने प्रधान को बीच में बोलने पर डांटते हुए कहा, "आराम से करो नेतागिरी।"
इस पर प्रधान ने अपनी ईमानदारी का दावा करते हुए कहा, "नेतागिरी आज दिन तक नहीं की है। ईमानदारी से कह रहा हूं। कभी राजनीति नहीं की है।" प्रधान ने एसडीएम से अपने अधिकारों और कर्तव्यों को पूरा करने की मांग की।
किसानों ने एक बार फिर मुख्य रूप से आदान-अनुदान के मुद्दे पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दीपावली से पहले दिए गए धरने के दौरान एसडीएम ने 15 दिन में राशि आने का आश्वासन दिया था, लेकिन दो महीने बाद भी कुछ नहीं हुआ। किसानों ने कहा कि वे एसडीएम के दुश्मन नहीं हैं, लेकिन अगर काम उनके स्तर का नहीं है तो उन्हें स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए।
जिम्मेदारी और जवाबदेही पर अंतिम बहस
एसडीएम ने किसान ताजाराम से सीधे पूछा कि आदान-अनुदान का पैसा किसके स्तर का काम है। किसान ने कहा कि अगर उनसे नहीं हो रहा है तो वे "हाथ जोड़ लो"।
एसडीएम ने किसान से "गोली मत दो, सीधे बोलो" कहते हुए पूछा कि क्या पैसा एसडीएम की ओटीपी से जाएगा। किसान ने जवाब दिया कि इसके लिए "जिम्मेदार कौन है" और कहा कि "ओटीपी तो कलेक्टर की भी नहीं लगती है।"
एसडीएम ने पूछा, "मैं जिम्मेदार हूं क्या, इसके जिम्मेदार कौन है?" किसान ने स्पष्ट कहा कि "सरकार जिम्मेदार है, आप सरकार के यहां पर सबसे बड़े अधिकारी हैं। बात इतनी सी है।"
एसडीएम ने सीधे पूछा, "सीधी बात बताओ कि क्या एसडीएम की लापरवाही से आपका पैसा नहीं आ रहा है?"
किसान पदाधिकारी ने एसडीएम के पिछले वादे का हवाला देते हुए कहा, "आपने अपने मुंह से बोला था, आपने कहा था कि 15 दिन में आ जाएगा, लेकिन 2 महीने से नहीं आया। फिर जिम्मेदार कौन है?
अगर 15 दिन में नहीं आएगा तो आपने लॉलीपॉप क्यों दिया?" एसडीएम ने कहा कि उन्होंने "जो ऊपर बात की वो मैंने आपको बता दी" और अगर 15 दिन तक उनके पास पेंडिंग रहा है तो किसान उन्हें "आराम से जो कहना है वो कहें।"
किसानों का अंतिम ज्ञापन और प्रशासन को चेतावनी
इस लंबी और तीखी बहस के बाद किसानों ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि यह उनका "अंतिम ज्ञापन" है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि 3 दिनों के भीतर उनकी समस्याओं का ठोस समाधान नहीं किया गया तो किसान एक बड़ा प्रदर्शन करेंगे।
समिति पदाधिकारियों ने जोर देकर कहा कि किसी भी जन आंदोलन की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। किसानों ने कहा कि अब उन्हें केवल आश्वासन नहीं, बल्कि समाधान चाहिए।
एसडीएम ने अंततः किसानों को उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिसके बाद किसान वहां से लौट गए।
यह घटना बाड़मेर जिले में प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच समन्वय की कमी और जनता की समस्याओं को लेकर व्याप्त तनाव को उजागर करती है।
यह देखना होगा कि अगले तीन दिनों में प्रशासन किसानों की मांगों पर क्या ठोस कदम उठाता है और क्या यह आश्वासन केवल एक और "मीठी गोली" साबित होता है या वास्तव में समाधान की दिशा में एक पहल होती है।