सोशल मीडिया से दूर रहने की शर्त पर जमानत: हाईकोर्ट ने युवक को 3 साल सोशल मीडिया से दूर रहने को कहा

हाईकोर्ट ने एक युवक को महिला की तस्वीर पोस्ट कर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में तीन साल तक सोशल मीडिया से दूर रहने की शर्त पर जमानत दी है. शर्तों का उल्लंघन

हाईकोर्ट ने लगाई सख्त शर्त
जयपुर | हाईकोर्ट ने एक युवक को सोशल मीडिया पर महिला की तस्वीर पोस्ट कर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में तीन साल तक सोशल मीडिया से दूर रहने की शर्त पर जमानत दी है. जस्टिस अशोक कुमार जैन की अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि आरोपी इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसकी जमानत तुरंत रद्द कर दी जाएगी. यह फैसला एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल कायम करता है, जो डिजिटल अपराधों में सशर्त जमानत की प्रभावी निगरानी पर जोर देता है और यह दर्शाता है कि अदालतें ऐसे मामलों को गंभीरता से ले रही हैं.

महिला ने दर्ज कराई थी FIR
सरकारी वकील आरती शर्मा ने बताया कि पीड़िता महिला ने 21 फरवरी 2025 को आरोपी युवक के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. एफआईआर में आरोप लगाया गया कि युवक ने अलग-अलग मोबाइल फोन और विभिन्न इंस्टाग्राम आईडी का उपयोग करके महिला की संपादित तस्वीरें और वीडियो इंस्टाग्राम पर साझा किए थे. इसके साथ ही, उसने महिला को ब्लैकमेल करने का भी प्रयास किया था, जिससे पीड़िता मानसिक और भावनात्मक रूप से काफी परेशान थी. यह घटना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती साइबर बदमाशी का एक और उदाहरण है.

पीड़िता के बयान और ब्लैकमेलिंग के आरोप
पीड़िता ने अपने बयान में भी इन गंभीर आरोपों की पुष्टि की है और अपनी आपबीती सुनाई है. उसने स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपी युवक ने उसे लगातार धमकाया और उसके वैवाहिक संबंधों में बाधा डालने की कोशिश की. पीड़िता और सरकारी वकील दोनों ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करने की पुरजोर अपील की थी, ताकि उसे उसके कृत्यों के लिए न्याय मिल सके और भविष्य में कोई अन्य व्यक्ति ऐसे अपराध करने की हिम्मत न करे. यह मामला निजता के उल्लंघन और डिजिटल ब्लैकमेलिंग के गंभीर परिणामों को उजागर करता है.

बचाव पक्ष की दलीलें
आरोपी के वकील गिरीश खंडेलवाल ने अदालत में बहस करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने तर्क दिया कि यह मामला मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाने वाले अपराध की श्रेणी में आता है और युवक का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. वकील ने अदालत को बताया कि आरोपी की उम्र मात्र 19 साल है और वह कॉलेज में द्वितीय वर्ष का छात्र है, इसलिए मामले के ट्रायल में लगने वाले समय को देखते हुए उसे जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए. उन्होंने युवक के भविष्य और शिक्षा को ध्यान में रखते हुए मानवीय आधार पर जमानत की मांग की.

अदालत का फैसला और उसके निहितार्थ
जस्टिस अशोक कुमार जैन की अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. अदालत ने आरोपी को जमानत तो दी, लेकिन साथ ही एक कड़ी शर्त भी लगाई कि उसे अगले तीन साल तक किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से दूर रहना होगा. यह शर्त यह सुनिश्चित करने के लिए लगाई गई है कि आरोपी भविष्य में ऐसे किसी भी डिजिटल अपराध में शामिल न हो और पीड़िता को आगे कोई परेशानी न हो. इस फैसले से यह संदेश जाता है कि डिजिटल युग में अपराध करने वालों को कानूनी परिणाम भुगतने होंगे, भले ही उन्हें जमानत मिल जाए, और उन्हें अपने व्यवहार में सुधार करना होगा.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर लगाम
यह मामला सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बढ़ते खतरों को उजागर करता है, जहाँ व्यक्तियों की निजता और सम्मान को आसानी से भंग किया जा सकता है. ऐसे मामलों में कानूनी हस्तक्षेप और सख्त शर्तें लगाना आवश्यक हो जाता है ताकि समाज में एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित किया जा सके. यह घटना उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग दूसरों को परेशान करने या ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं. कानूनी प्रक्रिया यह दिखाती है कि पीड़ितों के पास न्याय मांगने का अधिकार है और न्यायपालिका ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है.