पाठ्यक्रम-1: आरबीएससी पाठ्यक्रम में पलायनवादी कविता

जयपुर. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) की कक्षा आठ की हिंदी किताब 'वसंत' में 'हम दीवानों की क्या हस्ती' कविता (poem) को लेकर विवाद (controversy) खड़ा हो ग

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आरबीएससी कक्षा आठ की हिंदी किताब है- वसंत। इसमें एक पाठ के रूप में कविता 'हम दीवानों की क्या हस्ती' भी है। शीर्षक का नाम है - प्रेमियों की हस्ती।

कक्षा आठ के बालकों की उम्र का आप हिसाब लगाइये तो तेरह से चौदह वर्ष के बालक-बालिकाएं इस वर्ग के होंगे यानि किशोर वय एकदम शुरुआती स्टेज में। यह वह समय है जब बालक बालिकाओं के जीवन की दिशा तय होती है। दुनिया के प्रति नजरिया बनता है, वैचारिकता का निर्माण  होता है । उस उम्र में बच्चों को साहित्य या कविताई के नाम पर आप पढ़ाएंगे-

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले ।
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।

इसके क्या मायने हैं? क्या धूल उड़ाते हुए घूमना इतना गर्वान्वित करने वाला कार्य है कि आप ठसक से किशोर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। मास्टर बेचारा खुद हैरान परेशान कि इस कविता का भावानुवाद करूँ तो क्या करूँ? 

राजस्थान में तो नकारा आदमी के लिए कहा जाता है- फलाना धूल उड़ाता फिरता है। फिर किशोरों को आत्मा में परमात्मा की छाया वाले फंडे से भी नहीं पढ़ा सकते।

न ही वे स्थूल के प्रति का सूक्ष्म का विद्रोह समझते हैं। बताइये कवि क्या कहना चाहता है? अरे भई वही जो कह रहा है!

जिस वय में राम और लक्ष्मण धनुष उठाकर राक्षसों से आक्रांत जंगल में प्रहरी बनकर निकल जाते हैं, जिस वय में राणा कुम्भा राजतिलक धारण कर वैरियों से निपट लेते हैं, जिस वय में जीजा बाई और समर्थ रामदास  शिवाजी को सिखाते है- दूर क्षितिज पर देख जरा, तेरा लक्ष्य महान है,  उस वय में आप सिखा रहे हैं- 

किस ओर चले? मत ये पूछो, बस, चलना है इसलिए चले।

जबर आपकी कविता और जबर आपका चयन बोध! आपकी ऐसी कविताएं पढ़कर वे जिम्मेदार बनेंगे कि पलायनवादी? प्लेटो ने इस दिन को देखते हुए ही शायद कविराज से कहा होगा-

"हम उसके सामने घुटने टेक कर मधुर, पवित्र और विलक्षण जीव के रूप में उसकी पूजा करेंगे। किंतु उसे हम यह भी अवश्य बता देंगे कि उसके जैसे लोगों को हमारे राज्य में रहने की अनुमति नहीं है।

हम उसके शरीर में सुगंधित अंगराग लगाकर और उसके सिर में सूत की माला पहनाकर सम्पूर्ण आदर के साथ कहेंगे- आप कहीं और जाइये।"