पूर्व सीएम अशोक गहलोत बोले: अरावली को फीते से नहीं, पर्यावरणीय योगदान से आंकें
पूर्व सीएम अशोक गहलोत (Former CM Ashok Gehlot) ने 'अरावली बचाओ मुहिम' (Save Aravalli Campaign) का समर्थन किया है। उन्होंने चेतावनी दी कि अरावली (Aravalli) के बिना स्थिति डरावनी होगी, और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से इसकी नई परिभाषा पर पुनर्विचार की अपील की।
जयपुर: पूर्व सीएम अशोक गहलोत (Former CM Ashok Gehlot) ने 'अरावली बचाओ मुहिम' (Save Aravalli Campaign) का समर्थन किया है। उन्होंने चेतावनी दी कि अरावली (Aravalli) के बिना स्थिति डरावनी होगी, और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से इसकी नई परिभाषा पर पुनर्विचार की अपील की।
गहलोत ने कहा कि ये पहाड़ियां और यहां के जंगल एनसीआर और आस-पास के शहरों के लिए 'फेफड़ों' का काम करते हैं। वे धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
अरावली के बिना स्थिति होगी वीभत्स
पूर्व मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि जब अरावली के रहते हुए स्थिति इतनी गंभीर है, तो इसके बिना स्थिति कितनी वीभत्स होगी, इसकी कल्पना भी डरावनी है। उन्होंने अरावली के पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डाला।
दरअसल, 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा। इस नए मानक से अरावली की 90% से ज्यादा पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।
इस फैसले के बाद अरावली को बचाने की आवाजें तेज हो गई हैं, और 'अरावली बचाओ मुहिम' को व्यापक समर्थन मिल रहा है।
#SaveAravalli अभियान से जुड़ने की अपील
अशोक गहलोत ने खुद इस मुहिम में शामिल होने की घोषणा की है। उन्होंने अरावली संरक्षण के पक्ष में चल रहे #SaveAravalli अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर (DP) बदली।
गहलोत ने बयान जारी कर कहा कि यह महज एक फोटो बदलना नहीं, बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है। इसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन बदलावों ने पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। गहलोत ने लोगों से अपनी डीपी बदलकर इस मुहिम का हिस्सा बनने की अपील की है।
केंद्र और सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की मांग
गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से विनम्र अपील की है कि भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए अरावली की इस परिभाषा पर पुनर्विचार किया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि अरावली को 'फीते' या 'ऊंचाई' से नहीं, बल्कि इसके 'पर्यावरणीय योगदान' के आधार पर आंका जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी देने के बाद करीब आधे राजस्थान में पर्यावरण को लेकर चिंता गहरा गई है। यह स्थिति गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बन सकती है।
पानी रिचार्ज करती है अरावली की पहाड़ियां
पूर्व सीएम ने बताया कि अरावली जल संरक्षण का मुख्य आधार है। इसकी चट्टानें बारिश के पानी को ज़मीन के भीतर भेजकर भूजल रिचार्ज करती हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पहाड़ खत्म हुए, तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर किल्लत होगी। इसके साथ ही वन्यजीव लुप्त हो जाएंगे और पूरी इकोलॉजी खतरे में पड़ जाएगी।
छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही अहम
वैज्ञानिक दृष्टि से अरावली एक निरंतर शृंखला है। गहलोत ने कहा कि इसकी छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही अहम हैं जितनी बड़ी चोटियां।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर दीवार में एक भी ईंट कम हुई, तो सुरक्षा टूट जाएगी। इसी तरह, अरावली की हर छोटी-बड़ी पहाड़ी का अपना महत्व है।
आधे राजस्थान में पर्यावरण को लेकर चिंता
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी देने के बाद उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, सिरोही समेत 15 जिलों में चिंता गहरा गई है। यह लगभग आधे राजस्थान को प्रभावित करेगा।
नई परिभाषा कहती है कि आस-पास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा। इस मानक से अरावली की 90% से ज्यादा पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।
इसका सीधा असर खनन, रियल एस्टेट और निर्माण गतिविधियों पर पड़ेगा, जिससे पर्यावरण को और अधिक नुकसान होगा। नतीजतन, भविष्य में मेवाड़ के रेगिस्तान में बदलने का खतरा होगा।
एक्सपर्ट का दावा: गर्मी और भूकंप का असर बढ़ने का खतरा
विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली पर्वतमाला समाप्त होने से प्रदेश में मरुस्थल का विस्तार होगा। प्रदेश में गर्म हवाओं का व्यापक असर बढ़ता जाएगा, जिससे तापमान में वृद्धि होगी।
इसके परिणामस्वरूप, प्रदेश में बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून से बारिश नहीं होगी। भूकंप का असर ज्यादा होगा और अरावली से निकलने वाली नदियां सूख जाएंगी।
फसलों पर बुरा असर होने के साथ भौगोलिक दशाओं और जलवायु पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा।
11 हजार टीले खत्म हो जाएंगे
भारतीय वन सर्वेक्षण के आकलन के मुताबिक, प्रदेश के 15 जिलों में मौजूद 12 हजार 81 अरावली पहाड़/टीले 20 मीटर या उससे अधिक ऊंचे हैं। हालांकि, इनमें से केवल 1 हजार 48 ही ऐसे हैं जो 100 मीटर से ज्यादा ऊंचे हैं।
इसका मतलब है कि 11 हजार 33 संरचनाएं अरावली नहीं कहीं जा सकेंगी, जिससे वे संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी। 20 मीटर ऊंचाई का मानक इसलिए अहम माना जाता रहा है, क्योंकि इतनी ऊंचाई की पहाड़ियां भी हवा के प्रवाह को रोकने वाली प्राकृतिक दीवार का काम करती हैं।