India-USA-Russia-China: भारत-अमेरिका टकराव: रूसी तेल, टैरिफ़ और दबाव की राजनीति

भारत सस्ती रूसी सप्लाई लेगा या फिर अमेरिकी दबाव में झुकेगा? समय बताएगा… लेकिन इतना तय है कि भारत का फैसला वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों को हिला देगा।

दुनिया के शतरंज के बोर्ड पर भारत आज एक ऐसा मोहरा बन चुका है, जिसकी चाल देखकर बड़े-बड़े सुपरपावर देश बेचैन हो रहे हैं। तेल के कुओं से लेकर कूटनीति के गलियारों तक सवाल उठ रहा है – क्या भारत अपने फैसले खुद करेगा या फिर दबाव में झुकेगा?

पीटर नवारो का हमला

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर विवादित टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि “भारत में ब्राह्मण, आम भारतीयों की कीमत पर मुनाफ़ा कमा रहे हैं।”
नवारो ने फ़ॉक्स न्यूज़ पर भारत की रूस और चीन के साथ बढ़ती नजदीकी पर सवाल उठाया और यहां तक कह दिया कि “ये युद्ध पुतिन का नहीं, मोदी का युद्ध है।”

टैरिफ़ विवाद

भारत पर पहले से ही अमेरिका 25% रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगा चुका था। रूस से तेल खरीदने के बाद ट्रंप प्रशासन ने और 25% जोड़ दिया। यानी अब भारत पर 50% अमेरिकी टैरिफ़ लागू है।
भारत साफ़ कह चुका है – “जहां से भी सस्ता तेल मिलेगा, वहीं से खरीदेंगे। यह हमारा राष्ट्रीय हित है।”

रूस से तेल क्यों?

2022 से पहले भारत रूसी तेल नहीं खरीदता था। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने छूट देकर भारत को आकर्षित किया। भारत तेल आयात कर उसे रिफ़ाइन करके यूरोप, अफ्रीका और एशिया को बेच रहा है, जिससे आर्थिक फायदा भी हो रहा है और रूस को सपोर्ट भी।

भारत क्यों चुप?

चीन ने अमेरिका पर जवाबी टैरिफ़ लगाया था, लेकिन भारत ऐसा नहीं कर पा रहा। वजहें साफ़ हैं—

  1. अमेरिकी आयात पर टैरिफ़ लगाने से भारतीय उद्योगों को नुकसान होगा।
  2. Rare Earth Minerals का हथियार भारत के पास नहीं।
  3. ट्रंप के और टैरिफ़ लगाने का खतरा।
  4. आईटी सेक्टर पर पलटवार का भारी असर।
  5. रूस बनाम अमेरिका का गणित

भारत को रूसी तेल पर औसतन 4.5 डॉलर प्रति बैरल की छूट मिल रही है। ICRA के मुताबिक भारत ने 2025 तक 3.8 अरब डॉलर की बचत की। लेकिन अमेरिका को भारत हर साल 87 अरब डॉलर का निर्यात करता है। सवाल है – क्या अरबों डॉलर की बचत के लिए इतना बड़ा व्यापार दांव पर लगाया जा सकता है?

भारत-रूस व्यापार

भारत और रूस का व्यापार 68.7 अरब डॉलर पर पहुंच चुका है, जिसमें भारत का निर्यात सिर्फ 4.8 अरब डॉलर है जबकि आयात 63.8 अरब डॉलर। ऐसे में रूस से तेल आयात रोकना आसान नहीं है।

WTO का रास्ता बंद

भारत चाहकर भी WTO में अमेरिका के खिलाफ केस नहीं लड़ सकता क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने 2019 से इसकी अपील बॉडी को ठप कर रखा है।

आगे का रास्ता

भारत के सामने अब तीन ही विकल्प हैं—

  1. घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।
  2. नए व्यापार समझौते खोजना।
  3. कूटनीतिक संतुलन साधकर समय का इंतजार करना।

ट्रंप प्रशासन की नाराज़गी सिर्फ़ रूस से तेल खरीद पर नहीं है, बल्कि असली मुद्दा है भारत का बढ़ता वैश्विक प्रभाव। भारत के लिए चुनौती है – राष्ट्रीय हित की रक्षा करते हुए अमेरिकी बाज़ार और रिश्तों को संभालना।

✨ अंतिम सवाल
भारत सस्ती रूसी सप्लाई लेगा या फिर अमेरिकी दबाव में झुकेगा?
समय बताएगा… लेकिन इतना तय है कि भारत का फैसला वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों को हिला देगा।