जल प्रदूषण विधेयक पर नीरज डांगी का भाषण: जल प्रदूषण विधेयक 2025: नीरज डांगी ने उठाए गंभीर सवाल

राज्यसभा (Rajya Sabha) में सांसद नीरज डांगी (Neeraj Dangi) ने जल प्रदूषण और नियंत्रण अधिनियम विधेयक 2025 (Water Pollution and Control Act Amendment Bill 2025) पर गंभीर आपत्तियां उठाईं। उन्होंने दंड प्रावधानों को कमजोर करने और अत्यधिक केंद्रीकरण पर चिंता व्यक्त की, राज्यों की स्वायत्तता और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी पर जोर दिया।

नई दिल्ली: राज्यसभा (Rajya Sabha) में सांसद नीरज डांगी (Neeraj Dangi) ने जल प्रदूषण और नियंत्रण अधिनियम विधेयक 2025 (Water Pollution and Control Act Amendment Bill 2025) पर गंभीर आपत्तियां उठाईं। उन्होंने दंड प्रावधानों को कमजोर करने और अत्यधिक केंद्रीकरण पर चिंता व्यक्त की, राज्यों की स्वायत्तता और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी पर जोर दिया।

बुधवार को राज्यसभा में जल प्रदूषण और नियंत्रण अधिनियम विधेयक 2025 पर अपनी बात रखते हुए राजस्थान से सांसद नीरज डांगी ने मंत्री भूपेन्द्र यादव के बाद कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए। उन्होंने कहा कि सदन में कोई भी सदस्य स्वच्छ जल, सतत विकास और मजबूत पर्यावरणीय शासन का विरोधी नहीं है। भारत की नदियाँ, झीलें, तालाब और भूमिगत जल स्रोत देश की जीवन रेखाएँ हैं। प्रश्न यह नहीं है कि हम कार्य करना चाहते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि क्या यह विधेयक वास्तव में जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक मजबूत व्यवस्था लागू करता है या नहीं।

भारत में घटती स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता

सांसद डांगी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता लगातार घट रही है। नदियों, झीलों और भूजल स्रोतों में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में यह अधिनियम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को उद्योगों पर नियंत्रण, निरीक्षण और दंड देने का अधिकार देता है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि अधिकांश बोर्ड जनशक्ति, संसाधन और प्रयोगशाला सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं।

इसी कारण बड़े उद्योग और कॉर्पोरेट व्यवस्थाएँ नदियों में रसायन, भारी धातुएँ और अपशिष्ट पदार्थ समय-समय पर छोड़ते रहते हैं, जिससे जल प्रदूषण अत्यधिक बढ़ता जा रहा है। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि वर्तमान स्वरूप में यह विधेयक पर्याप्त नहीं है और इस पर पूर्ण चर्चा की आवश्यकता है।

विधेयक के कमजोर दंड प्रावधान और केंद्रीकरण

यह संशोधन 1974 के जल अधिनियम को आधुनिक बनाता है, जो पानी के प्रदूषण को विनियमित करता है और केंद्र तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाता है। 2024 का संशोधन मुख्य रूप से पेनल्टी फ्रेमवर्क में बदलाव करता है और केंद्र सरकार की विनियमन शक्तियों को बढ़ाने का काम करता है। डांगी ने आपराधिक दंड से मौखिक जुर्माने की ओर बदलाव पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ज्यादातर अपराधों में जहाँ पहले जेल होती थी, अब वह बदलकर 100 रुपये से 15 लाख रुपये के बीच के आर्थिक दंड में बदल गई है। जेल तभी होगी जब जुर्माना भरा न जाए।

ऐसी स्थिति में सजा आपराधिक न्यायालय नहीं, बल्कि जज तय करेंगे। लेकिन इतनी छोटी पेनल्टी बड़े कंपनियों और कॉर्पोरेट्स को नियमों को तोड़ने से रोकने के लिए कितनी असरदार होगी, यह भी एक आवश्यक प्रश्न है। उन्होंने कहा कि दंड के प्रावधान कमजोर हैं। मौजूदा कानून में प्रदूषण मानकों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर कठोर दंड और अभियोजन की व्यवस्था है, परंतु इस संशोधन में कई गंभीर उल्लंघनों को सिर्फ मामूली आर्थिक जुर्माने में बदल दिया गया है, जो चिंता का विषय है।

जुर्माने का उद्देश्य केवल वसूली नहीं, बल्कि विरोध

सांसद डांगी ने कहा कि जुर्माने का उद्देश्य केवल वसूली नहीं, बल्कि विरोध होता है। जब किसी उद्योग को यह लगे कि प्रदूषण करने पर लगने वाला जुर्माना उसके लाभ से कम है, तो निश्चित रूप से ऐसा दंड प्रभावी नहीं हो पाता है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण अक्सर लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर लागत बचाने की सोची-समझी रणनीति होती है। ऐसे में दंड प्रावधानों को कमजोर करना अत्यधिक चिंता का विषय है।

उन्होंने केंद्र सरकार की भूमिका पर भी बात की। विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सलाह करके कुछ विशेष प्रकार की इंडस्ट्रीज या ट्रीटमेंट प्लांट्स को धारा 25 के तहत अनुमति की जरूरत से छूट दे सकती है। यह नए आउटलेट और डिस्चार्ज के लिए सहमति देने, मना करने या रद्द करने के दिशा-निर्देश भी जारी कर सकती है। यह केंद्र की शक्तियों का आधार रहेगा।

अधिकारों का अत्यधिक केंद्रीयकरण

विधेयक में ऐसे कई प्रावधान हैं, जिनके अंतर्गत उद्योगों को दिए जाने वाले अनुमति पत्र, जल निकासी मानकों का निर्धारण एवं स्थलीय जल स्रोतों से जुड़ी हुई अधिसूचनाओं पर केंद्र का नियंत्रण बढ़ जाता है। दंड प्रणाली में नई व्यवस्था के तहत पेनल्टी आपराधिक कार्रवाई के बजाय प्रशासनिक कार्रवाई से लगाई जाएगी। अपील केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित की गई अपील प्राधिकरण से की जा सकेगी, और दंड निधि का उपयोग प्रदूषण नियंत्रण कार्यकलाप के लिए पर्यावरण संरक्षण फंड में जमा की जाएगी।

सांसद डांगी ने कहा कि पर्यावरणीय मानक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित होना आवश्यक है, परंतु अत्यधिक केंद्रीयकरण राज्य स्तर के फैसलों और जवाबदेही को कमजोर बनाता है। राज्यों में नदी-नालों, जल स्रोतों, स्थानीय उद्योगों, भूगर्भीय परिस्थितियों और प्रदूषण प्रवाह की बेहतर स्थिति की जानकारी राज्यों को ज्यादा होती है। ऊपर से थोपे गए आदेश न तो व्यावहारिक होते हैं और न ही समयबद्ध हो पाते हैं। इसलिए राज्यों को कमजोर करना अनुचित होगा।

निगरानी और अनुपालन व्यवस्था में अस्पष्टता

निगरानी और अनुपालन व्यवस्था में भी अस्पष्टता है। ऑनलाइन निगरानी, डिजिटल रिकॉर्डिंग और रियल टाइम डेटा जैसी बातें आधुनिक और स्वागत योग्य हो सकती हैं, लेकिन विधेयक में इनकी तकनीकी मानक, डेटा की प्रमाणिकता, स्वतंत्र ऑडिट और राज्यों के वित्तीय दायित्व इन सब पर स्पष्टता का अभाव नजर आता है। उन्होंने कहा कि यदि डिजिटल डेटा की प्रमाणिकता सुनिश्चित नहीं की जाएगी, तो भौतिक निरीक्षण से डिजिटल निरीक्षण पर जाना केवल माध्यम बदलेगा, प्रभाव नहीं बदल पाएगा।

मणिपुर और पूर्वोत्तर में प्रदूषण की गंभीर स्थिति

सांसद डांगी ने मणिपुर और पूर्वोत्तर में प्रदूषण की स्थिति पर भी प्रकाश डाला। हाल ही में एक अध्ययन में लोकटक झील के आसपास की जमीनों के इस्तेमाल में बदलाव, विशेष रूप से खेती को बढ़ावा और लोगों का वहाँ बसना, तथा झूम खेती के कारण झील के पानी की गुणवत्ता लगातार खराब होने की बात सामने आई है। झील में बहने वाली मुख्य नदियों के लिए किए गए टेस्ट में पाया गया कि ज्यादा इस्तेमाल होने वाले इलाकों में, जहाँ खेती या घरों के लिए जंगल को साफ किया जा रहा है, वहाँ से गुजरने वाली नदियों जैसे नांगुल नदी में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम है और ऑर्गेनिक प्रदूषण अत्यधिक बढ़ रहा है।

लोकटक झील एक रामसर साइट है, जहाँ मछली पालन, हाइड्रो पावर और खतरे में पड़ रही संगाई हिरण की प्रजाति के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए पानी की गुणवत्ता में यह गिरावट एक बड़ी गंभीर चेतावनी है। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय दबाव पूरे पूर्वोत्तर में एक बड़े स्वरूप को दिखाता है, जहाँ पूर्वोत्तर अचानक प्रदूषण का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है। असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में साल भर में पीएम 2.5 का स्तर लगातार ज्यादा रहता है, ऐसे में परिस्थितियाँ प्रदूषण को अत्यधिक बढ़ा रही हैं। गाइडलाइंस का भी पालन नहीं हो रहा है, जो 5 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब की गाइडलाइंस है, वह पूर्ण नहीं हो पा रही है।

मणिपुर की मानवीय त्रासदी और केंद्र की उदासीनता

सांसद डांगी ने कहा कि मणिपुर बहुत ही संवेदनशील राज्यों में से है, और पिछले दो साल से भी ज्यादा वक्त से वहाँ की परिस्थितियाँ बड़ी गंभीर बनी हुई हैं। जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। दो जातीय समुदायों के बीच हिंसा में अनगिनत मौतें हुईं और अनगिनत लोग बेघर हो गए। दहशत का माहौल रहा, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और यौन हिंसा हुई। ऐसे में जहाँ कानून व्यवस्था पूरी तरीके से चौपट हो गई और मुख्यमंत्री के नियंत्रण से हालात बाहर चले गए, वहाँ संभालने के लिए केंद्र ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वहाँ जाकर हालात का जायजा लिया और लोगों से मुलाकातें कीं। प्रधानमंत्री को वहाँ जाना चाहिए था, लेकिन 2 साल से भी ज्यादा का वक्त निकल गया, प्रधानमंत्री ने उस हालात की सुध तक नहीं ली। राज्य में उनकी मौजूदगी होनी चाहिए थी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री का पहला दौरा सितंबर 2022 में मणिपुर हिंसा से पहले हुआ था, तब वोट लेना था। जहाँ हालात बिगड़े, कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग रखी और राष्ट्रपति शासन समय के साथ लागू हुआ।

सांसद डांगी ने कहा कि प्रधानमंत्री का मणिपुर दौरा औपचारिकता मात्र था, बहुत छोटा दौरा हुआ और असली हालातों पर चर्चा नहीं हुई। बड़ा लंबा-चौड़ा इन्वेस्टमेंट पैकेज की घोषणा जरूर हुई, लेकिन उन घोषणाओं में उन चीजों का अभाव रहा जो हालात वहाँ पर थे, जो यौन हिंसा हुई, जो लोग बेघर हो गए, उनको संभालने का काम उस दौरे में कहीं नजर नहीं आया। उन्होंने जोर देकर कहा कि मणिपुर में जो हालात हुए, उससे जल प्रदूषण भी बढ़ा, और हालात संभले ही नहीं, बिगड़ते चले गए, इसलिए आज विधेयक लाने की आवश्यकता पड़ी।

राजस्थान में पेयजल संकट और प्रदूषण

सांसद डांगी ने राजस्थान की ओर भी प्रकाश डाला, जहाँ हालात बहुत गंभीर हैं। पेयजल की समस्या अत्यधिक है। राजस्थान में पेयजल के हालात इस तरह के हैं कि कई जातियों के अंदर तो यह परिस्थितियाँ हैं कि उनके लिए अलग पृथक मटके पानी के रखे जाते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ जल की बात छोड़ो, वहाँ पेयजल पहुँचाना ही बहुत बड़ी बात होगी। सरकार को इस पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने निवेदन किया कि देश के करोड़ों लोग, विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र के नागरिक, आज भी सीधे नदियों, तालाबों और भूजल पर निर्भर हैं। उनकी जल की व्यवस्था होगी तो वह भी बहुत बड़ा कदम होगा। यदि जल प्रदूषण के प्रावधान कमजोर होंगे, तो सर्वाधिक प्रभावित भी यही समुदाय होंगे।

विधेयक में आवश्यक सुधारों की मांग

सांसद डांगी ने मांग की कि विधेयक में प्रभावित समुदायों से अनिवार्य परामर्श शामिल होना चाहिए। प्रदूषण से प्रभावित लोगों के लिए न्यूनतम मुआवजे की वैज्ञानिक व्यवस्था भी की जाए। दूषित जल स्रोतों के पुनरुत्थान की समयबद्ध योजना तय की जाए। परंतु इन महत्वपूर्ण विषयों पर मौन रहना बहुत ही गंभीर कमी है। उन्होंने निवेदन किया कि इस कमी को पूर्ण किया जाए।

उन्होंने कहा कि यह संशोधक विधेयक यदि वास्तव में प्रभावी होना चाहता, तो इसमें तमाम नदी बेसिन स्तर पर प्रदूषण बजटिंग, औद्योगिक डिस्चार्ज की वैज्ञानिक सीमा और भूजल पुनर्भरण तथा अपशिष्ट जल पुनः उपयोग की नीति से एकीकरण शामिल होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि देश में कई नदियाँ जैविक रूप से मृत हो चुकी हैं और उनका किसी भी प्रकार से पुनरुपयोग नहीं हो सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधेयक मुख्यतः केवल दंड और प्रशासनिक ढांचे में बदलाव पर केंद्रित है, और वह भी पर्याप्त नहीं है। यह वास्तविक समाधान नहीं है, इस पर जोर देने की जरूरत है।

कठोर दंड और प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता

सांसद डांगी ने कहा कि जल प्रदूषण आज हमारे देश की सबसे बड़ी पारिस्थितिक चुनौती में से एक है। हमें कठोर दंड और प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता है। हमें सहकारी संघवाद, पारदर्शी और उत्तरदायी निगरानी व्यवस्था, और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नदियाँ आज प्रदूषण मुक्त नहीं, प्रदूषण युक्त जरूर हैं। गंगा, यमुना, सतलुज, कावेरी, साबरमती जैसी देश की लगभग हर प्रमुख नदी अत्यधिक प्रदूषित श्रेणी में दर्ज है। ऐसे में जब नदियों का जल स्नान योग्य ही नहीं है, तो पीने योग्य कैसे होगा, यह देखने की जरूरत है। अब वक्त है बहाव को फिर से बचाया जाए, कहीं देर न हो जाए और सब कुछ बह न जाए।

सुझाए गए उपाय:

  • उद्योगों के लिए रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम अनिवार्य किए जाएँ।
  • पर्यावरण मापदंडों के उल्लंघन पर तत्काल और कठोर दंड लागू हो।
  • गंदे पानी के शोधन के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स के लिए स्वतंत्र ऑडिट अनिवार्य हो।
  • भूजल दोहन और प्रदूषण को भी अधिनियम के अंतर्गत विशेष रूप से जोड़ा जाए।

इन्हीं कारणों से सांसद डांगी ने सभापति महोदय से निवेदन किया कि जल प्रदूषण एवं नियंत्रण संशोधन विधेयक 2025 को वर्तमान स्वरूप में पारित न किया जाए। इसे चयन समिति को भेजा जाए, इस पर व्यापक परामर्श हो और एक लंबी बहस हो। उसके पश्चात एक अत्यधिक वैज्ञानिक, व्यावहारिक और सुदृढ़ विधेयक सदन में लाया जाए और पटल पर रखा जाए, तो वह व्यावहारिक होगा। उन्होंने मंत्री जी से राजस्थान पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया, जहाँ जल स्रोतों की परिस्थितियाँ बहुत ही खराब हैं और पीने के पानी की भी कमी है। उन्होंने अपनी बात एक पंक्ति के साथ समाप्त की: “नदियों ने कितनी बार पुकारा है और हमको हम तो वही थे जो हर बार किनारे पर ही खड़े रहे।”