जालोर में रावण का 'बारहवां' दहन: जालोर में विजयादशमी के दो दिन बाद हुआ रावण दहन, अधजले पुतलों को कुल्हाड़ी से काटकर जलाया

जालोर में इस साल विजयादशमी पर रावण दहन नहीं हो सका। अधजले पुतलों को दो दिन बाद कुल्हाड़ी से काटकर पेट्रोल डालकर जलाया गया, जिसे स्टाफ ने 'रावण का बारहवां' कहा।

अधजले पुतलों को कुल्हाड़ी से काटकर जलाया

जालोर | जालोर में इस वर्ष विजयादशमी का पर्व एक अनोखी घटना का गवाह बना, जहाँ रावण दहन अपने निर्धारित दिन पर नहीं हो सका। शहर के स्टेडियम में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के अधजले पुतले दो दिनों तक पड़े रहे, जो स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गए। अंततः, विजयादशमी के बजाय द्वादशी को इन पुतलों का दहन संभव हो पाया, जिसे नगर परिषद के स्टाफ ने मज़ाकिया लहजे में 'रावण का बारहवां' कहकर संबोधित किया, जो इस असामान्य स्थिति का सटीक वर्णन था।

दहन में अप्रत्याशित देरी और उसके कारण

दरअसल, विजयादशमी के दिन रावण दहन में अप्रत्याशित देरी का मुख्य कारण ठेकेदार द्वारा समय पर पुतलों को खड़ा न कर पाना था। जब पुतले खड़े किए गए, तो मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने स्पार्किंग के माध्यम से आग लगाने का प्रयास किया, लेकिन यह कोशिश नाकाम रही। इसके बाद, माचिस और पेट्रोल का उपयोग करने के बावजूद, पुतले पूरी तरह से जल नहीं पाए और अधजली अवस्था में ही रह गए। यह अजीबोगरीब स्थिति दो दिनों तक बनी रही, जिससे शहर में निराशा और असमंजस का माहौल रहा।

'रावण का बारहवां' – एक अनोखा समाधान

शनिवार को, जब स्थिति असहज हो गई, नगर परिषद के स्टाफ ने इस समस्या का समाधान करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बड़ी मशक्कत के साथ, कुल्हाड़ी की मदद से अधजले पुतलों को काटना शुरू किया। पुतलों के टुकड़ों पर पेट्रोल छिड़ककर अंततः उन्हें पूरी तरह से जलाया गया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, स्टाफ के सदस्यों ने आपस में मज़ाक करते हुए टिप्पणी की, "लो अब कर दिया, रावण का बारहवां!" यह टिप्पणी इस असामान्य घटना का सटीक और व्यंग्यात्मक वर्णन करती थी, क्योंकि आमतौर पर किसी व्यक्ति के देहांत के बारहवें दिन 'बारहवां' संस्कार किया जाता है।

जालोर में 'देर से जला रावण' बना चर्चा का विषय

जालोर के इतिहास में यह पहला अवसर था जब विजयादशमी पर रावण दहन अपने निर्धारित दिन पर नहीं हो सका और पुतलों को इस तरह से 'देर से जलाना' पड़ा। यह घटना पूरे शहर में गहन चर्चा का विषय बन गई। जहां एक ओर इस घटना ने प्रशासन और आयोजन समिति की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए, वहीं दूसरी ओर यह एक अनोखे और अविस्मरणीय अनुभव के रूप में भी याद किया जाएगा। यह घटना दर्शाती है कि कभी-कभी पारंपरिक आयोजनों में भी अप्रत्याशित बाधाएं आ सकती हैं, जिनका समाधान स्थानीय स्तर पर अनोखे तरीकों से किया जाता है। जालोर का 'देर से जला रावण' अब एक किंवदंती बन गया है।