कांग्रेस और राहुल गांधी की यात्रा: पदयात्रा के बहाने पद पाने की चाहत में सुनील दत्त की वे यात्राएं जो मानवता की मिसाल हैं

गहलोत और पायलट के बीच एक इंटरव्यू के बाद एक ​बार फिर से खड़ी हुई रार बिठाने की कोशिश भी संगठन महासचिव वेणुगोपाल ने साफ की हैं वेणुगोपाल ने कहा है कि किसी मंत्री ने कोई नाटक रचाया तो फिर चौबीस घंटे में पार्टी से हिसाब कर दिया जाएगा।

rahul gandhi padyatra in rajaasthan

Jaipur | भारत जोड़ो यात्रा के नाम पर कांग्रेसजन तमाम मतभेद भुलाकर एक हो रहे हैं। कांग्रेसियों के लिए राहुल गांधी की यात्रा सरकार की आमद मरहबा—मरहबा हो रही है, लेकिन कांग्रेस संगठन की स्थिति कोई ठीक नहीं है। पहली वाली लाइन का मतलब यही है कि तमाम मतभेद भुला तो रहे हैं, लेकिन मतभेद तमाम हैं।राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बहुत जल्द राजस्थान में एंट्री करके वाली है।

राजस्थान में राहुल की यह यात्रा इसलिए भी खास है क्योंकि राजस्थान कांग्रेस शासित राज्य है और अगले ही साल प्रदेश में विधानसभा के लिए चुनाव होने है। राजस्थान की प्रदेश कांग्रेस के नेता राहुल की यात्रा को लेकर राजस्थान में बहुत उत्साहित नजर आ रहे है और दावा कर रहे है कि अगले साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस फिर से दमदार वापसी कर रही है।

गहलोत और पायलट के बीच एक इंटरव्यू के बाद एक ​बार फिर से खड़ी हुई रार बिठाने की कोशिश भी संगठन महासचिव वेणुगोपाल ने साफ की हैं वेणुगोपाल ने कहा है कि किसी मंत्री ने कोई नाटक रचाया तो फिर चौबीस घंटे में पार्टी से हिसाब कर दिया जाएगा। इसी बीच मंत्री नहीं रहे हरीश चौधरी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जाहिर करने की कोशिश की तो उन्हें चेताते हुए डपट भी दिया।

खैर! हम बात कर रहे हैं कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का। इसका 2023 के चुनावों में क्या असर होगा उसका जवाब अगर भारत के राजनीतिक इतिहास में टटोलेंगे तो आसानी से मिल जायेगा। क्योंकि भारत में इस तरह की राजनीतिक यात्राओं का भी अपना एक इतिहास रहा हैं। अगर सही सही कहा जाए तो राहुल इस यात्रा के बहाने अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इतिहास को दोहरा रहे है लेकिन राहुल इस यात्रा का राजनीतिक फायदा कितना उठा पाएंगे यह तो चुनाव ही तय करेंगे।

लेकिन इस तरह की यात्राओं के इतिहास पर डालकर यह जानने की कोशिश करते है आखिर राजस्थान में इस तरह की यात्राओं का क्या असर रहता है।

देश में सबसे चर्चित इस तरह की यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की रही है। चार हजार से ज्यादा किलोमीटर पैदल चलकर चंद्रशेखर ने एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। चंद्रशेखर इस यात्रा पर देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ जनमत तैयार करने के लिए निकले थे और 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक चली उनकी इस यात्रा ने चंद्रशेखर को पूरे देश में लोकप्रिय कर दिया लेकिन चुनाव से पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है और कांग्रेस रिकॉर्ड सीट जीतकर एक बार फिर से सरकार बना लेती है। 

चंद्रशेखर की इस यात्रा का ना तो लोकसभा चुनावों में कोई राजनीतिक फायदा मिला और जब राजस्थान में विधानसभा के अगले चुनाव हुए तो कांग्रेस ने फिर से वापसी कर ली। सियासी फायदा अपनी तरफ है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की चंद्रशेखर की इस भारत यात्रा ने पूरे देश में उन्हें लोकप्रिय कर दिया। आज चन्द्रशेखर के नहीं रहने के 15 साल बाद भी भारत के हर राज्य में उनका प्रशंसक मिल जाएगा। इसकी एक बड़ी वजह उनकी यात्रा भी है। हालांकि उनके बनाए भारत यात्रा केन्द्र भी चर्चा में रहे थे। उन पर कहानी फिर कभी सुनाएंगे।

कांग्रेस में भी यात्रा पॉलिटिक्स का इतिहास बेहद रोचक रहा हैं। जब राहुल के पिता राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी इस तरह की एक यात्रा की। साल 1985 का था और कांग्रेस अपना शताब्दी वर्ष मना रही थी। उसी साल राजीव एक यात्रा पर निकले।

यात्रा को नाम दिया गया कांग्रेस संदेश यात्रा। हालांकि इस यात्रा के बाद चुनावों में थोड़ा वक्त था लेकिन जब अगले चुनाव 1989 में हुए तो राजीव गांधी को चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। और जब राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हुए तो भैरू सिंह शेखावत ने बहुमत साबित करते हुए अपनी सरकार बना ली। यानी की चंद्रशेखर के बाद राजीव गांधी भी राजस्थान में इस तरह की यात्रा के भरोसे राजस्थान की जनता का भरोसा नही जीत पाए।

जब राजीव गांधी 1989 का चुनाव हार गए तो एक बार फिर उनको यात्रा की सूझ गई और 1990 में राजीव ने एक ओर यात्रा की। उस यात्रा को नाम दिया गया सद्भावना यात्रा। लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से राजीव की वह यात्रा भी सफल नहीं हो पाई।

1991 के चुनाव पूरे हो पाते इससे पहले ही राजीव गांधी की हत्या हो गई। तब देश में मंडल और मंदिर का मुद्दा भी जोर पकड़ चुका था। राजीव की हत्या के बाद कांग्रेस ने एक बार नरसिम्हा राव की अगुवाई में वापसी लेकिन जब राजस्थान में राष्ट्रपति शासन के बाद 1993 में चुनाव हुए तो भैरोंसिंह शेखावत ने फिर से वापसी कर ली।

इस तरह की यात्राओं का इतिहास तो यही बताता है कि राजस्थान के मतदाताओं का इस तरह की यात्राओं का कभी कोई असर नहीं हुआ हैं। अब सवाल है कि जब राजस्थान चुनाव के मुहाने पर खड़ा है और उससे ठीक बाद राजस्थान में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं तो क्या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश में यात्रा पॉलिटिक्स का इतिहास बदल पाएगी या नही।

कांग्रेस नेता भारत जोड़ो यात्रा की राजस्थान में एंट्री से पहले ही अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। जयराम रमेश ने कहा है कि राजस्थान में 1993 के बाद कोई भी सरकार वापसी नही कर पाई है। साथ ही राजस्थान कांग्रेस के बड़े बड़े नेता जिनके सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा का नाम शामिल है बार बार दावे कर रहे है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार फिर से वापसी करेगी।

अगर यह सच हुआ तो यकीनन राहुल भारत में राजनेताओं द्वारा की गई इस तरह की यात्राओं से एक बड़े मिथक को तोड़ पाने में सफल हो जायेंगे। परन्तु कांग्रेस की आपसी रार ने कहानी की पटकथा लिख दी है। एक दिन पहले वेणुगोपाल ने पायलट और गहलोत के हाथ मिलाकर संदेश देने की कोशिश की है, लेकिन जनता दोनों के चेहरों को देखकर अंदाजा लगा चुकी है कि इन तिलों में अब कितनाक तेल है।