अधिकारियों को फटकारा: राजस्थान में मंत्री दिलावर का खाली सेवा शिविर देख फूटा गुस्सा, SDM और नायब तहसीलदार को लगाई फटकार

राजस्थान के कोटा ग्रामीण में पंचायत राज मंत्री मदन दिलावर ने एक सेवा शिविर में खाली कुर्सियां और अनुपस्थित अधिकारी देखकर नाराजगी जताई। उन्होंने एसडीएम और नायब तहसीलदार को फोन पर फटकार लगाई और खुद ग्रामीणों की समस्याएं सुनीं।

Madan Dilawar in Camp

राजस्थान में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा शिविरों का आयोजन किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य आम जनता तक सरकारी सेवाओं और योजनाओं का लाभ पहुंचाना है। इसी कड़ी में, शनिवार (4 अक्टूबर) को पंचायत राज मंत्री मदन दिलावर कोटा ग्रामीण के बोराबास स्थित एक सेवा शिविर का निरीक्षण करने पहुंचे। मंत्री के सुबह 10 बजे पहुंचने पर उन्हें शिविर में खाली कुर्सियां और अधिकारियों की अनुपस्थिति देखकर गहरा आश्चर्य हुआ।

अधिकारियों को लगाई फटकार

मंत्री दिलावर ने पाया कि शिविर में केवल 3 से 4 विभागों के अधिकारी और कुछ कर्मचारी ही मौजूद थे, वे भी पंचायत कार्यालय के अंदर बैठे थे, जबकि शिविर का समय सुबह 9:30 बजे से निर्धारित था। खाली कुर्सियां देखकर मंत्री दिलावर भड़क गए।

उन्होंने तत्काल उपखंड अधिकारी (SDM) गजेंद्र सिंह को फोन लगाया और उन्हें डांटते हुए शिविर के समय के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि 10:15 बज चुके हैं और बोराबास में अभी तक शिविर शुरू नहीं हुआ है, न ही कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर मौजूद है।

इसके बाद, मंत्री ने पंचायत कार्यालय के अंदर बैठे नायब तहसीलदार लेखराज स्वामी को बाहर बुलाया। दिलावर ने उनसे पूछा, "यहां आराम फरमाने आए हो क्या?" नायब तहसीलदार ने सफाई दी कि वे ग्रामीणों के आने का इंतजार कर रहे थे। मंत्री ने उनसे उपस्थिति रजिस्टर मांगा और उस पर नोट लगाया कि सुबह 10:27 बजे तक कुछ ही कर्मचारी उपस्थित थे, और वे भी कमरे के अंदर बैठे थे। मंत्री ने रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर समय भी दर्ज किया।

मंत्री ने खुद सुनीं ग्रामीणों की समस्याएं

मंत्री मदन दिलावर करीब एक घंटे तक शिविर में मौजूद रहे।

उन्होंने स्वयं खाली कुर्सियों पर बैठकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनीं और अधिकारियों को तुरंत इन समस्याओं का निपटारा करने के आदेश दिए।

मंत्री के पहुंचने और फटकार लगाने की सूचना मिलते ही सभी अधिकारी आनन-फानन में बोराबास पहुंचे। इसके बाद ही कैंप की विधिवत शुरुआत हो सकी। इस घटना ने सरकारी शिविरों में अधिकारियों की लापरवाही और जनता के प्रति उनकी उदासीनता को उजागर किया है।