जिलों का गठन : समितियों के बहाने टालने में जुटी गहलोत सरकार

पंद्रह लाख पचास हजार किसानों के पास कृषि विद्युत् कनेक्शन हैं ,बजट घोषणाओं के लागू होने के साथ ही ग्यारह  लाख किसानों को बिजली बिल से मुक्ति मिल जायेगी। इनमे से नौ लाख किसान पहले से ही किसान मित्र योजना के चलते राहत की स्थिति में हैं।

Ashok Gehlot

"अशोक गहलोत सरकार के चुनावी बजट में ऐसी कई चीजें हैं ,जो असर दिखा गयी तो सरकार अगले दस बीस साल कहीं नहीं जाने वाली।

जैसे राजस्थान में कुल एक करोड़ सत्रह लाख घरेलू विद्युत् उपभोक्ता हैं।  बजट घोषणा से मिली राहत लागू होते ही इनमे से एक करोड़ दो लाख लोगों का बिजली का बिल शून्य हो जाएगा।

पंद्रह लाख पचास हजार किसानों के पास कृषि विद्युत् कनेक्शन हैं ,बजट घोषणाओं के लागू होने के साथ ही ग्यारह  लाख किसानों को बिजली बिल से मुक्ति मिल जायेगी। इनमे से नौ लाख किसान पहले से ही किसान मित्र योजना के चलते राहत की स्थिति में हैं।

किसानों की ही तरह ,सरकारी कर्मचारियों को हम सलीके से ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर आश्वस्त कर पाए तो कोई नौ लाख कर्मचारी और उनके परिवार सरकार को बनाये रखने में सबसे बड़ा फेक्टर होंगे।"

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जादुई बजट से सरकार रिपीट होने की उम्मीद पाले बैठे पार्टी के एक बड़े नेता यह दावा कर आश्वस्त भी नहीं होते कि चेहरे पर मायूसी सी छा जाती है। लम्बी सांस छोड़ते हुए कहते हैं -बस पब्लिक परसेप्शन बदल जाए तो कांग्रेस को फिर सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता।

पब्लिक परसेप्शन की चिंता 

नेताजी कहते हैं -"ये जो पब्लिक परसेप्शन हैं ना ,राजस्थान सरकार के लिए वही सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। ये बदले तो बात बने।"

अगला चुनाव लड़ने को लेकर कभी हाँ ,कभी ना के अंदाज़ में बात करने वाले नेताजी ही नहीं ,कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं को "पब्लिक परसेप्शन " डरा रहा है।  कहीं भ्रष्टाचार ने परसेप्शन बिगाड़ दिया है तो कहीं उबाऊ लीडरशिप ने।

इसी परसेप्शन से बचने के लिए कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं को अब एक ही राम बाण औषधि नजर आ रही है।  ये औषधि है -नए जिलों का गठन। लेकिन इस दवा के साइड इफेक्ट भी कुछ ऐसे हैं कि नफा हासिल करने की उम्मीद से ज्यादा नुकसान की आशंका भारी पड़ती जा रही है।

इसी आशंका के चलते पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने जिलों के गठन के मुद्दे को ठन्डे बस्ते के हवाले कर दिया था।  

वसुंधरा सरकार के दौरान 2014 में परमेशचन्द्र कमेटी का गठन कर नए जिलों की कवायद शुरू की गयी ,लेकिन ज्योंही बजट पर बोझ और सियासी नुकसान का गणित सामने आया ,जिलों के गठन को अगली सरकार के गठन तक टाल दिया गया।

वसुंधरा सरकार की जगह 2018 में अशोक गहलोत सरकार ने ली तो जिलों के गठन के लिए गठित परमेशचन्द्र कमेटी  की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया गया।  यही नहीं राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने विधान सभा में ये एलान भी कर दिया कि सरकार फिलहाल  नए जिलों का गठन नहीं करेगी। 

कमेटियों का गठन 

क्षेत्रफल के लिहाज से नए जिलों की मांग को लेकर पड़े चौतरफा दबाव के बाद गहलोत सरकार ने एक बार फिर अपना रुख बदल लिया। 
2022-23 के वार्षिक बजट पर सामान्य वाद विवाद के जवाब में  सीएम अशोक गहलोत ने जिलों के गठन के लिए नए सिरे से एक हाई  पावर कमेटी का गठन कर दिया

हाई  पावर कमेटी का चैयरमेन सेवानिवृत आईएएस रामलुभाया को बनाया गया।  प्रमुख शासन सचिव -राजस्व को इस कमेटी का सचिव बनाया गया।

बताया गया कि कमेटी सभी जनप्रतिधियों और आमजन की राय ,ज्ञापनों और मांग पत्रों पर विचार कर नए जिलों की जरुरत का आकलन करेगी और छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी।

रामलुभाया कमेटी के गठन से पहले गठित परमेशचन्द्र कमेटी के सामने प्रदेश के  कुल 51 कस्बों को जिला बनाने की मांग  आयी थी। 

51 कस्बों को जिलों में बदलने की मांग 

अकेले जयपुर जिले में ही फुलेरा,शाहपुरा ,सांभरलेक और   कोटपुतली से जिलों की मांग उठी।

इसी तरह अजमेर जिले से ब्यावर ,किशनगढ़ ,केकड़ी से जिले की मांग उठी तो उदयपुर जिले के  सलूंबर, खैरवाड़ा और  सराड़ा, सीकर जिले के श्रीमाधोपुर, नीमकाथाना, फतेहपुर शेखावाटी,नागौर जिले के मकराना ,मेड़तासिटी ,डीडवाना, कुचामन सिटी जिलों की मांग में शामिल हो गए।

श्रीगंगानर के सूरतगढ़, अनूपगढ़, श्रीविजयनगर , घड़साना,हनुमानगढ़ से नोहर,भादरा और अलवर जिले से भिवाड़ी ,नीमराना ,खैरथल और बहरोड़, पाली से फलाना ,सुमेरपुर,बाली और   चूरू से रतनगढ़ ,सुजानगढ़, सरदारशहर ,भरतपुर से बयाना,डीग, व  कामां से  नए जिले की मांग आयी।

भीलवाड़ा जिले से गुलाबपुरा,शाहपुरा,जालोर से सांचोर,भीनमाल,चित्तौड़गढ़ से रावतभाटा ,झालावाड़ से भवानीमंडी और कोटा से  रामगंजमंडी ,बाड़मेर से  बालोतरा, सवाईमाधोपुर से गंगापुरसिटी, जैसलमेर से पोकरण, बारां से छबड़ा, करौली से हिंडौनसिटी,  बीकानेर से नोखा से   नए जिलों की मांग उठी ।

कमेटियों का जाल 

परमेशचन्द्र कमेटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई की उम्मीद में बैठे इन जिलों के समर्थकों को झटका उस वक्त लगा जब गहलोत सरकार के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने जिलों के गठन की सम्भावना से ही सदन में इंकार कर दिया।

बहरहाल ,जिलों के बहाने नेताओं और मतदाताओं को बहलाने का फार्मूला 15 साल से चल रहा है ,सो एक बार फिर हाई पावर कमेटी बनी और जिलों के गठन की कवायद शुरू कर दी गयी।

गौरतलब है कि अशोक गहलोत ने ही इससे पहले वरिष्ठ आईएएस जीएस संधू की चेयरमैनशिप में एक हाई पावर  कमेटी गठित की थी। जिसकी जगह बाद में परमेश चंद्र कमेटी ने ली। 2018 में  परमेशचन्द्र कमेटी   की रिपोर्ट भी  सरकार को मिल गई।  

इसके बावजूद नए जिलों के गठन की सम्भावना को नकार पहले उस समिति की सिफारिशों को ख़ारिज किया गया फिर सेवानिवृत आईएएस डॉ  रामलुभाया के नेतृत्व में नयी कमेटी  बना दी गयी।

2022 के आखिरी महीने में इस कमेटी द्वारा सात जिले (ब्यावर, बालोतरा, भिवाड़ी, नीम का थाना, कुचामन सिटी, सुजानगढ और फलौदी ) तथा  तीन संभाग(सीकर, बाड़मेर और चितौड़गढ़) बनाने की खबर कुछ इस तरह फैली कि सरकार पर बाकी जगह से सियासी दबाव बढ़ता चला गया।

बाकी जगह से विरोध के स्वरों के बीच रामलुभाया समिति ने किसी भी तरह की रिपोर्ट देने से इंकार किया तो सरकार रिपीट करने के लक्ष्य साधने के फेर में नेताओं ने एक बार फिर से मतदाताओं को अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों को जिला बनाने के सपने दिखाने शुरू कर दिए।

सचिन पायलट को छोड़ कभी खुद को सीएम का ट्रबल शूटर बनाने में जुटे केकड़ी के विधायक रघु शर्मा ने तो न सिर्फ आनन् फानन में प्रेसकांफ्रेंस बुला केकड़ी को जिले बनाने की मांग की बल्कि नाराज जनता को मनाने की गरज से जन हस्ताक्षर का अभियान भी छेड़ दिया।

ठंडी पड़ी नेतागिरी  

गहलोत ने जिलों के बहाने जाजम जमाने की जुगाड़ में जुटे रघु शर्मा जैसे नेताओं को जोर का झटका धीरे से कुछ इस तरह दिया कि जिलों के गठन के लिए गठित हाई  पावर कमेटी का कार्यकाल ही छह महीने के लिए बढ़ा दिया।

यह फैसला उन नेताओं के लिए है पावर वोल्टेज की लाइन से शरीर में आये करंट जैसा है  ,जो 17  मार्च को मुख्यमंत्री के बजट पर जवाब के दौरान जिलों की घोषणा की उम्मीद संजोये बैठा है।

उल्लेखनीय है कि बीते पंद्रह  साल से राजस्थान नए जिले के गठन की उम्मीद में है। 26 जनवरी 2008 को प्रदेश में प्रतापगढ़ को  जिला घोषित किया गया था ,तब से कोई साठ  कस्बों से जिलों की मांग राजनेताओं ने मुखर कर दी है। लेकिन 2015 से तीन उच्च स्तरीय समितियों के गठन और उन पर करोड़ों फूंकने के सिवाय निर्णायक फैसला नहीं हुआ।

लोक लुभावन बजट से सत्ता के बरकरार रहने की उम्मीद पब्लिक परसेप्शन के आगे कुछ इस तरह धुँधली होती नजर आने लगी है कि ज्यादातर नेता अपने -अपने विधान सभा क्षेत्र में जिले के गठन का राग अलाप अपनी सियासी जमीन दुरुस्त करने में जुट गए हैं।

इन नेताओं को यह सच भी पता है कि सरकार जिलों के गठन की चर्चा तो बरकरार रख सकती है ,लेकिन ऐसा जोखिम शायद ही मोल ले कि पांच -सात जिलों का गठन कर बाकी जगहों के विरोध से अपनी राजनितिक लुटिया को पैंदे में बिठा दे।

इस बीच पचपदरा के विधायक मदन प्रजापत बालोतरा को जिला बनाने की मांग के साथ नंगे पैर घूम रहे हैं तो रघु शर्मा समर्थन रुपी सहानुभूति जुटाने के लिए दस्तखतों को इकट्ठा करने में जुटे हैं।  जिलों का गठन सरकार के लिए एक ऐसे जाल की तरह जिससे निकलना तो दूर ,उलझन बढ़ती ही जा रही है।