पाली के राणावास में भव्य आयोजन: राव कूंपाजी की मूर्ति अनावरित, उमड़े हजारों लोग

राजस्थान की वीरभूमि पर इतिहास रचते हुए वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़ की प्रतिमा का भव्य अनावरण समारोह श्री गोविंद राजपूत शिक्षण संस्थान, राणावास, पाली में हर्ष

कूंपाजी प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम को सम्बोधित करते समताराम महाराज।

पाली, 31 जनवरी 2025: वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़ की भव्य मूर्ति का अनावरण समारोह श्री गोविंद राजपूत शिक्षण संस्थान, राणावास, पाली में धूमधाम से संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक आयोजन की अगुवाई समिति के युवा अध्यक्ष अजयपाल सिंह हेमावास ने की। अतिथियों की अगवानी डिंगोर प्याऊ से राजपूत छात्रावास मूर्ति स्थल तक वाहन रैली के रूप में की गई।

धार्मिक अनुष्ठान से शुभारंभ

समारोह का शुभारंभ श्री गोविंद राजपूत शिक्षण संस्थान, राणावास स्थित चामुंडा माता मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार, यज्ञ एवं आहुति के साथ हुआ। इस पावन अवसर पर मेवाड़ महाराणा विश्वराज सिंह जी मेवाड़ एवं राज ऋषि संतराम जी महाराज ने राव कूंपाजी राठौड़ की प्रतिमा का अनावरण कर समाज को गौरवान्वित किया।

प्रमुख अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व प्रतिपक्ष नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ उपस्थित रहे, वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में बाली विधायक पुष्पेंद्र सिंह राणावत एवं चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या शामिल हुए।

राज ऋषि समताराम जी महाराज ने अपने उद्बोधन में वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़ के बलिदान को नमन करते हुए समस्त राजपूत समाज से उनके पदचिह्नों पर चलने का आह्वान किया।

मेवाड़ महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ ने अपने संबोधन में कहा, "मेवाड़ और मारवाड़ का संबंध ऐतिहासिक रूप से अटूट रहा है। आज मारवाड़ की पावन धरा पर वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़ की प्रतिमा का अनावरण करते हुए अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है।"

पूर्व प्रतिपक्ष नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने सामाजिक समरसता एवं ईडब्ल्यूएस वर्ग की विसंगतियों पर विस्तार से चर्चा की। चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने राव कूंपाजी के शौर्य और जीवनी पर प्रकाश डाला। वहीं, मारवाड़ जंक्शन के पूर्व विधायक खुशवीर सिंह जोजावर ने क्षत्रिय धर्म के पालन का आह्वान किया।

समाज का व्यापक समर्थन

समिति अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ (गुड़ा सुर सिंह) ने कहा कि वीर महापुरुषों को समय-समय पर याद करना आवश्यक है ताकि युवा पीढ़ी उनके आदर्शों से प्रेरणा ले सके।

इस भव्य आयोजन में कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख रूप से आसोप राजा साहब दिग्विजय सिंह, समिति संरक्षक भंवर सिंह मंडली, एडीजे विक्रम सिंह सत्याय, तेज सिंह निंबली, जयेंद्र सिंह गलथनी, सिद्धार्थ सिंह रोहिटगढ़, गजपाल सिंह गुड़ा सुर सिंह, मोहब्बत सिंह, गजेंद्र सिंह कालवी, महेंद्र सिंह नगर, चंद्रेशपाल सिंह राठौड़, बीएसएफ कमांडेंट योगेंद्र सिंह राठौड़ शामिल रहे।

समारोह का सफल आयोजन

समारोह में विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें नरेंद्र सिंह हमीर, विश्वेंद्र सिंह गुड़ामेहराम, प्रमोद सिंह भोजावास, हनुवंत सिंह चौकड़िया, छैल सिंह मेवी, भंवर सिंह गुड़ा सुर सिंह, वीरेंद्र सिंह नरूका, लक्ष्मण सिंह हेमावास, प्रताप सिंह सोनाइमाजी, समुंदर सिंह आंकड़ावास, कुंवर वीरेंद्र सिंह बुसी, दलपत सिंह गुड़ा नारकान, गोविंद सिंह ओडवाडिया, महेंद्र सिंह इंदरवाडा, केसर सिंह हेमावास, जितेंद्र सिंह थरासनी, विशन सिंह झुपेलाव, महिपाल सिंह केरखेड़ा, गणपत सिंह, जसवंत सिंह सिनेमा, नरेंद्र सिंह शेखावत आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

मंच संचालन पुष्पेंद्र सिंह गुड़ा सुर सिंह ने किया और समारोह का समापन उत्साहपूर्ण वातावरण में हुआ।

वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़: शौर्य, बलिदान और गौरव की अमर गाथा

राजस्थान की वीरभूमि ने अनगिनत शूरवीरों को जन्म दिया, जिनमें से एक अमर योद्धा थे वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़। उनकी वीरता, सैन्य कौशल और बलिदान की गाथाएं आज भी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हैं। उनकी 513वीं जयंती पर मारवाड़ जंक्शन एवं राणावास में उनकी गौरव गाथाएं गाई जाएंगी, जिससे आने वाली पीढ़ियां प्रेरणा ले सकें।

युद्ध कौशल और वीरता

राव कूंपाजी ने मात्र 42 वर्ष की आयु में 52 युद्ध लड़े और अपने अद्भुत सैन्य नेतृत्व का परिचय दिया। वे जोधपुर के राजा मालदेव की सेना के प्रधान सेनापति थे। उनकी वीरता इतनी अद्वितीय थी कि दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी को कहना पड़ा:

"मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत खो देता।"

सीमाओं का विस्तार

अपने सेनापति काल में राव कूंपा ने जोधपुर राज्य की सीमाओं का विस्तार किया:

उत्तर में: नारनौल तक

पश्चिम में: उमरकोट तक

पूर्व में: हिंडोन तक

दक्षिण में: राजकोट, थराद, एथनपुर तक

यह उनके कुशल नेतृत्व और अदम्य साहस का प्रमाण है कि जोधपुर रियासत इतनी विशाल और सुदृढ़ बनी।

महान संघर्ष और ऐतिहासिक युद्ध

राव कूंपाजी ने विक्रम संवत् 1597 में दासी पुत्र बनवीर को हराकर महाराणा उदयसिंह को गद्दी पर बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मेड़ता के शासक वीरमदेव को पराजित कर उसे जोधपुर रियासत में मिलाया। इससे क्रोधित होकर वीरमदेव ने शेरशाह सूरी से संधि कर जोधपुर पर आक्रमण की योजना बनाई।

गिरी-सुमेल युद्ध (1544 ई.)

जब शेरशाह सूरी ने अपनी 80,000 सैनिकों की विशाल सेना के साथ पुष्कर के आगे गिरी में पड़ाव डाला, तब राव कूंपाजी ने जोधपुर राज्य की रक्षा के लिए अपनी सेना तैनात कर दी। लगभग डेढ़ माह तक दोनों सेनाएं आमने-सामने रहीं, लेकिन शेरशाह जोधपुर सेना पर हमला करने की हिम्मत नहीं कर सका।

षड्यंत्र और विश्वासघात

वीरमदेव ने एक षड्यंत्र के तहत ढाल व्यापारियों से गुप्त संदेश प्रेषित करवाया, जिसमें यह झूठा प्रचार किया गया कि राव कूंपाजी शाही सेना में मिल गए हैं और जोधपुर के राजा को पकड़कर शेरशाह को सौंप देंगे। इस अफवाह से राजा मालदेव राठौड़ ने अपने सेनापति पर विश्वास खो दिया और अपनी सेना के साथ जोधपुर लौट गए।

राव कूंपाजी और उनके भाई जैताजी ने बहुत समझाने का प्रयास किया, लेकिन मालदेव नहीं माने। सेना के हटते ही प्रजा में हाहाकार मच गया। तब कूंपाजी ने अपने साथियों के साथ वीरगति प्राप्त करने का निश्चय किया।

रणभूमि में बलिदान

राव कूंपाजी ने अपने 8,000 सैनिकों के साथ शाही सेना पर घातक हमला किया। उनके प्रमुख साथी थे: उनके भाई जैताजी राठौड़

अखेराज खींवकरण

अखेराज सोनीगरा

मान चारण

दधवाडिया

लुंबा भाट

अल्लादाद कायमखानी

छत्तीसों कौमों के वीर योद्धा

इस युद्ध में करीब 6,000 राजपूत योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की, जबकि शेरशाह की सेना के 18,000 सैनिक मारे गए। इस युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने अफसोस जताते हुए कहा:

"अगर मालदेव लौटते नहीं, तो मेरी हार निश्चित थी। और यदि कूंपाजी जैसे वीर मेरे साथ होते, तो मैं पूरे विश्व पर राज कर लेता।"

जन आकांक्षाओं की रक्षा का प्रतीक

गिरी-सुमेल के इस महायुद्ध में राव कूंपाजी ने यह सिद्ध कर दिया कि जन आकांक्षाएं सदैव राज आकांक्षाओं से ऊपर होती हैं। यदि मालदेव वापस नहीं लौटते, तो दिल्ली का शासन मुगलों से मुक्त हो सकता था।

स्मरण और सम्मान

आज भी वीर शिरोमणि राव कूंपाजी राठौड़ की स्मृति में राजस्थान में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। राव कूंपाजी राठौड़ न केवल एक योद्धा थे, बल्कि स्वाभिमान, बलिदान और कर्तव्यपरायणता के जीवंत प्रतीक थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा वीर वह होता है जो अपने धर्म, संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ता है।

उनकी वीरता को नमन!