गायों की बेकद्री का शर्मनाक मामला: सिरोही: ट्रैक्टर से घसीटकर ले जाई गई मृत गाय
गोवंश के सम्मान और सुरक्षा की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार के शासन में गायों के प्रति प्रशासनिक लापरवाही और अमानवीय व्यवहार चिंता का विषय बन गए हैं।
सिरोही | गायों के साथ हो रही बेकद्री के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गोवंश के सम्मान और सुरक्षा की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार के शासन में गायों के प्रति प्रशासनिक लापरवाही और अमानवीय व्यवहार चिंता का विषय बन गए हैं। शुक्रवार शाम को गोयली क्षेत्र में एक मृत गाय को ट्रैक्टर के पीछे रस्सी से बांधकर घसीटते हुए ले जाया गया। यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि हृदय विदारक भी है।
घटना ने उठाए बड़े सवाल
सिरोही में गोवंश की बेकद्री का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी मृत गायों को सिरोही नगर परिषद के डंपिंग यार्ड में फेंकने की घटना सामने आई थी, जिसे थिंक 360 ने उजागर किया था। उस समय प्रशासन ने कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन अब इस नई घटना ने सरकारी तंत्र की लापरवाही पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
भाजपा सरकार के वादे और सच्चाई
राज्य में भाजपा सरकार गोवंश कल्याण के नाम पर बड़े दावे करती रही है। सिरोही विधानसभा क्षेत्र, जहां यह घटना हुई है, वही क्षेत्र है जहां देश के पहले गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी आपदा मंत्री हैं। इसके अलावा, राज्य के पशुपालन मंत्री भी सिरोही से सटे सुमेरपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। बावजूद इसके, सिरोही में गोवंश की दुर्दशा भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती है।
भाजपा अक्सर कांग्रेस को गोवंश की बेकद्री के लिए कोसती रही है। लेकिन अब अपने ही शासन में इस तरह की घटनाओं पर नियंत्रण न कर पाने से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
थिंक 360 की पहल और प्रशासन की कार्रवाई
पिछले दिनों सिरोही नगर परिषद के डंपिंग यार्ड में गोवंश को फेंके जाने के मामले को थिंक 360 ने उठाया था। इसके बाद प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई की थी। लेकिन ताजा घटना यह दिखाती है कि प्रशासन ने लंबी अवधि के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
गायों के प्रति प्रशासनिक तंत्र की उदासीनता
गोवंश की सुरक्षा और कल्याण के लिए सरकार ने कई योजनाओं का ऐलान किया, लेकिन सिरोही की यह घटनाएं जमीनी हकीकत को उजागर करती हैं।
आवारा गायों के लिए सिर्फ शब्द बदलना: भाजपा सरकार ने आवारा गायों को "छुट्टा गाय" कहने की पहल की, लेकिन इसके अलावा ठोस कदम उठाने में सरकार नाकाम रही।
स्थानीय तंत्र की विफलता: जिम्मेदार अधिकारी और प्रशासनिक तंत्र लगातार ऐसी घटनाओं से भाजपा सरकार की छवि को धूमिल कर रहे हैं।
जनता और सामाजिक संगठनों में आक्रोश
गोवंश की बेकद्री की घटनाओं ने स्थानीय समाज और सामाजिक संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया है। सिरोही के नागरिकों का कहना है कि गायों को देश में "गौ माता" का दर्जा दिया गया है, लेकिन वास्तविकता में उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार से यह दर्जा मात्र एक नारा बनकर रह गया है।
क्या कहता है कानून और सरकार की जिम्मेदारी
गायों के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने सख्त कानून बनाए हैं, लेकिन इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि उनका क्रियान्वयन प्रभावी नहीं है। सिरोही जैसी घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या गोवंश कल्याण केवल राजनीतिक रोटियां सेंकने का माध्यम बन गया है?
जिम्मेदारों पर हो कार्रवाई
सिरोही की इस घटना ने न केवल प्रशासनिक तंत्र की उदासीनता उजागर की है, बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए हैं।
घटनाओं पर हो सख्त कार्रवाई: इस घटना के दोषियों पर कार्रवाई करते हुए गोवंश की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
स्थायी समाधान की जरूरत: सिरोही में मृत गोवंश के निपटान और उनकी देखरेख के लिए दीर्घकालिक योजनाओं को लागू किया जाना चाहिए।
सरकार की जवाबदेही: भाजपा सरकार को अपने वादों और जमीनी सच्चाई के बीच की खाई को भरने के लिए त्वरित कदम उठाने होंगे।
गोवंश कल्याण के नाम पर राजनीतिक दावे और जमीनी सच्चाई के बीच यह विरोधाभास भाजपा के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है। सिरोही की जनता अब इंतजार में है कि क्या इस घटना के बाद प्रशासन और सरकार कुछ ठोस कदम उठाएगी या फिर यह मामला भी महज एक और विवाद बनकर रह जाएगा।