Highlights
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माहवारी एक स्वाभाविक प्रक्रिया: माहवारी, किशोरावस्था में 10-15 साल की उम्र के बीच शुरू होती है और यह महिलाओं के शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे समाज को कलंक के रूप में नहीं देखना चाहिए।
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प्रजनन तंत्र को स्वस्थ रखने का उद्देश्य: माहवारी का मुख्य उद्देश्य प्रजनन तंत्र को स्वस्थ रखना है। यह शरीर के हार्मोनल चक्र का परिणाम है और महिलाओं के स्वास्थ्य का संकेत है।
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रूढ़ियों को तोड़ने का प्रयास: डॉक्टर शैलजा जैन ने प्रजना फाउंडेशन के सहयोग से माहवारी से जुड़े मिथकों को तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें स्वच्छता और हाईजीन का महत्व सिखाया जा रहा है।
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सामान्य जीवन का समर्थन: डॉक्टर जैन का संदेश है कि माहवारी के दौरान सामान्य जीवन व्यतीत करना पूरी तरह संभव है, बशर्ते स्वच्छता और स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए।
जयपुर | प्रजना फाउण्डेशन और ब्रह्मोस एयरोस्पेस के साथ मिलकर एक बड़ी भूमिका निभा रहीं हैं। कुछ महिलाएं, जिनमें हम प्रीति शर्मा का साक्षात्कार पहले कर चुके हैं। आज बात कर रहे हैं रोहित अस्पताल की निदेशक डॉ. शैलजा जैन से। डॉ. जैन गायनिक हैं और एसएमएस जयपुर में सेवाएं देने के बाद अब अपना अस्पताल चलाती हैं।
वे आजकल स्कूलों और कच्ची बस्तियों में प्रजना फाउण्डेशन के साथ मिलकर बेटियों में जागरूकता लाने का काम कर रही हैं। माहवारी और महिला हाईजीन के विषय पर वे खुलकर बात कहती हैं कि यह मुद्दे बड़ी समस्याओं का कारण बनती हैं। उनके साथ थिंक 360 के स्टूडियो में साक्षात्कार किया प्रदीप बीदावत ने। पेश के बातचीत के खास अंश...।
प्रदीप बीदावत: नमस्कार, आज हमारी साथ डॉ. शैलजा जैन हैं जो प्रजना फाउण्डेशन और ब्रह्मोस एयरोस्पेस के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर काम कर रही हैं। हमारे समाज में माहवारी को लेकर कई तरह की गलत धारणाएँ हैं, जो कई बार महिलाओं और किशोरियों के लिए मानसिक और सामाजिक बाधाएँ बन जाती हैं।
डॉ. जैन आपका स्वागत और पहला सवाल यह है कि इस मुद्दे पर आपका दृष्टिकोण क्या है, और आप इन मिथकों को तोड़ने के लिए कौन-कौन से कदम उठा रही हैं?
डॉ. शैलजा जैन: नमस्कार, प्रदीप जी। आपने बिल्कुल सही कहा, हमारे समाज में माहवारी को लेकर बहुत सारे मिथक और गलतफहमियाँ हैं। माहवारी एक प्राकृतिक और स्वास्थ्य का प्रतीक है, जो महिलाओं के शरीर की स्वस्थ स्थिति का संकेत है, लेकिन इसे अक्सर कलंक की तरह देखा जाता है।
इसी सोच को बदलने के लिए मैंने प्रजना फाउंडेशन और ब्रह्मोस के सहयोग से एक विशेष अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य किशोरियों और महिलाओं को माहवारी से संबंधित सही और वैज्ञानिक जानकारी देना है, ताकि वे इस दौरान खुद को अलग-थलग महसूस न करें और इसे स्वाभाविक रूप से अपना सकें।
प्रदीप बीदावत: आपने इस अभियान में किस प्रकार की गतिविधियाँ शामिल की हैं, और इनका उद्देश्य क्या है?
डॉ. शैलजा जैन: इस अभियान में प्रजना ने कई स्तरों पर कार्य किया है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जाकर जागरूकता सत्र आयोजित करते हैं, विशेषकर स्कूलों में, ताकि युवतियाँ इस बारे में खुलकर बात कर सकें। इन सत्रों में माहवारी के दौरान स्वच्छता, हाईजीन के महत्व, और सही उत्पादों के उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
इसके अलावा, हम ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन भी करते हैं जिनमें माहवारी से जुड़े सवालों का समाधान किया जाता है, और उन्हें समाज में फैले मिथकों से मुक्ति दिलाने के प्रयास किए जाते हैं। इस सबका उद्देश्य बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें यह विश्वास दिलाना है कि माहवारी एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जिसके बारे में बात करना गलत नहीं है।
प्रदीप बीदावत: आपने इस दौरान प्रजना को कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है? विशेष रूप से, ग्रामीण और पारंपरिक समाज में इस मुद्दे पर जागरूकता लाना कितना मुश्किल रहा है?
डॉ. शैलजा जैन: सबसे बड़ी चुनौती समाज में गहराई से बैठी हुई पुरानी मान्यताएँ और अंधविश्वास हैं। माहवारी से जुड़े कई तरह के रूढ़िवादी विचार अब भी समाज में व्याप्त हैं, जैसे कि इन दिनों में महिलाओं को अलग कमरे में रखना या उन्हें मंदिरों में जाने से रोकना।
जब हम इस बारे में बात करते हैं, तो लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए एक लंबा समय और निरंतरता चाहिए होती है। इसके अलावा, पारंपरिक परिवारों में खुलकर इस पर चर्चा करना आसान नहीं है।
जब तक लोग इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह नहीं अपनाते, तब तक यह अभियान अधूरा रहेगा। मगर हमें खुशी है कि धीरे-धीरे लोग इसे समझ रहे हैं, और बदलाव की शुरुआत हो रही है। प्रजना की संस्थापक प्रीति शर्मा और उनकी टीम अच्छा कर रही हैं।
प्रदीप बीदावत: आपके अभियान का समाज पर अब तक क्या प्रभाव पड़ा है? विशेषकर युवतियों के दृष्टिकोण में कैसा बदलाव आया है?
डॉ. शैलजा जैन: यह देखकर बहुत ही अच्छा लगता है कि जागरूकता बढ़ने के बाद युवतियों में आत्मविश्वास का स्तर काफी बढ़ा है। वे अब बिना किसी झिझक के इस विषय पर बात करने लगी हैं और अपने स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क हो रही हैं।
हमारे जागरूकता अभियानों के बाद कई लड़कियों ने हमें बताया कि अब वे अपने घरों में भी इस विषय पर खुलकर चर्चा करने लगी हैं।
धीरे-धीरे यह जागरूकता उनके परिवारों तक भी पहुँच रही है। इस बदलाव के चलते समाज में उनकी सोच बदल रही है, और माहवारी को एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया के रूप में अपनाने का साहस मिल रहा है।
प्रदीप बीदावत: क्या आपको लगता है कि माहवारी के मुद्दे पर और अधिक सामुदायिक प्रयासों की आवश्यकता है? और अगर हाँ, तो इसमें कौन-कौन से अन्य संगठन या संस्थाएँ मदद कर सकती हैं?
डॉ. शैलजा जैन: बिलकुल, यह प्रयास सामुदायिक स्तर पर किए जाने की आवश्यकता है। प्रजना फाउंडेशन और ब्रह्मोस के साथ मिलकर हमने एक सफल शुरुआत की है, लेकिन इस तरह के जागरूकता अभियानों को अधिक व्यापक रूप देने के लिए अन्य स्थानीय संस्थाओं, स्कूलों, और सरकारी एजेंसियों का सहयोग भी जरूरी है।
अगर अधिक से अधिक संस्थाएँ मिलकर काम करें, तो यह संदेश अधिक प्रभावी तरीके से समाज तक पहुँचाया जा सकता है। इसके अलावा, पब्लिक प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के माध्यम से भी इस विषय पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
प्रदीप बीदावत: आपके अनुसार माहवारी से जुड़े मिथकों को तोड़ने में समाज के पुरुषों की भूमिका कैसी होनी चाहिए?
डॉ. शैलजा जैन: बहुत महत्वपूर्ण सवाल है, प्रदीप जी। माहवारी से जुड़े मुद्दों पर बात करना केवल महिलाओं का कार्य नहीं है। समाज के पुरुषों को भी इस विषय में शामिल होना चाहिए। उन्हें इसे समझना चाहिए और इसे सामान्य रूप से लेना चाहिए। माहवारी से जुड़ी शिक्षा में पुरुषों का सहयोग न केवल महिलाओं को अधिक आत्मविश्वास देगा, बल्कि इससे समाज में समग्र रूप से एक सकारात्मक वातावरण बनेगा। जब पुरुष भी इसे एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया की तरह अपनाएंगे, तो समाज में माहवारी से जुड़े मिथक स्वतः ही खत्म हो जाएंगे।
प्रदीप बीदावत: डॉक्टर साहब! माहवारी से जुड़े मिथकों को तोड़ने के लिए आपने जो कदम उठाए हैं, वे अत्यंत सराहनीय हैं। इसी क्रम में, माहवारी से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल भी लोगों के मन में अक्सर होते हैं, जैसे कि यह कब होती है, क्यों होती है और किस उम्र तक होनी चाहिए। क्या आप इन प्रश्नों पर भी प्रकाश डालेंगी?
डॉ. शैलजा जैन: प्रदीप जी! यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल हैं, और इनके बारे में सही जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जागरूकता ही बदलाव का पहला कदम है।
माहवारी कब होती है?
माहवारी, जिसे मासिक धर्म भी कहते हैं, आमतौर पर किशोरावस्था में, 11 से 15 साल की उम्र के बीच शुरू होती है। यह हर लड़की के शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है। शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण यह प्रक्रिया होती है, और यह संकेत देती है कि लड़की का शरीर शारीरिक रूप से परिपक्व हो रहा है।
माहवारी क्यों होती है?
माहवारी का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के प्रजनन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखना है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हर महिला के जीवन का मातृत्व सुख का आधार है। यह शरीर की सामान्य प्रक्रिया है जो महिलाओं के स्वास्थ्य का प्रतीक है।
माहवारी कितने समय तक होती है?
आमतौर पर माहवारी 4 से 7 दिनों तक होती है, लेकिन हर लड़की या महिला का शरीर अलग होता है, इसलिए इसमें थोड़ी भिन्नता हो सकती है। यह चक्र लगभग हर 28 से 35 दिन में दोहराया जाता है।
माहवारी किस उम्र तक होती है?
माहवारी 45 से 55 साल की उम्र तक हो सकती है। इसके बाद, शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, और यह प्रक्रिया धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है, जिसे रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) कहा जाता है।
माहवारी से जुड़े अन्य सवाल और मिथक:
माहवारी से जुड़े कई मिथक हैं, जैसे कि माहवारी के दौरान पूजा-पाठ में शामिल न होना, किचन में न जाना, और दूसरों से अलग रहना। यह पूरी तरह से गलत है और वैज्ञानिक आधारहीन है। माहवारी के दौरान एक महिला पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकती है, यदि वह अपनी स्वच्छता और हाईजीन का ख्याल रखे।
प्रदीप बीदावत: आपके इस स्पष्ट और वैज्ञानिक जवाब से निश्चित ही कई लोग प्रेरित होंगे और उनके मन से माहवारी को लेकर कई गलतफहमियाँ दूर होंगी।
डॉ. शैलजा जैन: जी, प्रदीप जी। मेरा यही प्रयास है कि माहवारी को एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए, न कि इसे कलंकित या छुपाने योग्य माना जाए। हर परिवार और स्कूल में बच्चों को इसके बारे में सही जानकारी देना बहुत आवश्यक है ताकि वे इस विषय पर खुलकर बात कर सकें और मानसिक रूप से इसके लिए तैयार रहें।
प्रदीप बीदावत: आपके इस प्रयास को देखकर समाज के अन्य लोग भी प्रेरित होंगे। क्या आप हमारे पाठकों को इस विषय पर कोई संदेश देना चाहेंगी?
डॉ. शैलजा जैन: मेरा सभी से यही आग्रह है कि माहवारी को एक स्वस्थ और स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में अपनाएँ। इसे न तो शर्म का विषय बनाना चाहिए और न ही किसी हीन भावना का कारण। अगर हम अपने बच्चों को सही जानकारी देंगे और उनके साथ खुलकर इस पर बात करेंगे, तो माहवारी से जुड़े मिथकों को दूर किया जा सकता है।
मेरा उद्देश्य इस समाज को इतना संवेदनशील बनाना है कि किसी लड़की या महिला को माहवारी के दौरान किसी प्रकार का मानसिक दबाव न महसूस हो।
प्रदीप बीदावत: आपके विचार निश्चित ही समाज में माहवारी से जुड़ी नकारात्मक धारणाओं को बदलने में सहायक साबित होंगे। यह एक महत्वपूर्ण पहल है, और हम आपके अभियान की सफलता की कामना करते हैं। धन्यवाद, डॉक्टर जैन।
डॉ. शैलजा जैन: धन्यवाद, प्रदीप जी। मैं आशा करती हूँ कि हमारा यह अभियान समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सफल होगा और माहवारी से जुड़े मिथकों को जड़ से समाप्त करेगा। आपकी यह पहल और सहयोग हमें प्रोत्साहित करता है।