सिरोही में जिलाध्यक्ष की दौड़: सत्ता-संगठन आमने-सामने, योगेन्द्र गोयल या गणपत सिंह राठौड़

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सिरोही | राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जिलाध्यक्षों के चयन को लेकर खींचतान तेज हो गई है। सिरोही जिले में सत्ता और संगठन के बीच बढ़ती तनातनी के कारण मंडल अध्यक्ष तक नियुक्त नहीं हो सके हैं। जिलाध्यक्ष के चयन को लेकर आलाकमान का निर्णय बाकी है, लेकिन विधायक, विधायक प्रत्याशी और अन्य प्रभावशाली नेता किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष गणपत सिंह राठौड़ का समर्थन कर रहे हैं। वहीं, संगठन की ओर से दो बार जिला महामंत्री रह चुके योगेंद्र गोयल को प्राथमिकता दी जा रही है।

सत्ता और संगठन के बीच खींचतान
सिरोही में भाजपा के वरिष्ठ नेता गणपत सिंह राठौड़ और योगेंद्र गोयल के बीच जिलाध्यक्ष पद के लिए खींचतान जारी है। सत्ता पक्ष, जिसमें विधायक ओटाराम देवासी, समाराम गरासिया, और पूर्व प्रत्याशी जगसीराम कोहली शामिल हैं, गणपत सिंह राठौड़ के पक्ष में हैं। वहीं, संगठन ने योगेंद्र गोयल के नाम पर मुहर लगाने का संकेत दिया है, जिन्हें पिछली बार यह कहते हुए रोका गया था कि उनका मौका अगली बार आएगा।

कास्ट इक्वेशन और बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दा
सिरोही में जिलाध्यक्ष पद के चयन में जातिगत समीकरण भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। गणपत सिंह राठौड़ मूल रूप से जालौर जिले के रहने वाले हैं, जबकि योगेंद्र गोयल लंबे समय से सिरोही में सक्रिय हैं। इस मुद्दे पर स्थानीयता को लेकर भी बहस हो रही है। संगठन में यह धारणा है कि स्थानीय और लंबे समय से जुड़े कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाना चाहिए।

सिरोही जिले का समीकरण
सिरोही जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं – सिरोही, आबू-पिंडवाड़ा और रेवदर। सिरोही से भाजपा विधायक ओटाराम देवासी, आबू-पिंडवाड़ा से समाराम गरासिया हैं और रेवदर से जगसीराम कोली चुनाव हारे थे। वहीं, सांसद लुंबाराम चौधरी और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रक्षा भंडारी जैसे नेता भी जिलाध्यक्ष के चयन में प्रभाव डालने की कोशिश कर रहे हैं।

पैनल में नामों की सिफारिश
भाजपा ने जिलाध्यक्ष पद के लिए तीन नामों की सिफारिश की है:
योगेंद्र गोयल – दो बार जिला महामंत्री रह चुके हैं।
गणपत सिंह राठौड़ – किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष।
कालूराम चौधरी – पूर्व प्रधान।
इनके अलावा, वीरेंद्र सिंह चौहान का नाम भी चर्चा में है।

राजस्थान में व्यापक खींचतान
यह स्थिति केवल सिरोही तक सीमित नहीं है। राजस्थान के 45 जिलों में जिलाध्यक्ष पद के लिए इसी तरह की खींचतान देखने को मिल रही है। सत्ता पक्ष और संगठन के बीच तालमेल की कमी के कारण अब तक कई जिलों में ब्लॉक अध्यक्ष भी नियुक्त नहीं हो सके हैं।

क्या कहते हैं सूत्र?
भाजपा सूत्रों के अनुसार, जिलाध्यक्ष पद के चयन में देरी की मुख्य वजह आपसी खींचतान है। सत्ता पक्ष चाहता है कि जिलाध्यक्ष उनके पक्ष का हो, जबकि संगठन निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने के पक्ष में है।

क्या है भविष्य?
सिरोही में जिलाध्यक्ष का चयन भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला होगा। संगठन और सत्ता के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आलाकमान किसके नाम पर अंतिम मुहर लगाता है।

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