Rajasthan Aravalli Crisis: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अरावली को खतरा, लोढ़ा ने 'अरावली बचाओ' का नारा दिया

शिवगंज में संयम लोढ़ा ने सुप्रीम कोर्ट के अरावली संबंधी फैसले पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इससे खनन को खुली छूट मिलेगी और राजस्थान का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। 'अरावली बचाओ' के नारे गूंजे।

अरावली पर संकट: लोढ़ा का 'बचाओ' आह्वान

शिवगंज। राजस्थान की जीवनरेखा कही जाने वाली अरावली पर्वतमाला आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री के सलाहकार एवं पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने रविवार को मारवाड़ मीणा समाज सेवा संस्थान की ओर से आयोजित संभाग स्तरीय प्रतिभावान सम्मान समारोह में इस गंभीर खतरे को लेकर चेतावनी दी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि अब भी अरावली को बचाने के लिए संगठित संघर्ष नहीं हुआ, तो आने वाली पीढ़ियों को पानी, जंगल और स्वच्छ पर्यावरण केवल किताबों में ही देखने को मिलेगा। इस दौरान समारोह में राज्यमंत्री ओटाराम देवासी की मौजूदगी में 'अरावली बचाओ – राजस्थान बचाओ' के नारे गूंजे, जो इस मुद्दे की गंभीरता और जनभावना को दर्शाते हैं।

लोढ़ा ने हालिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली की श्रेणी में रखने का फैसला अरावली को खत्म करने का रास्ता खोल देगा। उन्होंने बताया कि अरावली की करीब 90 प्रतिशत पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं। ऐसे में यह निर्णय खनन माफियाओं के लिए एक वरदान साबित होगा, जो उन्हें इन छोटी पहाड़ियों का बेरोक-टोक खनन करने की खुली छूट देगा। वहीं, यह फैसला पर्यावरण और राजस्थान के भविष्य के लिए एक अभिशाप बनकर उभरेगा। लोढ़ा ने चेतावनी दी कि यदि इस निर्णय को पलटा नहीं गया या इसके प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो अरावली का अधिकांश हिस्सा खनन की भेंट चढ़ जाएगा, जिससे अपरिवर्तनीय क्षति होगी।

उन्होंने अरावली पर्वतमाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इसका लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में है। यह केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि थार मरुस्थल की रेत को पश्चिमी राजस्थान में फैलने से रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार है। अरावली भूजल को रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे लाखों लोगों को पीने और कृषि के लिए पानी मिलता है। इसके अलावा, यह क्षेत्र के जलवायु संतुलन को बनाए रखने, जैव विविधता को संरक्षित करने और मानसून की हवाओं को नियंत्रित करने में भी सहायक है। अरावली की हरियाली और इसके पहाड़ न केवल अनमोल प्राकृतिक संसाधन हैं, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी सहारा देते हैं।

लोढ़ा ने भयावह परिणामों की चेतावनी देते हुए कहा कि अरावली के खत्म होते ही राजस्थान में भूजल स्तर तेजी से गिरेगा, जिससे पानी का संकट गहराएगा। तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होगी, जिससे लू और सूखे जैसी स्थितियां और विकट हो जाएंगी। स्वच्छ हवा और पानी की कमी से विभिन्न बीमारियां बढ़ेंगी, जिससे जनस्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अंततः, पानी और आजीविका की तलाश में लोगों को अपने घरों और गांवों से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह केवल पहाड़ियों का मुद्दा नहीं, बल्कि राजस्थान के अस्तित्व का सवाल है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गंभीर संकट पैदा करेगा।

लोढ़ा ने जल, जंगल और जमीन के पारंपरिक रक्षक रहे मीणा समाज से इस लड़ाई में आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह समय संगठित होकर संघर्ष करने का है। उन्होंने सभी वर्गों, विशेषकर युवाओं से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की ताकि राजस्थान के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। उन्होंने कहा, "हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य हमारे आज के फैसलों पर निर्भर करता है। हमें अरावली को बचाना होगा, ताकि वे पानी, जंगल और स्वच्छ पर्यावरण का अनुभव कर सकें, न कि केवल किताबों में पढ़ सकें।"

इस अवसर पर लोढ़ा ने केंद्र सरकार की ओर से नरेगा जैसी श्रमिक हितैषी योजना को कमजोर करने की मंशा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि रोजगार छिनने से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और पलायन और बढ़ेगा, जिससे सामाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने नरेगा को बचाने के लिए भी एक जन आंदोलन खड़ा करने की अपील की, ताकि ग्रामीण श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

कार्यक्रम में राज्यमंत्री ओटाराम देवासी, अतिरिक्त मुख्य सचिव कुंजीलाल मीणा सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्होंने प्रतिभावान विद्यार्थियों को सम्मानित किया। हालांकि, अरावली पर मंडराते खतरे का मुद्दा पूरे कार्यक्रम पर हावी रहा और संयम लोढ़ा के आह्वान ने इस गंभीर पर्यावरणीय संकट के प्रति जन जागरूकता बढ़ाने का काम किया। यह स्पष्ट है कि अरावली को बचाने की लड़ाई अब एक जन आंदोलन का रूप ले रही है, जिसका परिणाम राजस्थान के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।