बदल रही परम्पराएं: हेलीकॉप्टर से दुल्हनों की विदाई, वर—वधु अभिभूत तो दादा और जीजा का हाल अलग
अब जमाना बदल रहा है। हेलीकॉप्टर से विदाइयां हो रही हैं। बिछोह के गम में रोने की बजाय दुल्हनें यह सोच हलकान हो रही हैं कि हेलीकॉप्टर का सीट बेल्ट कार जैसा ही है या कुछ अलग करना होगा। पीछे छूट गए परिजन और सखियां यह टटोल रहे हैं कि हेलीपेड पर हेलीकॉप्टर और दूल्हा—दुल्हनों के साथ उनकी सेल्फी में कोई एंगल चूक तो नहीं गया।
जयपुर | एक वक्त था जब लड़कियों के सपनों का राजकुमार उन्हें ब्याहने सफेद घोड़े पर आता था। डोली में विदाई होती थी। फिर बसों और उसके बाद कारों का जमाना आया। विदाई होने के बाद बेटी की याद में गाड़ी के टायरों के निशान देखकर भी परिजन और सहेलियां घंटों सुबकियां भरते रहते।
अब जमाना बदल रहा है। हेलीकॉप्टर से विदाइयां हो रही हैं। बिछोह के गम में रोने की बजाय दुल्हनें यह सोच हलकान हो रही हैं कि हेलीकॉप्टर का सीट बेल्ट कार जैसा ही है या कुछ अलग करना होगा। पीछे छूट गए परिजन और सखियां यह टटोल रहे हैं कि हेलीपेड पर हेलीकॉप्टर और दूल्हा—दुल्हनों के साथ उनकी सेल्फी में कोई एंगल चूक तो नहीं गया।
शादी ब्याव में डिफरेंट करने की सोच इन दिनों हवाओं का रुख चीरकर विदा होने तक पहुंच रही है। दो दिन पहले जब हम जयपुर के समीप भांकरोटा गांव में टोडावता परिवार के विवाह में पहुंचे। पूर्व सरपंच के परिवार में शादी थी। पूर्व सरपंच साहब के पोतों ने जिद कर ली दुल्हनें आएंगी तो हेलीकॉप्टर में।
बंदोबस्त बिठाया गया। पहले—पहल तो आसमान साफ नहीं होने के चलते हेलीकॉप्टर तय समय से करीब डेढ़ घंटे देरी से पहुंचा। ऐसे में इंतजार कर रहे बच्चे और महिलाएं बार—बार आसमान की ओर ताकते रहे।
यह नया प्रयोग टोडावता परिवार में पहली बार किया गया है। इस बारे में दूल्हे के दादा से जब पूछा तो वे बोले मुझे तो जानकारी ही नहीं है। इन्होंने ही जिद कर ली। देरी होने के कारण वे बार—बार पूछते रहे कि कब तक आएगा हेलिकाप्टर।
खैर खबर के लिए बाइट कौन देगा बुलाए गए जीजाजी! वे भी उखड़े से ही रहे। एक ने धीमे से बात की और कहा कि सब लोग कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए यह फैसला लिया गया और सब खुश हैं।
दूल्हे बतौर प्रोफेशनल किस पेशे में है। इस पर भी अलग—अलग जवाब ही आए। खैर! सीधे और साधारण परिवार के लोगों का हिम्मती फैसला था, जिसका लुत्फ उठाने और उसे कैमरे में खुद के साथ—साथ कैद करने की जुगत में हर कोई नजर आया।
वैसे दूरी 20—22 किलोमीटर की ही थी। विवाह हुआ हरमाड़ा में और दुल्हनें पहुंची भांकरोटा। दस मिनट का ही सफर। परन्तु हेलीकॉप्टर से विदाई से एक अनूठा अहसास लेकर पहुंची दुल्हनों सुनीता और अनिता ने कहा कि वे बहुत खुश हैं कि परिवार ने इनके लिए ऐसे उपाय किए।
दूल्हे सागर ने भी बताया कि पूरे परिवार का फैसला था। जब दूल्हा—दुल्हनों से पूछा गया कि दहेज तो नहीं लिया, इस पर उन्होंने इनकार ही किया।
खैर! हेलीकॉप्टर कभी एलीट वर्ग के लिए दूर की कौड़ी था। अब आम लोग भी हेलिकॉप्टर की सवारी का लुत्फ उठा सकते हैं, बस जेब अलाउ करती है तो...।
हवा में सफर करने के शौकीनों के लिए इतना महंगा सौदा भी नहीं है, लेकिन अनुमतियां लेना और अन्य कवायदों में शादी—विवाह आयोजन उलझना नहीं चाहते। माइक्रोलाइट एविएशन गो फ्लाई जोन शाहपुरा के संचालक विभूति सिंह देवड़ा ने हमारे से बात की तो उन्होंने कहा कि अब तक शादी—विवाह में हेलीकॉप्टर आना बड़ी बात नहीं रहा।
परमिशन और अन्य सभी बिंदु वे देख लेते हैं। खर्चीली शादियों में यह कोई ज्यादा महंगा सौदा भी नहीं है। उन्होंने एक चौंकाने वाली जानकारी दी कि अब तो लोग शवयात्राओं में भी हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा करवाने लगे हैं। एक इवेंट का अनुभव भी उन्होंने हमारे साथ साझा किया।
सामाजिक बदलाव की इस दिशा में हवा में उड़ने के ख्वाब साकार हो रहे हैं। इन ख्वाबों को साकार करने में आर्थिक समृद्धता के साथ तकनीक और निजी एविएशन कंपनियां भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं।