budget 2023 | राजनीतिक विश्लेषण: जादूगरी के कायदे टूट गए! अशोक गहलोत के साथ कैसे यह चमत्कार हो गया!!
जादू की दुनिया में जादूगर एक शपथ लेते हैं कि जादूगर के रूप में मैं वचन देता हूं कि मैं किसी भी जादूई करतब का रहस्य जादूगरों के अलावे किसी भी अन्य व्यक्ति को तब तक नहीं बताउंगा, जब तक कि वह भी इसी प्रकार की शपथ नहीं लेता. मैं किसी भी सामान्य व्यक्ति पर किसी भी जादू का प्रयोग तब तक नहीं करूंगा जब तक कि मैं इससे पहले इस
जादू की दुनिया के अपने कायदे होते हैं और विधानसभा के भी। प्रत्येक विधायी सदन के कायदे होते हैं। यदि आपके जादूगरी का राज पता चल जाए तो फिर वह जादू ही क्या है? बीजेपी बजट लीक होने का आरोप लगा रही है। यह सच है कि बजट लीक नहीं हुआ है।
परन्तु पूरे देश में बजट लीक का मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विधायी कायदे टूटे हैं। इतनी बुरी तरह से टूटे हैं कि इतिहास बनेगा। बनेगा ही क्योंकि सरकारी जादूगरी का वर्तमान हिल जो गया है।
कहा जाता है कि युक्ति को उजागर करने से जादू खत्म हो जाता है और यह मात्र बौद्धिक पहेली या पेचीदा समस्या बन कर रह जाती है। इस बात का तर्क दिया जाता है कि अगर किसी व्यक्ति को इस युक्ति का राज़ बता दिया जाए तो वह अगले जादूई प्रदर्शन का पूरा आनंद नहीं उठा पाएगा क्योंकि उसमें विस्मय और रोमांच नहीं बचेगा।
कभी-कभी जादू का राज़ इतना सामान्य होता है कि अगर पता चल जाए कि यह इतना आसान है तो दर्शक इसे महत्वहीन मानते हैं और निराश हो जाते हैं। जादू के राज़ को राज़ बनाए रखना जादूगर के व्यवसाय का रहस्य-रोमांच बनाए रखता है।
परन्तु अशोक गहलोत के तिलिस्मी जादू का कायदा आज टूटता नजर आया। अशोक गहलोत जन हित की हजारों करोड़ की योजनाओं के बावजूद बैकफुट पर नजर आए।
अशोक गहलोत राजनीति में जादूगर के बतौर पहचाने जाते रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत में इस विधा से अपने स्थान को दूसरे साथियों से खासा आगे कर लिया। यहां तक कि पार्टी के अघोषित सुप्रीमो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जब छोटे थे तब गहलोत ने उन्हें जादू दिखाकर ही खुश किया था।
विधानसभा में जादुई बजट का दावा किया जा रहा था। ऐतिहासिक बजट का कहा जा रहा था। परन्तु मात्र आठ मिनट की गलती जन हित की घोषणाओं पर भारी नजर आई।
जादू की दुनिया में जादूगर एक शपथ लेते हैं कि "जादूगर के रूप में मैं वचन देता हूं कि मैं किसी भी जादूई करतब का रहस्य जादूगरों के अलावे किसी भी अन्य व्यक्ति को तब तक नहीं बताउंगा, जब तक कि वह भी इसी प्रकार की शपथ नहीं लेता. मैं किसी भी सामान्य व्यक्ति पर किसी भी जादू का प्रयोग तब तक नहीं करूंगा जब तक कि मैं इससे पहले इस जादू का प्रभाव नहीं देख लूं.“
ऐसी ही शपथ मुख्यमंत्री और मंत्री पद के साथ—साथ गोपनीयता की लेते हैं कि मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि जो विषय मुख्यमंत्री मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जायेगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा।’
मुख्यमंत्री की शपथ का और जादूगर की शपथ दोनों का आज कहीं न कहीं कायदा टूटा है। इस कायदे टूटने का गहलोत के राजनीतिक जीवन पर क्या असर होगा, यह देखने वाली बात है।
अशोक गहलोत का एक डायलॉग है हर गलती कीमत मांगती है। देखना यह है कि गहलोत इस चूक की कीमत क्या चुकाते हैं।