Rajasthan: जयपुर: 'मेरी पहल' NGO में 18 लोग बंधक, अश्लील व्यवहार और मजदूरी का आरोप
जयपुर (Jaipur) में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Rajasthan State Legal Services Authority - RSLSA) ने 'मेरी पहल' (Meri Pehal) NGO से 18 लोगों को बंधक मुक्त कराया। 8 महीने से 3 साल तक अवैध रूप से रखे गए इन पर अश्लील व्यवहार व जबरन मजदूरी के आरोप हैं।
जयपुर: जयपुर में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Rajasthan State Legal Services Authority - RSLSA) ने 'मेरी पहल' (Meri Pehal) NGO से 18 लोगों को बंधक मुक्त कराया। 8 महीने से 3 साल तक अवैध रूप से रखे गए इन पर अश्लील व्यवहार व जबरन मजदूरी के आरोप हैं।
जयपुर एनजीओ में बंधक बनाए गए 18 लोगों का खुलासा
राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) की टीम ने 'मेरी पहल' संस्था के झोटवाड़ा स्थित एनजीओ परिसर पर बुधवार शाम को बड़ी कार्रवाई की। इस दौरान परिसर में अवैध रूप से बंधक बनाए गए 18 महिला-पुरुषों का चौंकाने वाला खुलासा हुआ।
पुलिस ने संस्था परिसर से कुल 11 महिलाओं और 7 पुरुषों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया। इन लोगों को पिछले आठ महीने से लेकर तीन वर्ष तक गैर-कानूनी तरीके से एनजीओ के परिसर में कैद करके रखा गया था।
रालसा की टीम ने की बड़ी कार्रवाई
रालसा की टीम ने गुप्त सूचना और चौमूं थाना क्षेत्र की एक युवती के बयान के आधार पर यह कार्रवाई की। युवती ने अपने बयान में संस्था में चल रही अवैध गतिविधियों का विस्तृत जिक्र किया था, जिसके बाद रालसा ने इस पर संज्ञान लिया।
कार्यवाही के दौरान, रालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस एस.पी. शर्मा ने परिसर में प्रवेश करते ही जांच दल को सीसीटीवी कैमरों की कड़ी निगरानी और असामान्य सुरक्षा व्यवस्था देखने को मिली। यह व्यवस्था परिसर में कैद लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनाई गई थी।
आठ महीने से तीन साल तक बंधक
जांच में सामने आया कि इन 18 लोगों को आठ महीने से लेकर तीन साल तक संस्था में अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया था। संस्था का दावा था कि वह कौशल विकास के लिए कार्य करती है, लेकिन मौके पर ऐसा कोई कार्य होता नहीं मिला।
इन पीड़ितों में कई ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्हें रेलवे स्टेशन और शहर के अलग-अलग इलाकों से उठाकर यहां लाया गया था। वे बिना किसी वैध कारण के लंबे समय से कैद थे।
अश्लील व्यवहार, जबरन मजदूरी और मारपीट के गंभीर आरोप
रेस्क्यू किए गए पीड़ितों ने जांच टीम के सामने एनजीओ पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। एक बुजुर्ग पीड़ित ने संस्था से जुड़े एक व्यक्ति पर बंधक महिलाओं के साथ अश्लील व्यवहार करने का आरोप लगाया है।
महिलाओं ने बताया कि उन्हें बाउंसरों की निगरानी में रखा जाता था। विरोध करने या आदेश न मानने पर उन्हें लाठी-डंडों से बेरहमी से पीटा जाता था।
भूखा रखकर काम कराने का आरोप
पीड़ितों का कहना है कि उनसे जबरन मजदूरी करवाई जाती थी, लेकिन इसके बदले उन्हें कभी कोई मेहनताना नहीं दिया गया। काम से इनकार करने या सवाल उठाने पर उन्हें भोजन तक नहीं दिया जाता था।
महिलाओं के विरोध किए जाने पर उनके साथ मारपीट की जाती थी और सजा के तौर पर उन्हें भूखा रखा जाता था। इन आरोपों को लेकर जांच एजेंसियां साक्ष्य जुटाने में लगी हुई हैं।
सीसीटीवी निगरानी और असामान्य सुरक्षा व्यवस्था
संस्था परिसर में मुख्य द्वार और पीछे की तरफ 20 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों से परिसर में कैद लोगों की हर गतिविधि पर लगातार नजर रखी जाती थी।
यह असामान्य सुरक्षा व्यवस्था इस बात का संकेत थी कि संस्था के भीतर कुछ गलत हो रहा था। जांच दल ने इन सभी पहलुओं पर गहनता से गौर किया।
चौमूं की युवती के बयान से हुआ मामले का खुलासा
कुछ दिनों पहले चौमूं थाना क्षेत्र की एक लड़की ने पुलिस को बयान दिए थे। इन बयानों में संस्था में चल रही अवैध गतिविधियों और बंधक बनाए जाने का जिक्र किया गया था।
इन बयानों को गंभीरता से लेते हुए रालसा ने मामले का संज्ञान लिया और कार्रवाई की योजना बनाई। एडीजे पल्लवी शर्मा ने बताया कि निरीक्षण के दौरान 11 महिलाएं मिलीं, जिनमें से कुछ पुलिस के आदेश पर संस्था में आई थीं, लेकिन उनकी उपस्थिति संस्था के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं थी।
पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
बंधक बनाए गए लोगों में दो युवतियां भी शामिल थीं, जिन्होंने लव मैरिज की थी। परिजनों की शिकायत के बाद पुलिस ने उन्हें दस्तयाब कर नारी निकेतन भेजने के बजाय 'मेरी पहल' संस्था में रखा था।
इनमें से एक युवती चौमूं की निवासी है, जिसने डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर रखी है। युवती के परिजनों के साथ जाने से इनकार के बाद उसे इस एनजीओ में भेज दिया गया था।
लव मैरिज करने वाली युवतियां भी बंधक
रालसा की महिला अधिकारियों ने जब इन युवतियों से बात की, तो वे भावुक होकर बार-बार यही कहती रहीं कि “हमें घर जाना है”। उनकी यह मार्मिक पुकार संस्था के अमानवीय व्यवहार को उजागर करती है।
इसी तरह झोटवाड़ा और चौमूं थाना पुलिस के पत्रों के आधार पर दो अन्य युवतियों को भी यहां रखा गया था। रेस्क्यू किए गए लोगों ने संबंधित थाना पुलिस पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं।
मानसिक रूप से कमजोर लोगों की भी अनदेखी
रेस्क्यू किए गए कुछ लोग मानसिक रूप से कमजोर पाए गए। संस्था ने उनके लिए न तो कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई और न ही उनकी देखभाल की कोई उचित व्यवस्था थी।
कौशल विकास के नाम पर कुछ लोगों को ढोलक बजाना सिखाने की बात सामने आई, जबकि कई पीड़ित पढ़े-लिखे और सक्षम थे, जिन्हें किसी तरह के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं थी। यह दर्शाता है कि संस्था अपने दावों के विपरीत कार्य कर रही थी।
पीड़ितों को रेलवे स्टेशनों और शहर से उठाया गया
जांच में सामने आया कि कई पीड़ितों को रेलवे स्टेशन और शहर के अलग-अलग इलाकों से उठाकर यहां लाया गया था। उन्हें बहला-फुसलाकर या जबरन संस्था परिसर में कैद किया गया था।
भरतपुर निवासी बालकृष्ण को जनवरी 2023 में रेलवे स्टेशन से उठाया गया था और तब से वह संस्था परिसर में कैद था। उससे सभी कैद लोगों के लिए खाना बनवाया जाता था, लेकिन उसे किसी प्रकार का पारिश्रमिक नहीं दिया गया और न ही उसका नाम किसी आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज था।
कई राज्यों के लोग थे बंधक
इसी तरह उत्तर प्रदेश के दिलीप को 35 माह से, धौलपुर के राजेश, गंगापुर सिटी के इंद्र, यूपी के महाराजगंज के रंजन व शंकरलाल और बिहार के बाबूलाल को 8 महीने से लेकर 3 वर्ष तक कैद में रखा गया था। यह दर्शाता है कि संस्था का नेटवर्क काफी विस्तृत था।
इन सभी पीड़ितों को उनके घरों से दूर रखकर अमानवीय परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर किया गया था। उनकी पहचान और अधिकारों का पूरी तरह से हनन किया गया।
संस्था के रजिस्टर में मिलीं गंभीर अनियमितताएं
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने संस्था के रजिस्टर जब्त कर जांच की, जिसमें कई गंभीर अनियमितताएं सामने आईं। रजिस्टर में दर्ज कुछ लोग मौके पर मौजूद नहीं थे, जबकि मौके पर मौजूद कई लोगों के नाम रजिस्टर में दर्ज ही नहीं मिले।
यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि संस्था अवैध रूप से लोगों को रख रही थी और उनके रिकॉर्ड में हेरफेर कर रही थी। पारदर्शिता का पूरी तरह से अभाव था।
भिक्षुक पुनर्वास केंद्र का झूठा दावा
जांच दल के सामने यह तथ्य भी आया कि संस्था खुद को भिक्षुक पुनर्वास केंद्र बताती रही। हालांकि, वास्तविक रूप से वहां किसी भी तरह का पुनर्वास या कौशल विकास कार्य नहीं किया जा रहा था।
यह सिर्फ एक दिखावा था, जिसके पीछे अवैध रूप से लोगों को बंधक बनाकर रखने और उनसे जबरन काम कराने का काला धंधा चल रहा था। संस्था अपने मूल उद्देश्यों से पूरी तरह भटक चुकी थी।
तीन घंटे चला रेस्क्यू ऑपरेशन, आगे की कार्रवाई जारी
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव हरिओम अत्री ने बताया कि जयपुर पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर एसीपी हनुमान मीणा के नेतृत्व में संयुक्त टीम गठित की गई थी। यह कार्रवाई करीब 3 घंटे तक चली।
अभियान में रालसा के सदस्य सचिव हरिओम शर्मा, निदेशक नीरज कुमार भारद्वाज, सीजेएम नवीन किलानिया, डीएलएसए सचिव एडीजे पल्लवी शर्मा और पवन कुमार जीनवाल सहित भारी पुलिस बल मौजूद रहा। दो दर्जन पुलिसकर्मियों की टीम मौके पर पहुंची थी।
चिकित्सीय परीक्षण और काउंसलिंग की व्यवस्था
रेस्क्यू किए गए सभी लोगों को पुलिस वैन से सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया, जहां उनका चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाएगा। दो महिला चिकित्सकों द्वारा उनका चिकित्सीय परीक्षण सुनिश्चित किया गया है।
महिला काउंसलरों द्वारा उनकी काउंसलिंग भी की जाएगी, ताकि उन्हें भावनात्मक संबल मिल सके। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जयपुर के माध्यम से दो वरिष्ठ महिला काउंसलरों की नियुक्ति की गई है, जो परिवार से पुनर्मिलन की प्रक्रिया में सहयोग करेंगी।
FIR दर्ज कर होगी गहन जांच
सभी रेस्क्यू की गई महिलाएं 18 वर्ष से अधिक आयु की हैं और वे अपने घर जाना चाहती हैं। संस्था ने उनके पुनर्वास के लिए कोई कार्रवाई नहीं की थी।
उपलब्ध तथ्यों, बयानों एवं निरीक्षण के बाद लोगों और संस्था के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर गहन जांच की जाएगी। पुरुषों के नाम, पहचान एवं बयान दर्ज कर उन्हें तत्काल मुक्त किया गया, जबकि युवतियों/महिलाओं को सुरक्षित रूप से नारी निकेतन/बालिका गृह में ट्रांसफर किया जा रहा है।