राजस्थान पहाड़ी निर्माण नियम 2024: राजस्थान में पहाड़ों पर घर और रिसोर्ट बनाने के नए नियम जारी, जानें कितनी जमीन की होगी जरूरत

राजस्थान सरकार [Rajasthan Government] ने नगरीय क्षेत्रों के पहाड़ों [Hills] पर मकान, फार्म हाउस [Farm House] और रिसोर्ट [Resort] बनाने के लिए नए बायलॉज [Bylaws] जारी किए हैं। इसके तहत ढलान [Slope] के आधार पर निर्माण की अनुमति दी जाएगी और पर्यावरण संरक्षण [Environmental Conservation] का भी ध्यान रखा जाएगा।

जयपुर | राजस्थान सरकार ने प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में स्थित पहाड़ों पर निर्माण गतिविधियों को लेकर नई नीति स्पष्ट कर दी है। नगरीय विकास विभाग द्वारा जारी 'नगरीय क्षेत्र में स्थित पहाड़ों के संरक्षण मॉडल विनियम 2024' के तहत अब लोग पहाड़ों पर वैध तरीके से मकान, रिसोर्ट और फार्म हाउस का निर्माण कर सकेंगे। सरकार ने इन पहाड़ों को ढलान के आधार पर तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया है, जिससे निर्माण की सीमाएं तय की गई हैं। पूर्ववर्ती नियमों में पहाड़ों पर अधिक निर्माण की छूट थी, लेकिन नई नीति में सुरक्षा और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए दायरे को संतुलित करने का प्रयास किया गया है ताकि प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन रोका जा सके।

निर्माण के लिए निर्धारित श्रेणियां और जमीन की आवश्यकता

नियमों के अनुसार, 8 से 15 डिग्री के ढलान वाले पहाड़ों (श्रेणी बी) पर फार्म हाउस निर्माण के लिए न्यूनतम 5,000 वर्गमीटर भूमि का होना आवश्यक है। इस भूमि के केवल 10 प्रतिशत हिस्से यानी अधिकतम 500 वर्गमीटर पर ही निर्माण किया जा सकेगा। निर्माण की ऊंचाई भी अधिकतम 9 मीटर (ग्राउंड प्लस एक मंजिल) तक ही सीमित रखी गई है। यदि कोई व्यक्ति बड़े स्तर पर फार्म हाउस बनाना चाहता है, तो उसे कम से कम 2 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी, जिस पर लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण की छूट मिलेगी। इसके अलावा, 0 से 8 डिग्री ढलान वाली श्रेणी 'ए' की जमीनों पर निर्माण के नियम तुलनात्मक रूप से अधिक लचीले रखे गए हैं, ताकि विकास कार्यों को गति मिल सके।

धार्मिक और वेलनेस सेंटर्स के लिए कड़े नियम

पहाड़ों पर आध्यात्मिक और स्वास्थ्य केंद्रों को बढ़ावा देने के लिए भी विशेष प्रावधान किए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति योग केंद्र, चिकित्सा केंद्र, वेलनेस सेंटर या धार्मिक स्थल बनाना चाहता है, तो उसके पास कम से कम 1 हेक्टेयर जमीन होनी चाहिए। ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए अधिकतम कवरिंग एरिया 15 प्रतिशत तय किया गया है। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिन पहाड़ों का ढलान 15 डिग्री से अधिक है, उन्हें 'नो-कंस्ट्रक्शन जोन' माना जाएगा और वहां किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं होगी। यह नियम सुनिश्चित करता है कि अत्यधिक तीव्र ढलान वाले संवेदनशील क्षेत्रों के साथ कोई छेड़छाड़ न हो और भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा कम रहे।

पर्यावरण संरक्षण और विशेषज्ञों की चिंताएं

भले ही सरकार ने नियमों में पारदर्शिता लाने का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञों ने स्लोप मापने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। वर्तमान में ढलान नापने के लिए कोई मानक पैमाना या जीआईएस-आधारित सर्वे की स्पष्ट व्याख्या नहीं दी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पहाड़ों के बेतरतीब दोहन की आशंका बढ़ सकती है। जयपुर, कोटा, बूंदी और सवाई माधोपुर जैसे शहरों में पहले ही अवैध माइनिंग के कारण अरावली की श्रृंखलाएं प्रभावित हुई हैं। जयपुर के गोनेर, बस्सी, कालवाड़ और झालाना जैसे क्षेत्रों में पहाड़ों को काटकर जमीनें समतल कर दी गई हैं। नए नियमों के बाद इन खाली पड़ी पहाड़ी जमीनों पर आवासीय कॉलोनियों और मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग्स के निर्माण का रास्ता साफ हो सकता है। माइक्रो-लेवल कटिंग के जरिए ढलान को कृत्रिम रूप से कम दिखाने की संभावना भी बनी हुई है, जो भविष्य में पारिस्थितिक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।