पंवार की किताब से किस्सा : जब मस्जिद ढहाई जा रही थी तब क्या कर रहे थे तब के रक्षा मंत्री शरद पंवार, पंवार ने खुद किया है खुलासा
NCP के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पंवार ने आज NCP के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की है. शरद पंवार के इस्तीफे के बाद माना जा रहा है कि अब उनकी राजनीतिक यात्रा यहीं थमने वाली है.
NCP के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पंवार ने आज NCP के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की है. शरद पंवार के इस्तीफे के बाद माना जा रहा है कि अब उनकी राजनीतिक यात्रा यहीं थमने वाली है. हालाँकि इससे पहले भी पंवार चुनाव लड़ने के लिए मना कर चुके है लेकिन पार्टी के कार्यकर्त्ता और नेताओं ने उन्हें चुनाव लड़वाया.
अगर शरद पंवार के राजनीतिक जीवन की बात करे तो वे देश के उन उम्रदराज नेताओं की लिस्ट में शामिल है जिनके साथ आजाद भारत की बड़ी राजनीतिक घटनाएँ जुडी हुई है. शरद पंवार न केवल राजनीतिक जोड़-तोड़ के हुनरमंद उस्ताद रहे है बल्कि देश की हर बड़ी घटना में उनकी एक बड़ी भूमिका रही है या फिर वे तमाम घटनाएँ किसी न किसी रूप में शरद पंवार के इर्द-गिर्द जरूर घूमती है.
आज ऐसी ही एक घटना का जिक्र शरद पंवार के हवाले से करेंगे जो केवल देश की राजनीति में सबसे बड़ी घटना थी बल्कि आने वाले दशकों में उस घटना ने पूरी राजनितिक को बदल कर रख दिया.
यह बात जगजाहिर है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त शरद पंवार देश के रक्षा मंत्री थे. जिस तरह से बाबरी मस्जिद को ढहाया गया और उसके बाद देश में पनपे माहौल के बीच एक रक्षा मंत्री आखिर क्या कर रहा था इस बात का जवाब खुद शरद पंवार अपनी आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' में देते है. लेकिन बाबरी मस्जिद पर शरद पंवार का किरदार उससे पहले ही रंगमंच पर दस्तक दे चुका था.
पंवार ने प्रधानमंत्री के कहने पर बहुत बड़ा गोपनीय काम किया
शरद पंवार जनता पार्टी के पचास विधायक लेकर राजीव गाँधी के समर्थन से प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर के सबसे करीबी लोगों में से एक थे. प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद चंद्रशेखर ने सबसे पहले राम-जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर काम करना शुरू किया. अपनी भूमिका के बारे में शरद पंवार खुद लिखते है है कि -
'चंद्रशेखर ने पदभार संभालते ही इस मसले पर जारी गतिरोध को तोड़ने की पहल की. भैरों सिंह शेखावत को भाजपा में उदार हिन्दू नेता के रूप में देखा जाता था. चंद्रशेखर और भैरों सिंह शेखावत के बीच अच्छी मित्रता थी. प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर पहलकदमी करते हुए मुझे और भैरों सिंह शेखावत को दिल्ली बुलाया. उन्होंने शेखावत से BMAC के नेताओ के साथ एकांत में बात करने के लिए कहा और मुझे भी राम-जन्मभूमि न्यास के नेताओ से एकांत में बात करने के लिए कहा.
इस किताब में शरद पंवार भैरों सिंह शेखावत पर एक ओर बड़ी बात लिखते है कि 'मुसलमान समुदाय के साथ शेखावत की कुछ एकता थी और राम जन्मभूमि न्यास का नेतृत्व RSS के मराठी मोरोपंत पिंगले कर रहे थे और मैं भी एक मराठी था'
अपनी किताब में बाबरी मुद्दे पर शरद पंवार कुछ जरुरी खुलासे करते है.और लिखते है कि प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के कहने पर उन्होंने और भैरों सिंह शेखावत ने इस दौरान अनेक मीटिंग मुस्लिम पक्ष और राम-जन्भूमि न्यास के साथ की.
लेकिन पहले ही गिर गई चंद्रशेखर सरकार
पंवार इस किताब में यह भी स्वीकार करते है कि वे और शेखावत और कॉमन बिंदु पर पहुँच गए और उन्होंने दोनों पक्षों को एक समझौते के लिए तैयार भी कर लिया. लेकिन उस पर काम हो पाता उससे पहले ही चंद्रशेखर की सरकार गिर गई. पंवार एक बड़ी सच्चाई यह भी स्वीकार करते है कि अगर यदि चंद्रशेखर सरकार छह महीने बनी रहती तो इस मुद्दे को सुलझा लिया जाता.
चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार गिर जाने के बाद राम-मंदिर विवाद में 6 दिस्मबर की घटना सबसे उल्लेखनीय है. उस वक्त नरसिम्हा राव की सरकार में शरद पंवार देश के रक्षा मंत्री थे और इस पूरे विवाद में खुद की भूमिका पर भी पंवार विस्तार से लिखते है साथ ही कुछ जरुरी तथ्यों से परदा उठाते हैं. पंवार लिखते है कि उन्होंने इस मामले में नरसिम्हा राव को कठोर कदम उठाने का सुझाव दिया. लेकिन प्रधानमंत्री शक्ति प्रयोग के पक्ष में नहीं थे. दरअसल रक्षा मंत्री की हैसियत से शरद पंवार ने अयोध्या में सेना की टुकड़ियां तैनात करने का सुझाव रखा था.
जब नरसिम्हाराव ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो पंवार ने ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारियों से 6 दिसम्बर की घटना की वीडियोग्राफी करने को कहा.
नरसिम्हा राव को माना कमजोर नेता
शरद पंवार ने स्वीकार किया है कि बाबरी मस्जिद केस में नरसिम्हा रावएक कमजोर नेता थे. हालाँकि वे मानते है कि प्रधानमंत्री इस तरह का विध्वंस नहीं चाहते थे लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए. इस पूरी घटना में पंवार ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया का भी जिक्र किया है.
पंवार लिखते है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को समझाया कि कारसेवक किसी भी हद तक जा सकते है. लेकिन नरसिम्हा राव मानते थे कि अगर सेना ने गोलियां चलाई तो पूरे देश में हिंसा फ़ैल जाएगी. साथ ही एक बैठक में उन्होंने राजमाता विजयाराजे सिंधिया का उल्लेख इस तरह किया है कि नरसिम्हा राव ने कहा कि-
'मैं राजमाता के शब्दों पर पूर्ण विश्वास करता हूँ. मैं जनता हूँ कि वे मुझे नीचे नहीं दिखाएंगी
दरअसल राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने नरसिम्हा राव को एक बैठक में आश्वासन दिया था कि कारसेवा के दौरान किसी भी तरह से कानून का उलंघन नहीं किया जाएगा.