Rajasthan : गहलोत बोले: अरावली को फीते से न नापें, नया नियम भयावह
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) 'अरावली बचाओ मुहिम' (Save Aravalli Campaign) के समर्थन में उतरे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अरावली (Aravalli) पहाड़ियों की नई परिभाषा पर चिंता जताई है, जिससे 90% से अधिक पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो जाएंगी।
जयपुर: पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) 'अरावली बचाओ मुहिम' (Save Aravalli Campaign) के समर्थन में उतरे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अरावली (Aravalli) पहाड़ियों की नई परिभाषा पर चिंता जताई है, जिससे 90% से अधिक पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो जाएंगी।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 'अरावली बचाओ मुहिम' का खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने इस अभियान को न केवल राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण और भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताया है।
गहलोत ने अपने बयान में कहा है कि अरावली की ये प्राचीन पहाड़ियां और इनके घने जंगल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आस-पास के बड़े शहरों के लिए 'फेफड़ों' की तरह काम करते हैं। ये क्षेत्र की वायु गुणवत्ता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अरावली पर्वतमाला धूल भरी आंधियों को रोकने में एक प्राकृतिक बाधा का काम करती है। यह प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाती है।
अरावली की नई परिभाषा पर गहलोत की गहरी चिंता
गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को 'भयावह' और 'डरावनी' करार दिया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब अरावली के रहते हुए भी पर्यावरण की स्थिति इतनी गंभीर है, तो इसके बिना स्थिति कितनी वीभत्स और कल्पनातीत होगी?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले के अनुसार, 20 नवंबर 2025 से जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही कानूनी रूप से अरावली पहाड़ी माना जाएगा। यह परिभाषा अरावली के संरक्षण के लिए एक बड़ा झटका है।
इस नए मानक के लागू होने से अरावली की 90% से भी अधिक पहाड़ियां संरक्षण के कानूनी दायरे से बाहर हो जाएंगी। इस फैसले के बाद से ही अरावली को बचाने की आवाजें पूरे देश में तेज हो गई हैं, खासकर राजस्थान में।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली पहाड़ियों की इस नई परिभाषा को मंजूरी देने के बाद राजस्थान के लगभग आधे हिस्से में पर्यावरण को लेकर गंभीर चिंताएं गहरा गई हैं। यह चिंता राज्य के भविष्य पर सीधा असर डाल सकती है।
#SaveAravalli अभियान से जुड़ने की भावुक अपील
अशोक गहलोत ने इस महत्वपूर्ण मुहिम में अपनी सक्रिय भागीदारी की घोषणा की है। उन्होंने अरावली संरक्षण के पक्ष में चल रहे #SaveAravalli अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर (DP) भी बदली है।
गहलोत ने एक विस्तृत बयान जारी कर स्पष्ट किया कि उनकी यह कार्रवाई महज एक फोटो बदलना नहीं है। यह उस नई और विवादास्पद परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक लेकिन सशक्त विरोध है, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इनकार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन दूरगामी बदलावों ने पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। गहलोत ने आम जनता, पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी अपनी डीपी बदलकर इस मुहिम का हिस्सा बनने की भावुक अपील की है।
केंद्र और सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार का विनम्र आग्रह
पूर्व मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार और स्वयं सुप्रीम कोर्ट से एक विनम्र और गंभीर अपील की है। उन्होंने भावी पीढ़ियों के सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य के लिए अरावली की इस नई और संकीर्ण परिभाषा पर तत्काल पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
गहलोत ने जोर देकर कहा कि अरावली जैसी महत्वपूर्ण पर्वतमाला को केवल 'फीते' या उसकी 'ऊंचाई' के भौतिक मापदंडों से नहीं आंका जाना चाहिए। इसके बजाय, इसे इसके अमूल्य 'पर्यावरणीय योगदान' और पारिस्थितिक महत्व के आधार पर देखा जाना चाहिए, जो कि कहीं अधिक व्यापक और महत्वपूर्ण है।
अरावली का पर्यावरणीय महत्व: जल संकट और वन्यजीवों का भविष्य
गहलोत ने अरावली को राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में जल संरक्षण का मुख्य आधार बताया है। उन्होंने समझाया कि इसकी अनूठी चट्टानें और भूगर्भीय संरचना बारिश के पानी को जमीन के भीतर भेजकर भूजल स्तर को रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ये पहाड़ नष्ट हो गए या उनका संरक्षण समाप्त हो गया, तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर किल्लत होगी। इसके साथ ही, कई दुर्लभ वन्यजीव लुप्त हो जाएंगे और पूरे क्षेत्र की नाजुक इकोलॉजी खतरे में पड़ जाएगी, जिससे जीवन का संतुलन बिगड़ जाएगा।
छोटी पहाड़ियां भी हैं उतनी ही अहम जितनी बड़ी चोटियां
वैज्ञानिक दृष्टि से अरावली एक निरंतर और अविभाज्य शृंखला है। गहलोत ने स्पष्ट किया कि इसकी छोटी पहाड़ियां भी उतनी ही अहम और अभिन्न हैं जितनी इसकी ऊंची चोटियां।
उन्होंने एक सशक्त उदाहरण देते हुए समझाया कि अगर किसी मजबूत दीवार में एक भी ईंट कम हुई, तो पूरी दीवार की सुरक्षा और अखंडता टूट जाएगी। इसी तरह, अरावली की हर छोटी-बड़ी पहाड़ी का अपना विशिष्ट पर्यावरणीय महत्व है और वह इस विशाल पारिस्थितिकी तंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा है।
आधे राजस्थान में गहराया पर्यावरण संकट और मरुस्थलीकरण का खतरा
सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा को मंजूरी मिलने के बाद राजस्थान के 15 जिलों में पर्यावरण को लेकर गंभीर चिंताएं गहरा गई हैं। इनमें उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, भीलवाड़ा और सिरोही जैसे प्रमुख जिले शामिल हैं, जो राज्य के लगभग आधे हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह नई परिभाषा स्पष्ट रूप से कहती है कि आस-पास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही अरावली पहाड़ी के रूप में मान्यता दी जाएगी। इस संकीर्ण मानक से अरावली की 90% से भी अधिक पहाड़ियां कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।
इसका सीधा और विनाशकारी असर खनन, रियल एस्टेट और अन्य निर्माण गतिविधियों पर पड़ेगा, जिन्हें इन "गैर-अरावली" क्षेत्रों में अनियंत्रित रूप से अनुमति मिल सकती है। नतीजतन, भविष्य में मेवाड़ जैसे हरे-भरे क्षेत्र के रेगिस्तान में बदलने का गंभीर और वास्तविक खतरा पैदा हो जाएगा, जिससे कृषि और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होगा।
विशेषज्ञों की चेतावनी: गर्मी, भूकंप और मानसून पर गंभीर परिणाम
पर्यावरण विशेषज्ञों और भूवैज्ञानिकों ने अरावली पर्वतमाला के समाप्त होने या उसके बड़े हिस्से के संरक्षण से बाहर होने पर गंभीर और दूरगामी परिणामों की चेतावनी दी है। उनका दावा है कि इससे प्रदेश में मरुस्थल का विस्तार तेजी से होगा, जिससे थार रेगिस्तान का प्रभाव बढ़ेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदेश में गर्म हवाओं का व्यापक असर बढ़ता जाएगा, जिससे लू और अत्यधिक तापमान की घटनाएं बढ़ेंगी। बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे बारिश की कमी हो सकती है और सूखे की स्थिति और गंभीर हो सकती है।
उन्होंने यह भी आगाह किया है कि अरावली के कमजोर होने से भूकंप का असर ज्यादा होगा और अरावली से निकलने वाली कई महत्वपूर्ण मौसमी नदियां सूख जाएंगी। इन भयावह परिवर्तनों का फसलों पर बुरा असर पड़ेगा और पूरे क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं तथा जलवायु पर विपरीत और स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
11 हजार से अधिक टीले खो देंगे अपनी पहचान
भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) के आकलन के मुताबिक, राजस्थान के 15 जिलों में कुल 12 हजार 81 अरावली पहाड़/टीले ऐसे हैं जो 20 मीटर या उससे अधिक ऊंचे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की नई 100 मीटर की परिभाषा के तहत, इनमें से केवल 1 हजार 48 ही ऐसे हैं जो इस नए मानक को पूरा करते हैं।
इसका सीधा अर्थ है कि लगभग 11 हजार 33 ऐसी संरचनाएं जो अब तक अरावली का हिस्सा मानी जाती थीं, उन्हें नई परिभाषा के तहत अरावली नहीं कहा जा सकेगा। 20 मीटर ऊंचाई का मानक पहले इसलिए अहम माना जाता रहा है, क्योंकि इतनी ऊंचाई की पहाड़ियां भी हवा के प्रवाह को रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार का काम करती हैं और पर्यावरण संतुलन में योगदान देती हैं।
यह स्थिति न केवल राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण संतुलन और पारिस्थितिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। अरावली का समग्र और व्यापक संरक्षण भावी पीढ़ियों के लिए अत्यंत आवश्यक है, ताकि हम एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित कर सकें।