राजस्थान विधानसभा चुनाव: हिंडोली विधानसभा के चुनाव में सचिन पायलट ने दिया था पहला भाषण
कभी सचिन पायलट की मां श्रीमती रमा पायलट की राजनीतिक एंट्री का माध्यम रही यह सीट गुर्जर बहुल है। यहां सचिन पायलट का आज भी खासा प्रभाव है। कभी पायलट की टीम में रहे अशोक चांदना अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास हैं और फिलहाल यहां से कांग्रेस के टिकट पर दो बार से यहां विधायक हैं और गहलोत सरकार के मंत्री भी हैं।
हिन्डोली | राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस के कद्दावर नेता सचिन पायलट ने पहला राजनीतिक भाषण यहीं दिया था।
कभी सचिन पायलट की मां श्रीमती रमा पायलट की राजनीतिक एंट्री का माध्यम रही यह सीट हिन्डोली गुर्जर बहुल है। यहां सचिन पायलट का आज भी खासा प्रभाव है। कभी पायलट की टीम में रहे अशोक चांदना अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास हैं और फिलहाल यहां से कांग्रेस के टिकट पर दो बार से यहां विधायक हैं और गहलोत सरकार के मंत्री भी हैं।
हाड़ौती की यह सीट मेवाड़, ढूंढाड़ के साथ—साथ अजमेर और टोंक जिले से भी छूती है। 184 नम्बर की यह सामान्य सीट देवली उनियारा, बूंदी, मांडलगढ़, केशोरायपाटन, जहाजपुर विधानसभा सीटों से सीमाएं साझा करती है। इनमें देवली उनियारा को छोड़कर सभी सीटें बीजेपी के कब्जे में है। वैसे तो यह बूंदी जिले का हिस्सा है, लेकिन लोकसभा के लिहाज से भीलवाड़ा लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है। बीजेपी के सुभाष बहेड़िया यहां से सांसद हैं।
इस सीट पर 282 मतदान बूथ हैं और 2 लाख 65 हजार 723 मतदाता बीते चार साल में 17 हजार 872 वोटर्स की बढ़ोतरी के साथ दर्ज है। चुनाव की आचार संहिता लागू होने तक यह बढ़ोतरी चलती रहेगी। गुर्जर, माली, राजपूत और ब्राह्मण मतदाताओं की बहुतायत वाली इस सीट पर कई बार कांटे की टक्कर हुई है तो कई बार एकतरफा मुकाबले निकले हैं। मूलत: यह कांग्रेस मूड की सीट है। यहां पर बीजेपी अपने गठन 1980 के बाद मात्र एक ही बार विधायक बना सकी है।
2018 के चुनाव में अशोक चांदना ने बीजेपी के ओमेन्द्रसिंह हाड़ा को 30 हजार 541 वोटों के बड़े अंतर से हराया। यह एक सीधा सपाट चुनाव था। यहां तो नोट को 3937 वोट मिले।
इससे पहले 2013 में भाजपा की लहर के बाजवूद प्रत्याशी महिपत सिंह हाड़ा चुनाव करीब 19 हजार वोटों से हार गए। हालांकि पोस्टल बैलेट में महिपत सिंह आगे रहे, लेकिन जनता ने उन्हें पसंद नहीं किया। इस चुनाव में हिंडोलीवासियों ने 5371 वोट नोटा के खाते में डाल दिए।
इससे पहले 2008 में हुए चुनाव में प्रभुलाल सैनी अपनी टोंक जिले की देवली—उनियारा सीट छोड़कर यहां आए और उन्होंने कांग्रेस के विधायक हरिमोहन शर्मा को हराया। उनकी जीत का अंतर 6080 रहा।
हालांकि बीजेपी देवली—उनियारा सीट पर नाथूसिंह गुर्जर को ले गई, लेकिन वह रामनारायण मीणा के सामने चुनाव हार गए। करीब 12 हजार वोटों का अंतर रहा, लेकिन मुख्य वजह थे दिग्विजय सिंह। जो बागी खड़े हुए और 25 हजार 838 वोट ले गए। हालांकि यह सीट 23 साल बाद बीजेपी के खाते में आ सकी। परन्तु अब बीजेपी को बीते दो चुनावों से सीट के लौटने का इंतजार ही है।
यदि इससे पुराने इतिहास की बात करें तो पहले विधानसभा चुनावों में 81.27 प्रतिशत वोटों के साथ राम राज्य परिषद के टिकट पर सज्जन सिंह हिंडोली से पहले विधायक के तौर पर चुने गए। कांग्रेस को यहां 4.1 प्रतिशत वोट मिला और व तीसरे नम्बर पर रही।
4.74 प्रतिशत वोट के साथ निर्दलीय ऋषि दत्त दूसरे नम्बर पर रहे। अगले यानि कि 1957 के चुनावों में यहां एसटी की सीट पर कांग्रेस के माधुलाल जीते और सामान्य हिंडोली से कांग्रेस के ही भंवरलाल शर्मा विधायक बने।
इन चुनावों में विधायक सज्जन सिंह बूंदी सीट पर शिफ्ट हो गए थे। 1962 में सीट एसटी की हो गई तो कांग्रेस के टिकट पर गंगासिंह विधायक चुने गए, जीत का अंतर महज 326 वोट रहा। 1967 में फिर से परिसीमन में सीट सामान्य हुई। जनसंघ के टिकट पर 449 वोट के अंतर से जीतकर केसरीसिंह हाड़ा विधायक बने। वे पहली विधानसभा में बूंदी सीट से विधायक थे।
1972 में कांग्रेस ने रमेश चंद सैनिक को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने 1961 में गोवा मुक्ति युद्ध में भाग लिया था वर्ष 1962 में चीन युद्ध में भाग लिया और वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध में लड़ाई लड़ी थी। जनता ने सिर आंखों पर बिठाया और रमेश चंद सैनिक को एकतरफा 70 प्रतिशत वोट देकर एसओपी के माणिकलाल को 21 हजार 208 वोटों से हराया।
अगले चुनाव में माहौल बदल गया और आपातकाल के बाद जेपी आंदोलन की लहर में यहां जनता पार्टी के गणेश लाल एक बड़े अंतर से चुनाव जीते। 1980 के चुनाव में भाजपा से गणेश लाल बैरागी खड़े हुए, लेकिन लोगों ने कांग्रेस आई के प्रभुलाल शर्मा को जिताकर विधानसभा भेजा।
हालांकि 1985 में मुकाबला फिर बदल गया। यहां से बीजेपी के गणेश लाल बैरागी कांग्रेस के प्रभुलाल शर्मा के सामने जीते। हालांकि जीत का अंतर दो हजार से भी कम वोटों का रहा। 1990 के चुनाव में यहां एंट्री होती है रमा पायलट की।
पहली बार महिला चुनावों में उतरी और हिंडोली के जनता ने उन्हें चुनाव जिताया। अपनी मां के प्रचार में आए बालक सचिन पायलट ने यहीं पर एक बार भाषण दिया। राजस्थान विश्वविद्यालय में सम्बोधित करते हुए सचिन ने इस बात का उल्लेख भी किया।
इस चुनाव में रमा ने बीजेपी के पोखरलाल को 9 हजार 721 वोटों अंतर से हराया। हालांकि बीजेपी से 1985 में विधायक रहे गणेशलाल बागी थे और 11 हजार 846 वोट लिए थे। सरकार भैरोंसिंह शेखावत की बनी, लेकिन हिंडोली में कांग्रेस जीती।
1993 में एक बार फिर से चुनाव हुआ, लेकिन इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार शांति धारीवाल थे। जी हां! वही शांति धारीवाल जो फिलहाल संसदीय कार्यमंत्री हैं। यह मुकाबला बड़ा गजब हुआ। यहां पर शांति धारीवाल महज 15 वोट से जीत हासिल कर विधायक बने।
इससे पहले धारीवाल कोटा लोकसभा सीट से सांसद थे। 1998 में रमा पायलट को कांग्रेस ने फिर मौका दिया तो पोखरलाल सैनी को एक बार फिर से 15 हजार 530 वोटों से हराकर वे विधानसभा पहुंचीं।
हालांकि वर्ष 2000 में उनके पति राजेश पायलट का एक हादसे में निधन हो गया तो वे दौसा सीट से लोकसभा की प्रत्याशी बनाई गईं और उन्होंने चुनाव जीता। हिंडोली में हुए उप चुनाव में नाथूलाल गुर्जर विधायक बने।
इसके बाद कांग्रेस ने 2003 में हरिमोहन शर्मा को उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने बीजेपी के नाथूलाल गुर्जर को 813 वोटों से हराया। 2008 में प्रभुलाल सैनी विधायक बने और बीते दो चुनावों से यहां अशोक चांदना विधायक हैं।
हिंडोली के लोग जिस पर प्रेम लुटाते हैं तो जमकर लुटाते हैं। परन्तु कई बार चुनाव ऐसा कांटे का करते हैं कि राजनीतिक विश्लेषकों के समझ में नहीं आता। हिंडोली के नागरिक इस चुनाव में क्या गुल खिलाएंगे। यह देखने वाली बात है।
S.No. | Name of MLA | Year |
1 | सज्जन सिंह | 1951 |
2 | भंवरलाल शर्मा | 1957 |
2 | मोडूलाल | 1957 |
3 | गंगासिंह परिहार | 1962 |
4 | केसरी सिंह हाड़ा | 1967 |
5 | रमेशचन्द्र सैनिक | 1972 |
6 | गणेश लाल बैरागी | 1977 |
7 | प्रभुलाल शर्मा | 1980 |
8 | गणेश लाल बैरागी | 1985 |
9 | रमा पायलट | 1990 |
10 | शान्ति कुमार धारीवाल | 1993 |
11 | रमा पायलट | 1998 |
11 | नाथू लाल गुर्जर | 2001 |
12 | हरिमोहन शर्मा | 2003 |
13 | प्रभूलाल सैनी | 2008 |
14 | अशोक चॉंदना | 2013 |
15 | रमा पायलट | 2018 |