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कहना गलत नहीं होगा कि बसपा अनारक्षित सीटों पर असंतुष्टों का हथियार है, जिसे वे हर चुनाव में चलाकर अपना सिट्टा भुना ले जा रहे हैं।
वैसे बसपा पर यह ठप्पा जरूर है कि वह दलित और आदिवासियों की पार्टी है। परन्तु जब से हाथी ने चाल बदलकर सभी जातियों को साथ लेना शुरू किया है तब से राजस्थान में हवा अलग हो रही है।
2018 के चुनावों में, बसपा ने छह सीटें जीती थीं, लेकिन उसके उम्मीदवार बाद में पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए, जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच तनाव पैदा हो गया।
यह तनाव यदि कायम रहेगा तो निश्चित तौर पर यह पार्टी कांग्रेस वह कढ़ी खराब करेगी, जिसमें उबाल लाने के लिए गहलोत पूरी शिद्दत से जुटे हैं।
जयपुर | क्या आपको पता है राजस्थान में बीते 33 साल में बहुजन समाज पार्टी सात विधानसभा चुनावों में सरकार किसकी बनेगी, यह कई बार तय कर चुकी है। अब तक 936 प्रत्याशी उतार चुकी है। 19 विधायक बना चुकी है। लेकिन आज तक एक भी दलित बसपा के टिकट पर चुनाव नहीं जीता। जबकि दलितों की पार्टी का सम्बोधन इसे यदा—कदा मिलता रहता है। परन्तु राजस्थान में यह कहना गलत नहीं होगा कि बसपा अनारक्षित सीटों पर असंतुष्टों का हथियार है, जिसे वे हर चुनाव में चलाकर अपना सिट्टा भुना ले जा रहे हैं।
परन्तु सामान्य सीटों पर हाथी की मौजूदगी गणित बदलती रही है और वह इस बार भी बदलेगी। राजस्थान में शतरंज के मोहरों की गणित समझें तो टेढ़ी चाल उंट की होती है जो राजेन्द्र गुढ़ा चल रहे हैं। अब सीधी चाल वाले हाथी ने अपने तीन मोहरे आगे कर दिए हैं।
बहनजी यानि कि मायावती इस बार कड़े मूड में हैं और राजस्थान के चुनावों में राजनीतिक चौसर की पहली तीन गोटियां चल दी हैं। तीन सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। वैसे बसपा पर यह ठप्पा जरूर है कि वह दलित और आदिवासियों की पार्टी है। परन्तु जब से हाथी ने चाल बदलकर सभी जातियों को साथ लेना शुरू किया है तब से राजस्थान में हवा अलग हो रही है।
अब तक बसपा के कुल 19 विधायक राजस्थान में बने हैं,इनमें से एक भी दलित विधायक यानि कि अनुसूचित जाति का नहीं बना है। कहने का अर्थ है कि न तो एससी की सीट पर बसपा जीती और न ही एससी का प्रत्याशी किसी अनारक्षित सीट से बसपा के टिकट परविधानसभा पहुंचा। परन्तु आदिवासी यानि कि एसटी के अब तक छह विधायक बने हैं।
इनमें से भी एसटी के लिए आरक्षित सीट एकमात्र सपोटरा पर ही मात्र दो बार यह हो सका है। शेष पांच एसटी विधायक भी अनारक्षित सीट से बसपा के टिकट पर जीतकर पहुंचे हैं। इससे साफ है कि बसपा सामान्य सीटों पर सेंध लगाती है। अनारक्षित सीटों पर दलित वोट बड़ी संख्या में सामान्य उम्मीदवारों को झोली भरकर वोट देता है।
बीते तीन चुनावों में बसपा का परफोरमेंस देखें तो पता चलता है कि सामान्य सीटों पर बसपा के प्रत्याशी खेल कर जा रहे हैं। हालांकि इस बार आरएलपी का फोकस भी दलित सीटें हैं, लेकिन अब दलित नेताओं का कहना है कि वे बसपा को ज्यादा प्रिफर करेंगे।
2018 में यह जीते
- झुंझुनूं के उदयपुरवाटी से राजेंद्र गुढ़ा
- भरतपुर के नगर से वाजिब अली
- भरतपुर के नदबई से जोगिंद्र अवाना
- अलवर के तिजारा से संदीप यादव
- अलवर के किशनगढ़ बास से दीपचंद खेरिया
- करौली से लाखन सिंह
2018 में बसपा के विधायक तो छह जीते, लेकिन दलित एक भी नहीं। केवल एक अनुसूचित जनजाति का विधायक है और पांच अन्य जातियों के हैं। इनमें एक—एक गुर्जर, राजपूत, जाट, मुस्लिम, एसटी और यादव हैं। बसपा के कारण इन सीटों पर कांग्रेस तिजारा और करौली में दूसरे नम्बर पर रही। जबकि जबकि उदयपुरवाटी, किशनगढ़ बास और नदबई तीन जगह तीसरे, नगर में चौथे नम्बर पर रही थी।
बीजेपी तीन जगह दूसरे और तीन ही जगह तीसरे नम्बर पर रही। 2018 के चुनाव में सादुलपुर के मनोज न्यांगली और मुंडावर सीट पर ललित यादव के नाम पर चुनाव लड़ रही बसपा दूसरे नम्बर पर रही। राजस्थान में 2018 में 31 सीटें ऐसी रही हैं जहां यह पार्टी तीसरे नम्बर पर रही है।
इनमें से सामान्य की सीटें 22 हैं और एससी—एसटी आरक्षित सीट महज नौ हैं। यदि चौथे नम्बर की बात करें तो बसपा प्रदेश में 42 जगह चौथे नम्बर पर रही। इनमें भी आरक्षित सीटें सिर्फ 10 हैं। पार्टी का प्रत्याशी 46 जगह पांचवें नम्बर पर रहा। इनमें आरक्षित सीटों की संख्या महज 15 हैं।
2013 में बसपा के टिकट पर यह बने विधायक
- चुरू के सादुलपुर से मनोज न्यांगली
- झुंझुनूं के खेतड़ी से पूरणमल सैनी
- धौलपुर से बनवारीलाल कुशवाह
2013 में बसपा तीन ही सीट जीत पाई। इनमें सादुलपुर, खेतड़ी और धौलपुर रही। धौलपुर से जीते बीएल कुशवाह की बाद में सदस्यता रद्द हो गई और उनकी पत्नी शोभारानी उप चुनाव में बीजेपी के टिकट पर विधायक बनी थी। बसपा ने 2013 में कांग्रेस को सादुलपुर में तीसरे, खेतड़ी धौलपुर में दूसरे नम्बर पर रखा था। यहां जातीय समीकरणों की बात करें तो कोई दलित या अजा का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता। एक राजपूत और दो माली समाज के लोग चुनाव जीते थे।
बसपा इन चुनावों में भी पांच जगह दूसरे नम्बर पर रहीं। प्रदेशाध्यक्ष रहे डूंगरराम गेदर जो सूरतगढ़ सीट पर दूसरे नम्बर पर रहे। वे 2018 में बसपा के टिकट पर साढ़े 55 हजार वोट लाए, लेकिन अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं और माटी कला बोर्ड के चेयरमैन बनकर राज्यमंत्री का दर्जा पा चुके हैं। तिजारा में फजल हुसैन, भरतपुर में दलवीर सिंह, नदबई से हालिया अध्यक्ष घनश्याम सिंह बाबा और खिंवसर से दुर्ग सिंह दूसरे नम्बर पर रहे थे।
2008 में बसपा के टिकट पर यह बने विधायक
- झुंझुनूं के नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा
- झुंझुनूं के उदयपुरवाटी से राजेन्द्र सिंह गुढ़ा
- धौलपुर के बाड़ी से गिर्राज सिंह मलिंगा
- सपोटरा एसटी सीट से रमेश मीणा
- दौसा सीट से मुरारीलाल मीणा
- गंगापुर से रामकेश मीणा
2008 में बसपा के छह विधायक जीते थे और वे छहों कांग्रेस में शामिल हो गए। इनमें दो राजपूत उदयपुरवाटी से राजेन्द्र गुढ़ा और बाड़ी धौलपुर से गिर्राज मलिंगा, एक ब्राह्मण नवलगढ़ से डॉ. राजकुमार शर्मा तथा तीन एसटी के विधायक जीते थे। इनमें से आरक्षित सीट पर तो सपोटरा सीट पर रमेश मीणा ही जीते थे। जो आजकल कांग्रेस सरकार में पंचायतराज मंत्री हैं। वहीं दौसा और गंगापुर की सामान्य सीट पर एसटी के विधायक जीते थे। इन चुनावों में नौ सीटों सादुलपुर, तिजारा, भरतपुर, नदबई, वैर, बयाना, महुवा, खिंवसर और सिवाना पर बसपा दूसरे नम्बर पर रही थी। इनमें से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट सिर्फ दो वैर और बयाना थीं।
2003 में बसपा के टिकट पर यह बने विधायक
- दौसा के बांदीकुई से मुरारीलाल मीणा
- करौली से सुरेश मीणा
इससे पहले की बात करें तो 2003 में बांदीकुई से मुरारीलाल मीणा और करौली से सुरेश मीणा विधायक बने थे। दोनों ही अनुसूचित जनजाति वर्ग से आते हैं, लेकिन जीते अनारक्षित सीट से ही थे। 1998 में पहली बार बसपा का खाता खुला और दो विधायक बने।
1998 में बसपा के टिकट पर यह बने विधायक
- बानसूर से जगत सिंह दायमा
- नगर सीट से मोहम्मद माहिर आजाद
बानसूर से जगत सिंह दायमा ने बीजेपी के कद्दावर नेता रोहिताश्व कुमार शर्मा को हराया था और नगर सीट से मोहम्मद माहिर आजाद विधायक बने थे। दोनों ही अनारक्षित सीटों से जीते।
अनारक्षित सीटों पर यह दलित और एसटी विधायक जीते
अनारक्षित सीटों पर बड़ी पार्टियां दलित और आदिवासी उम्मीदवारों को मौका नहीं देती। इससे उनका गणित बिगड़ता है। परन्तु कांग्रेस पहली बार सामान्य सीटों पर दलित और अजजा को बड़े पैमाने पर टिकट दिए। खासकर पूर्वी राजस्थान में तो गुर्जर—मीणा का झगड़ा इस चुनाव में नजर नहीं आया।
परिणाम आया इनमें अनारक्षित जैसलमेर से रूपाराम धनदेव दलित वर्ग से चुनाव जीते। बात एसटी की करें तो आठ अनारक्षित सीटों से एसटी के प्रत्याशी जीते हैं।
कांग्रेस के टिकट पर इनमें थानागाजी से कांति मीणा, महुवा से ओमप्रकाश हुड़ला, दौसा से मुरारीलाल मीणा, गंगापुर से रामकेश मीणा, देवली उनियारा से हरीश मीणा, पिपल्दा से रामनारायण मीणा जीते हैं। जबकि बीजेपी के टिकट जहाजपुर से गोपीचंद मीणा जीते हैं।
राजस्थान में बसपा के वोटों का इतिहास यह रहा
बसपा ने 1990 से यहां चुनाव लड़ना शुरू किया। पहले चुनाव में 57 प्रत्याशी उतारे थे, इन 57 सीटों पर बसपा ने 2.54 प्रतिशत वोट खींचा। वो जनता दल का दौर था और बीजेपी ने गठबंधन पर सरकार बना ली। बसपा स्टेट लेवल की पार्टी थी, तो कोई खास तरजीह मिली नहीं।
इससे अगले यानि कि 1993 में बसपा ने 50 जगह प्रत्याशी उतारे, लेकिन वोट शेयर घटकर 2.01 फीसदी रह गया। परन्तु यहां बसपा ने एक बड़ी दस्तक दर्ज करवाई, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस के बीच अंतर सिर्फ 0.33 प्रतिशत का ही था।
बसपा के यह मार्जिनल वोट कांग्रेस को कई जगह ले बैठे। 11वीं विधानसभा के लिए 1998 में हुए चुनावों में बसपा ने 108 प्रत्याशी उतारे। बानसूर और नगर में बसपा प्रत्याशी जीत गए और 3.81 फीसदी वोट बसपा ने इन 108 सीटों पर औसतन लिए।
2003 में बसपा ने प्रत्याशियों की संख्या कर दी 124 और सीटें दो मात्र दो ही जीतीं, लेकिन इन 124 सीटों पर 6.40 प्रतिशत वोट खींच लिए। यहां कांग्रेस की करारी हार हुई थी। कांग्रेस को जिन 97 सीटों का नुकसान हुआ, उसमें बसपा की बड़ी भूमिका रही।
2008 में बसपा ने 199 सीटों पर चुनाव लड़ा और अब तक का ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 7.66 वोट हासिल किए। कांग्रेस को बसपा के विधायकों को अपनी ओर मिलाना पड़ा। इससे अगली विधानसभा 2013 में 199 सीटों पर फिर से लड़ी बसपा का वोट शेयर घटा और 3.48 प्रतिशत वोट लेते हुए तीन विधायक बसपा बना सकी।
2018 में 199 सीटों पर ही उतरी बसपा को वोट तो चार फीसदी मिले, लेकिन इसी पार्टी से जीतकर आए लोगों ने लड़खड़ाती गहलोत सरकार को सहारा दिया और छह विधायक एक बार फिर से कूच कर गए।
दावा तो है कि बसपा का फोकस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 59 सीटों पर है, जहां उसका लक्ष्य कांग्रेस के गढ़ को चुनौती देना है। 2018 के चुनावों में, बसपा ने छह सीटें जीती थीं, लेकिन उसके उम्मीदवार बाद में पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए, जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच तनाव पैदा हो गया।
यह तनाव यदि कायम रहेगा तो निश्चित तौर पर यह पार्टी कांग्रेस वह कढ़ी खराब करेगी, जिसमें उबाल लाने के लिए गहलोत पूरी शिद्दत से जुटे हैं।
बसपा का परफोरमेंस Rajasthan विधान सभा चुनाव
Vidhan Sabha Term |
विधान सभा चुनाव |
चुनाव लड़ा |
MLA बने |
कुल वोट शेयर |
सीटों पर लड़े उनका % |
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9वीं विधानसभा | 1990 | 57 | 0 | 0.79% | 2.54% |
10वीं विधानसभा | 1993 | 50 | 0 | 0.56% | 2.01% |
11वीं विधानसभा | 1998 | 108 | 2 | 2.17% | 3.81% |
12वीं विधानसभा | 2003 | 124 | 2 | 3.97% | 6.40% |
13वीं विधानसभा | 2008 | 199 | 6 | 7.60% | 7.66% |
14वीं विधानसभा | 2013 | 199 | 3 | 3.37% | 3.48% |
15वीं विधानसभा | 2018 | 199 | 6 | 4.00% |