राजधानी में जुट रहे है 'जाट': बेनीवाल के बिना कितना प्रभाव छोड़ेगा जाट महाकुंभ ?
कहते हैं जिन्दा कौमे ज्यादा इंतज़ार नहीं करती। चुनाव सिर पर हों तब तो बिलकुल भी नहीं। हीरक जयंती के बहाने श्री क्षत्रिय युवक संघ की ऐतिहासिक रैली के बाद राजस्थान के शेखावाटी और मारवाड़ में प्रभावी जाट वोट बैंक के लिए "जाट महाकुम्भ " बड़े क्षत्रिय प्रदर्शन की तरह है।
कहते हैं जिन्दा कौमे ज्यादा इंतज़ार नहीं करती। चुनाव सिर पर हों तब तो बिलकुल भी नहीं। हीरक जयंती के बहाने श्री क्षत्रिय युवक संघ की ऐतिहासिक रैली के बाद राजस्थान के शेखावाटी और मारवाड़ में प्रभावी जाट वोट बैंक के लिए "जाट महाकुम्भ " बड़े क्षत्रिय प्रदर्शन की तरह है।
इस वोट बैंक की अजमेर और भरतपुर संभाग में भी बड़ी उपस्थिति है ,लेकिन मारवाड़ शेखावाटी जितनी नहीं। इस वोट बैंक को पहली बार राजनैतिक ताकत दी थी ,आर्य समाज से जुड़े और "जाट की बेटी ,जाट को वोट ,जाट को " का नारा देने वाले कुम्भा राम आर्य ने।
पूरी नहीं हुई कांग्रेस से उम्मीद
"बाबा " के नाम से चर्चित रहे नाथू राम मिर्धा ,परस राम मदेरणा , रामनिवास मिर्धा ,शीश राम ओला और नटवर सिंह जैसे प्रमुख जाट नेताओं ने आर्य की उसी लकीर को बड़ा किया। जब तब जाट मुख्यमंत्री की मांग भी मजबूत की ,लेकिन कांग्रेस में वह सपना पूरा नहीं हुआ ,जिसे बीजेपी ने धौलपुर राजपरिवार की महारानी ,यानी जाट राजघराने की बहू वसुंधरा राजे के जरिये पूरा कर दिया।
अब जबकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ,पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी को अग्रिम पंक्ति बढ़ाने के साथ साथ सचिन पायलट में अपना भविष्य तलाश रही है। बीजेपी में भी जाट -सतीश पूनिया ,सुमेधानन्द सरस्वती समेत कई नेताओं की दावेदारी वाली लम्बी कतार है।
"जाट महाकुम्भ " के इस आयोजन पर राजनैतिक प्रेक्षकों की निगाह पड़नी स्वाभाविक है। इस बीच जाट महासभा के राजा राम मील का एक ऐसा वीडियो भी वायरल हुआ है ,जिसमे वह वसुंधरा राजे ,गोविन्द सिंह डोटासरा और सतीश पूनिया में तो बड़ी सम्भावना देख रहे हैं ,लेकिन अपने बूते पार्टी खड़ी कर पहले ही चुनाव में तीन एमएलए फिर बीजेपी की मदद से एक एमपी जिताने वाले हनुमान बेनीवाल को ख़ारिज कर देने के अंदाज़ में हैं।
बयान पर विवाद ,विरोध
सामाजिक चेतना को लेकर विमर्श करने वाले जाट अपने प्रमुख राजा राम मील के इस सोच से हैरान भी हैं और परेशान भी। यह सब तब हो रहा है ,जब समाज में अपनी बड़ी पकड़ रखने वाले विजय पूनिया तो राजस्थान विश्व विद्यालय के अध्यक्ष निर्मल चौधरी और महासचिव अरविन्द जाजड़ा को तो तमाम झगड़े फसाद कके बीच एक मंच पर ला गले मिला रहे हैं और राजा राम मील बेनीवाल को ख़ारिज करते नजर आ रहे हैं।
अब तक के विज्ञापनों ,प्रचार -प्रसार और आयोजक राजा राम मील के अंदाज़े बयां से लगता है कि "जाट महाकुम्भ "में बेनीवाल अलग-थलग से रहेंगे। बेनीवाल समर्थकों को लगता है कि समाज के आग्रह पर बेनीवाल मंच पर आये भी तो कमान किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ होगी ,जो बेनीवाल की कदकसी कर सके।
जाट समाज के नौजवानों में हनुमान बेनीवाल के प्रति दीवानगी का आलम यह है कि राजा राम मील की उम्र का लिहाज छोड़ बेनीवाल के समर्थक अपने अपने हिसाब से गुस्सा जता रहे हैं। समर्थकों को लगता है कि सड़क से संसद तक हनुमान बेनीवाल ने जिस तरह अपनी छाप छोड़ी वैसी नाथू राम मिर्धा के अलावा न पहले कोई छोड़ पाया है ,न आगे छोड़ पायेगा।
उप चुनावों में डोटासरा (कांग्रेस ) और पूनिया (बीजेपी ) की लीडरशिप को नकार जाट समाज के नौजवान सबसे ज्यादा किसी के साथ खड़े दिखाई दिए तो वह बेनीवाल ही हैं।
अपनी अलग पार्टी -राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी बना बड़े दलों के गणित को उलझाने में जुटे बेनीवाल को लेकर राजाराम मील के वीडियो क्या वायरल हुए ,बेनीवाल समर्थकों का गुस्सा सातवें आसमान पर छा गया। सामाजिक एकता के लिहाज से वह अपने समाज के मुखिया से उम्मीद कर रहे थे कि वह बेनीवाल को समर्थन देंगे ,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नाराजगी की असल वजह भी यही है।
गुस्से में नौजवान
बेनीवाल के साथ हर सूरत में खड़े दिखने वाले डिजिटल क्रियेटर जगदीश सारण कांटिया तो इतने बिफरे कि सोशल मीडिया पर राजा राम मील पर बरस से पड़े। फेसबुक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सारण ने लिखा है -
"एक बार फिर उम्र के आख़िरी पड़ाव में भाई ओर भतीजे को टिकिट दिलाने के लिए तथाकथित राजनीतिक जाट कुंभ करके हनुमान बेनीवाल व जाट समाज के युवाओं को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा हैं, लेकिन समाज ऐसे ठेकेदार का काला चेहरा पहचान चुका हैं।"
ट्वीटर और फेसबुक पर बेनीवाल के प्रति दीवानगी, राजा राम मील के प्रति नाराजगी में इस कदर नजर आयी कि लोगों ने भाषा और सम्मान का संयम तक खो दिया। सारण की ही पोस्ट पर टिप्पणियों में मील के प्रति गुस्सा सा उबल पड़ा। व्यवसाय के साथ सामाजिक दायित्वों में आगे राजराम मील उम्रदराज होते हुए भी समाज के हक़ की खातिर लोगों की भीड़ जुटाने में आगे रहे हैं।
लेकिन उनके प्रति इस गुस्से की वजह एक ही है। जाट महाकुम्भ के बहाने बेनीवाल की अनदेखी। बेनीवाल समर्थकों को लगता है कि यह भीड़ दुसरे नेताओं के लिए तो संजीवनी साबित होगी ,लेकिन इसके जरिये बेनीवाल को कमजोर करने की कोशिश हो सकती है।