अंबेडकर और महाराजा: एक अनोखा बंधन: महाराजा गायकवाड़ ने अंबेडकर को दी शिक्षा की राह
बड़ौदा. 4 जून 1913 को बड़ौदा महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ (Maharaja Sayajirao Gaekwad) ने एक 22 वर्षीय युवक (young man) को अमेरिका में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति
मालाबार हिल पैलेस (बॉम्बे) में एक 22 वर्षीय युवक की मुलाकात बड़ौदा महाराजा सयाजीराव से हुई, जिसका बड़ौदा में छोटा सा प्रवास जातिगत पूर्वग्रहों के कारण अच्छे अनुभव वाला नहीं था.
युवक ने बड़ौदा में सेवा और आवासीय असुविधाओं को साझा करने के लिए महाराजा से मुलाकात की थी। महाराजा को युवक के बारे में लगभग सब कुछ पहले से ही पता था। उन्हें होने वाली असुविधा के बारे में एक भी शब्द कहे बिना, उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा की
लगभग आधे घंटे की चर्चा के बाद, महाराजा ने उन्हें अगले दिन उसी समय आने के लिए कहा। चूंकि महाराजा ने शिकायतों के बारे में कुछ नहीं कहा, इसलिए युवक दु:खी हुआ और उनकी असंवेदनशीलता से चकित भी।
किन्तु वह जानता था कि महाराजा भी तो आखिर हिन्दू और ख़ासकर उसी तंत्र का हिस्सा हैं जो छूत अछूत से बाहर नहीं निकल सकता। उसकी परेशानी को वे क्या समझेंगे! निराशा के बावजूद भी जब बुलाया गया था तो जाना तो था ही।
अगले दिन महाराज ने पूछा कि वह कौन सा विषय पढ़ना पसंद करेगा?
युवक ने सुखद आश्चर्य से उत्तर दिया- समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और विशेष रूप से सार्वजनिक वित्त।
महाराज बोले- इन विषयों का अध्ययन करके तुम क्या करोगे?
युवक बोला- इन विषयों के अध्ययन से मुझे अपने समाज की स्थिति को सुधारने में सहायता मिलेगी। मैं उन्हीं के आधार पर सामाजिक सुधार का कार्य करूंगा।
महाराज हँसते हुए बोले- लेकिन तुम हमारी सेवा करने जा रहे हो, है न? फिर तुम पढ़ाई, सेवा और समाज सेवा एकसाथ कैसे करोगे?
युवक बोला -यदि महाराज मुझे उचित अवसर देंगे तो मैं सभी कार्य कर सकता हूँ।
महाराज बोले- मैं भी यही सोच रहा हूं। मैं आपको अमेरिका भेजने के बारे में सोच रहा हूं, क्या आप जाएंगे?
युवक प्रसन्न होकर बोला- निश्चित ही। मैं आपका आभारी रहूँगा।
महाराज मुस्कराये।
अब आप जा सकते हैं। छात्रवृत्ति के लिए हमारे शैक्षणिक अधिकारी को विदेश में अध्ययन के लिए आवेदन भेजें और मुझे सूचित करें।
4 जून 1913 को युवक ने बड़ौदा राज्य के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन्होंने निर्धारित विषयों का अध्ययन करने और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दस वर्ष तक बड़ौदा राज्य की सेवा करने की सहमति व्यक्त की। उन्हें छात्रवृत्ति के रूप में 20,434 रुपये की राशि प्रदान की गई।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में, युवक ने हर विषय में उत्कृष्टता हासिल की। उन्होंने अपने युग के कई महान लोगों जैसे जॉन डेवी, जेम्स शॉटवेल और जेएच रॉबिन्सन, थोर्नडाइक, अलेक्जेंडर गोल्डनवेइज़र, गिडिंग्स को व उनके कार्य को देखा, समझा।
उसने अर्थशास्त्र पर अपनी पीएचडी पूरी की जिसका शीर्षक था - 'ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास: शाही वित्त के प्रांतीय विकेंद्रीकरण में एक अध्ययन।'
इसके समर्पण भाग में लिखा- "बड़ौदा के महामहिम श्री सयाजीराव गायकवाड़ महाराजा को समर्पित। मेरी शिक्षा के लिए उनकी सहायता हेतु मेरी कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में।"
इस पुस्तक के महत्व के बारे में बोलते हुए, प्रोफेसर एडविन सेलिगमैन, जो कोलंबिया विश्वविद्यालय में इस युवक के शिक्षक थे, ने कहा-
"मेरी जानकारी के अनुसार, कहीं भी अंतर्निहित सिद्धांतों का इतना विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है, जैसा अम्बेडकर ने किया।"
1917 में भारत लौटने के बाद समझौते के अनुसार अम्बेडकर 10 वर्षों तक राज्य की सेवा करने के लिए बड़ौदा चले गए।
शुरुआत में महाराजा ने डॉ. अंबेडकर को अपना सैन्य सचिव नियुक्त किया फिर उन्होंने उन्हें अपने वित्त मंत्री के रूप में पदोन्नत करने की योजना बनाई। हालांकि किन्हीं कारणों से वे बॉम्बे लौट गए जिनके बारे में वह ज्यादा बताना जरूरी नहीं समझते हैं।
1930 में, इन दो प्रतिष्ठित हस्तियों के बीच बातचीत के लिए एक बार फिर मंच तैयार हुआ। इस बार स्थान लंदन था और अवसर था प्रथम गोलमेज सम्मेलन का।
महाराजा सम्मेलन में आमंत्रित लोगों में से एक थे। उन्होंने गर्व के साथ देखा कि किस तरह डॉ. अंबेडकर दलित वर्ग की राजनीतिक मुक्ति के लिए तर्कपूर्ण वक्तव्य दे रहे थे।
नरेंद्र जाधव ने लिखा है, “संयोग से, बड़ौदा के महाराजा महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ जो सम्मेलन में भाग ले रहे थे, डॉ. अंबेडकर के भाषण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाद में उनके लिए एक विशेष रात्रिभोज का आयोजन किया।”
लंदन में अपने निवास पर लौटने के बाद, महाराजा ने आंखों में खुशी के आंसू लिए-अपनी पत्नी महारानी चिमनाबाई को डॉ. अंबेडकर द्वारा दिए गए शानदार भाषण के बारे में बताया।
अपने जीवन के अंतिम चरण में अम्बेडकर ने महाराजा के पोते को 1950 में एक भावुक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ पर जीवनी लिखने की इच्छा व्यक्त की थी।
"वह मेरे संरक्षक और मेरे भाग्य के निर्माता थे... मैं उनका बहुत आभारी हूँ। काश मैं उनका उचित ऋण चुका पाता। ऐसा करने का एकमात्र तरीका है कि मैं उनके जीवन के बारे में लिखूँ।"
दुर्भाग्यवश, वह यह कार्य पूरा नहीं कर सके और विश्व ने डॉ. अंबेडकर के विचारशील नजरिए से महाराजा के जीवन और काल को पढ़ने का अवसर खो दिया।