नीलू की कलम से: नया साल और स्मार्टफूड

नया साल और स्मार्टफूड
नया साल और स्मार्टफूड
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Highlights

गिलोय और ग्वारपाठे की तरह बाजरे और उसे बोने वाले के भी दिन फिरेंगे और स्मार्ट फूड की स्मार्टनेस दुनिया देखेगी

जमीन में जहर कितना घोला,इसका कोई हिसाब है? धरती का पानी सोखा और विरासत में बच्चों को बीमारियों का ढेर दिया?

आशंका निर्मूल न होगी पर आशंकाओं के अंधेरे द्वीप पर उम्मीदों के दीप जलाने कहां मना हैं

गलत दिशा में चली क्रांतियां कबाड़ा भी खूब करतीं हैं। तब भी तुम्हें उपलब्धियां गिनवानी है तो अपने मुंह से नहीं लोगों के मुंह से सुनो। मां के सराहे पूत नहीं सरीजते

न्यू ईयर ईव पर अनाजों का गेट टुगेदर हुआ। इंट्रो का दौर चला।

मोठजी बोले-
"मैं हूं गोल गट्ट
खाने वाले को एक रात में कर दूं सीधो सट्ट।"
बिरादरी ने कहा - "हूंऽऽऽऽ मान गए।"
'आंटीलों' के आगे कौन सीधा न हो?

अब मूंगजी आए-
"मैं हूं सबका सिरे धान
आए गए का राखूं मान"
बिरादरी ने सदियों के अनुभव से कहा- खम्मा खम्मा! 'मोठ मरोड़' वाले परिवार में पैदा होकर भी तुमने जो गुणार्जन किया है,तुम निस्संदेह 'सिरे' हो।

तब जौ जी बोले -
"मेरे ऊपर लंबा भाला
मेरी पिछाण बूढ़े और थके को कर दूं ढाला"
वाह! बुजुर्गों ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।

चावल बोला-
"मेरे तीखी इणी
मैं मांगूं घी चीणी"
वाह सा वाह!

लगे हाथ चना जी बोले-
"मेरा नाम चीणा
खाया सो तो ठीक पर अब खूब पाणी पीणा"
सब एक साथ ठठाकर हंस पड़े।

अब बूढ़े बुजुर्गों को आने दो। मक्जी बावजी आओ।
"मक्की केवे म्हारे ऊपर चोटी
मन बो खावे जीके दु'जे झोटी"
"वा मोटा ठाकरां! रंग आपने रंग।"

अंत में बाजर जी आपजी साफा ठीक करके खंखारा करते हुए बोले-
"मैं हूं पीळो जरद
मन खावे मूंछ्याळा मरद!"
"वा वा वा, साव सांची अर सांवटी बात।"

सबने मिलकर आपस में रामा-सामा,जय माताजीकी की इतने में दौड़ता-हांफता गेंहू पहुंचा। हांफना अभी रुका नहीं था पर मोटम में मूंछ फरकाता हुआ बोला-
"देखो म्हारो मोटो पेट
मन खाबाळा मोटा सेठ"
"यहां आप सबसे तो छोटा ही हूं पर छोटी उम्र में कीरत खूब कमाई है। एक समय था जब लोग बार-तींवार ही फलकेे बपराते थे लेकिन महज चालीस-पचास सालों में प्रोग्रेस करके लाइफबॉय साबुन की तरह हर घर में पहुंच गया हूं।देश में क्रांति ला दी क्रांति।


काश! आपकी पुरानी पीढ़ी भी इस क्रांति का हिस्सा बन पाती तो हमारी कम्युनिटी कहां से कहां पहुंच जाती।"

बिरादरी उसका फिड़का देखती रह गई। तेरी भली हो! बटके सा बंदा बड़ी बात बोल गया! सबने बाजरे की तरफ देखा। बाजरा मूंछ की इणीं बंटते हुए बोला- "कंवरां! पहली बात तो यह कि हर तोंदू मिनख सेठ नहीं होता और हर क्रांति,क्रांति नहीं होती फिर क्रांतियां उपलब्धियां ही दे इसकी कोई गारंटी नहीं। गलत दिशा में चली क्रांतियां कबाड़ा भी खूब करतीं हैं। तब भी तुम्हें उपलब्धियां गिनवानी है तो अपने मुंह से नहीं लोगों के मुंह से सुनो। मां के सराहे पूत नहीं सरीजते।"

"गेहूं बोला- "मत भूलिए कि मैंने लोगों की भूख भगाई।"

"जमीन में जहर कितना घोला,इसका कोई हिसाब है? धरती का पानी सोखा और विरासत में बच्चों को बीमारियों का ढेर दिया? जो जन्म देने वाली का नहीं हुआ वह जमात का क्या होगा?"

"तुम डोकरों की यही समस्या है,तुम्हें प्रगतिशील आदमी फूटी आंख नहीं सुहाता। तुम अपनी नाकामियों की भड़ास नई पीढ़ी पर निकालते हो। यही नाम और शोहरत तुम्हें मिलती तो तुम क्या हाथ पीछे बांध लेते?"

मोठ से रहा न गया, तनकर बोला- "ओ राबोड़ी के ताऊ! आने वाला पूरा साल आपजी के नाम है! पूरी दुनिया मान गई कि बाजरा 'स्मार्ट फूड' है।"

बाजरे के ललाट पर 'सळ' पड़ गए।

"अब जमीन बंजर हुई तो दुनिया को बोदा बाजरा याद आया? जिंदे लोगों को मारो और फिर म्यूजियम सजाकर कमाओ,जीवित संस्कृतियों के गले घोंटकर अजायबघर में ढूंढो और जीवित भाषाओं को कुचलकर ग्रंथागारों को सेओ। यह भली है!"

"देर आए दुरुस्त आए। कमस्कम अब तो दुनिया आपका महत्त्व समझेगी!"- जौ बोला।

"महत्त्व के नाम पर कहीं मुझे किसी क्रांति में मत झोंक देना बापूड़ा!"

"अरे नहीं नहीं! आप तो मोतियों से महंगे होने वाले हो।"

"यह तो और भी चिंताजनक है।

कहीं मैं कोट्यारों से कोथळी में न पहुंच जाऊं।

पैसे वालों की प्लेट में पहुंचाते-पहुंचाते कहीं मुझे गरीबों की थाली से मत छीन लेना,मेरे मोती जैसे महीन दानों को जहर में मत सान देना और मेरी मीठी-कंवळी पंसुरी को कोरे डोकों में मत बदल देना। 'चटिये' के सहारे कई परिवार पाल रहा हूं। मुझ पर कृपा दृष्टि रखने वालों, मेरे धोळों की लाज रखना,धोळों में धूळ मत डलवा देना।"

बाजरे की आशंका निर्मूल न होगी पर आशंकाओं के अंधेरे द्वीप पर उम्मीदों के दीप जलाने कहां मना हैं।

उम्मीद है कि गिलोय और ग्वारपाठे की तरह बाजरे और उसे बोने वाले के भी दिन फिरेंगे और स्मार्ट फूड की स्मार्टनेस दुनिया देखेगी।

- नीलू शेखावत

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