मिथिलेश के मन से: सवाल जो पूछा जाना चाहिए

पूर्वी पाकिस्तान के जो बाद में बांग्लादेश बना, नागरिकों को पश्चिमी पाकिस्तान खास तौर पर वहां की पंजाबी कम्युनिटी किसी भी सूरत में अपना मानने को तैयार नहीं थी

सवाल जो पूछा जाना चाहिए bangladesh

हम अपने इतिहास को कितना जानते हैं और किस नजरिये, किस हवाले से जानते हैं? दायें बाज़ू के हवाले से जानते हैं या बायें बाज़ू के हवाले से? कुछ हकीकतें  ऐसी भी होती हैं जिन पर इतिहास और इतिहासकारों की नजर तब जाती है जब वे प्रसंगातीत हो चुकी होती हैं। ऐसी ही कुछ हकीकतों पर एक नजर जिन्हें इतिहास और इतिहास वेत्ताओं ने कूड़ेदान के हवाले कर दिया।

नंबर एक: पाकिस्तान जब 1971 में दोलख्त हुआ और जब बांग्लादेश वजूद में आया तो उसकी असल वज़ह क्या थी? गिनाने को बीस कारण हैं। 

मसलन पूर्वी पाकिस्तान के जो बाद में बांग्लादेश बना, नागरिकों को पश्चिमी पाकिस्तान खास तौर पर वहां की पंजाबी कम्युनिटी किसी भी सूरत में अपना मानने को तैयार नहीं थी और यह घिन्न पाकिस्तान के वजूद में आने के आसपास ही आयी। 

यह जातीय उन्माद और सुप्रीमेसी का भाव था। पंजाब और पंजाबियत की नजर में बंगाली माने काला, बंगाली माने दलिद्र, बंगाली माने भुक्खड़, बंगाली माने भात और मछली पर कुर्बान वह कौम जिसे काम करने से परहेज़ था। क्या यही वजह थी बंटवारे की?

नंबर दो: जिन्ना लैंड की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा उसके पूर्वी भाग से आता था। 

पूर्वी भाग यानी चटगांव, ढाका, मैमनसिंह, सिल्हट वगैरह वगैरह। लगभग अस्सी फीसद रेवेन्यू यह भुक्खड़ों की कौम मरकजी हुकूमत को देती थी और उनके खुद के इलाके के विकास कार्यों पर सकल रेवेन्यू का बमुश्किल पंद्रह फीसद इस्लामाबाद खर्च करता था। क्या यह बेईमानी ही बंटवारे की वजह बनी?

नंबर तीन: साझा पाकिस्तान में बंगालियों की आबादी पंजाबियों, बलूचियों, पठानों और दीगर कबीलाई हलकों की संयुक्त आबादी से भी ज्यादा थी। इस हिसाब से देखें तो बंगाली अक्सरीयत में थे और उन्हें पाकिस्तानी होने का सबसे पहले हक था। फिर क्यों उन्हें जंग में कूदना पड़ा?

नंबर चार: 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। मुजीब की पार्टी को पूरब में बंपर जीत मिली लेकिन पश्चिमी हिस्से में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का सिक्का चमका। दोनों हिस्सों की सीटों पर जीते हुए उम्मीदवारों की संख्या को जोड़ दें  तो अवामी लीग मीर रही और उसे देश की बागडोर मिलनी चाहिए थी लेकिन ' इधर हम, उधर तुम' के भुट्टो के जुमले पर फौज ने निर्णायक मोहर लगा दी। ज़ुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बने और देश का पूर्वी हिस्सा सन्न रह गया।  क्या यह बेईमानी ही विद्रोह का कारण बनी?

नंबर पांच: 1947 में जब पाकिस्तान बना और जब कायदे आज़म जिन्ना ने देश को पहली बार संबोधित किया तो उन्होंने दीगर बातों के अलावा एक बात बहुत मार्के की कही। उन्होंने कहा कि हम सेक्युलर होंगे। भाषा, जाति और मजहब के आधार पर इस मुल्क में कोई भेदभाव नहीं होगा। 1948 में जिन्ना पलट जाते हैं। वह कहते हैं कि उर्दू इस देश की मादरी ज़ुबान (मातृ भाषा) होगी। बंगाली आबादी को गहरा झटका लगता है क्योंकि बांग्ला भाषियों की तादाद उस समय सबसे ज्यादा थी। उनकी अपनी ज़ुबान के साथ बेइंसाफी हुई, क्या बंटवारे का असल कारण यह था?

जिन्ना 1948 में गुजर गये। उनके बाद उनकी विरासत का दावा ठोकने वाला पाकिस्तान में कोई बचा नहीं। अपने अंतिम दिनों में जिन्ना कहते भी थे कि  Pakistan is my biggest blunder. लेकिन उनके हाथ में अब कुछ नहीं रह गया था।

जो द्वंद्व उन्होंने पैदा किये, उनकी व्याख्या पाकिस्तान ने कुछ इस तरह की कि राजधर्म के निबाह में सेना सबसे अगली कतार में होगी, उसके पीछे होंगी कम्युनल ताकतें, उनके पीछे कबीले होंगे, धर्मांधता होगी, बदअमनी होगी, बदकलामी होगी। सबसे आखिर में होगा लोकतंत्र। 

खोल में दुबके किसी मौसमी फल की तरह। जिन्ना के बाद उनकी विरासत संभालने को बड़ी मुश्किल से फातिमा जिन्ना राजी हुईं। उन्होंने बाकायदा चुनाव लड़ा। उनके मुकाबिल थे अयूब खां। 

फातिमा हार गयीं। क्यों? क्योंकि सेना नहीं चाहती थी उन्हें जीतते देखना। फातिमा जिन्ना के पोलिंग एजेंट हुआ करते थे मुजीबुर्ररहमान। वही मुजीब जो बानी- ए- बांग्लादेश (राष्ट्रपिता, संस्थापक) बने। 

क्या मुजीब को ले कर सेना का गुस्सा तभी से था? क्या मुजीब के मन में अलग होने की चाह तभी से थी? क्या सेना नापसंद करती थी जिन्ना और फातिमा, दोनों को?

और अब आते हैं असली सवाल पर। बांग्लादेश किसकी कीमत पर बना? वहां की मुक्तिकामी जनता, इस्लामाबाद की जालिमाना हरकतें, अमानुषिक भेदभाव, राजनीतिक दोगलापन, बांग्ला जुबान की अवमानना, सेना की खुदमुख्तारी- आखिर किसकी कीमत पर बना बांग्लादेश? 

मुक्ति वाहिनी की कीमत पर? रज़ाकारों की कीमत पर? हिंदुस्तानी इमदाद की कीमत पर? हथियारों और गोला- बारूद की कीमत पर? लड़ा कौन और जीता कौन, यह सबको पता है। नहीं पता है तो यह सच कि बांग्लादेश वहां की लड़कियों और महिलाओं के जिस्म और आबरू की कीमत पर बना था।

इतिहासवेत्ता इससे सहमत नहीं होंगे और इतिहास और हिस्ट्री में फर्क करने वाले तो कतई सहमत नहीं होंगे। यह जो तर्क हम रख रहे, वह हवा- हवाई नहीं है। वह डाक्युमेंटेड है। उसे समझना हो तो यास्मिन सैकिया की किताब Remembering 1971: women, war & the making of Bangladesh जरूर पढ़नी चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि यह किसी किताब की मार्केटिंग नहीं है। यह काम हम नहीं करते।