नीलू की कलम से: पिटबुल के बहाने..

जिसने यह हिंसा की वह पशु था पर जिसने उसे तीन वर्ष तक बच्चे की तरह पाला वह एक इंसान था। माता-पिता या परिवार के साथ हिंसक व्यवहार करने वाले कितने लोग घर से निर्वासित या सलाखों तक पहुंचते हैं?

पिटबुल के बहाने..
पिटबुल के बहाने..

कुछ दिनों पूर्व एक खबर सुर्खियों में रही- "पालतू कुत्ते ने मालकिन को नोचकर मार दिया। "

इत्तेफाकन आज यूट्यूब पर मेरी आंखों के सामने इस वायरल न्यूज वाला वीडियो सामने आया। खबर रूह को कंपा देने वाली थी। एक वीडियो खोलते ही उससे रिलेटेड कई वीडियो कतारबद्ध हो जाते हैं।

अगले का थंबनेल था- "जिस पिटबुल ने मां को नोच खाया उसे दुलारता रहा बेटा!"- यह कुछ ज्यादा असहज करने वाली बात थी किन्तु पूरी खबर सुनकर पता चला कि जिस कुत्ते ने हिंसक होकर यह सब किया उसे उस घर में तीन वर्ष पूर्व लाया गया था,महज एक छोटे से बच्चे (पिल्ले)के रूप में।

जिसने यह हिंसा की वह पशु था पर जिसने उसे तीन वर्ष तक बच्चे की तरह पाला वह एक इंसान था। माता-पिता या परिवार के साथ हिंसक व्यवहार करने वाले कितने लोग घर से निर्वासित या सलाखों तक पहुंचते हैं?

कारण साफ है पीड़क और पीड़ित दोनों अपने हैं। दोनों के लिए कलेजा कटता है। प्रेम बड़ी ज़ाहिल चीज है, जिससे भी हो जाता है, उसके सारे नफे- नुकसान प्रेम करने वाला स्वयं ही भुगतता है। फिर यह प्रेम तो पत्थरों से भी हो जाते है,कुत्ता तो प्राणी जगत का हिस्सा है।

यह सब यहां मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि पिछले 20-22 वर्षों से हम गाय रखते आए हैं। गाय और बछड़े हमारे परिवार का हिस्सा हैं। हमारा बजट गायों के हिसाब से बनता है,हमारे यात्रा कार्यक्रम गायों के हिसाब से तय होते हैं.

यहां तक कि शादी विवाह के आयोजनों में भी उनकी उपस्थिति को ध्यान में रखकर तारीखें फिक्स होती हैं। सुबह की शुरुआत से सोने से पूर्व तक उनकी फिक्रमंदी दिनचर्या में शामिल है।
इतने वर्षों में कई ऐसे प्रसंग आए जब आप कह सकते हैं कि आपको गाय नहीं रखनी चाहिए या कि ऐसी गाय घर में नहीं रखनी चाहिए।

पहला उदाहरण राधा,हमारी पहली गाय की बछिया जो अंत तक हमारे साथ रही। राधा इतनी खूबसूरत थी कि चाहो तो 'फोटू में मंडका' लो। सफेद झक्क मानो बर्फ और लंबी इतनी की उसकी छः फिट लंबी धिराणी (मां) ही उसको दुह सकती थी।

लंबी पूंछ के नीचे काले बालों का एक हाथ लम्बा और घना छिणगा इतना सीधा कि जैसे केराटिन ट्रीटमेंट लिया हो। चंचल इतनी कि उसे गाय कम,घोड़ी ज्यादा कहा जा सकता था। मेरी मां के अलावा किसी 'तीरसिंहजी' को कुछ नहीं समझती थी।

लेकिन मेरी बहन रेणु सदा से डेरिंग रही है सो वह अक़्सर पंगा ले लेती थी। मां मजाक में कहती है-" ईं घर की गायां अर बायां ततैया ह ततैया।"

जब राधा दूध देने में 'टणका मणका' करने लगती तो रेणु उसका कान पकड़कर सामने खड़ी हो जाती। ये दोनों आपस में धींगा-मस्ती करती तब तक मां दूध निकाल लेती।

एक बार क्रोधवश  उसने जो सींग हिलाया तो असावधानीवश रेणु के बालों में जा फंसा। यह सब इतना त्वरित हुआ कि किसी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ।

रेणु जोर से चिल्लाई और राधा ने अपना सिर वहीं का वहीं जमीन से सटा लिया। बड़ी जहमत से बालों से सींग निकाला गया तब तक राधा चुपचाप यथास्थिति अपराधी की तरह खड़ी रही। यदि वह जरा भी अपने उद्दंड स्वभाव में आ जाती तो आज मेरी बहन नहीं होती।

 मां ने तो उसकी लातों के इतने 'फटीड़' खाए हैं कि उनका कोई हिसाब नहीं। इसके बावजूद वो हमारे स्नेह की भरपूर अधिकारिणी थी।

दूसरी पीढ़ी को गीता खूब शांत और सीधी थी पर तीसरी पीढ़ी की हंसी फिर राधा के नक्शे कदम। सिर्फ रंग का फ़र्क।

राधा जितनी धोळी,हंसी उतनी काळी कट। मां और पिताजी को छोड़कर किसीका लिहाज़ नहीं। काम करने वाली आंटी को उसने खूब छकाया,उसके गले में सांकळ डालना नाहरी को नाथने से कम न था।

तब भी हमें वह उतनी ही प्यारी थी जितना एक घर का नटखट बच्चा। आजकल ये आदरणीया मेरे मासिसा के द्वार की शोभा बढ़ा रही हैं। वहां भी वह मासिसा के अलावा किसीको कुछ नहीं गिनती।

हंसी के जाने के बाद हमारे पास बची बंसी भी कुछ कम शैतान नहीं है। मुश्किल से एक साल की हुई है पर हमारे घर का अन्न उस पर भी जोर कर रहा है। महीने भर की थी तब मेरी दिन-रात की मेहनत से बने नोट्स को खाकर किताबों पर बैठी जुगाली करती पाई गई मोहतरमा अपनी अग्रजाओं के नक्शे कदम पर है।

तब भी वह हमें प्यारी है। उसकी सातों सजाएं माफ़ हैं।
कुछ दिन पूर्व बंसी की मां मर गई,काफी बूढ़ी थी। संतोष इस बात का था कि गौमाता अपने खूंटे पर पैर पसारकर गई और दुःख इस बात का कि बंसी अभी भी उसका दूध पी रही थी,अब अकेली कैसे रहेगी?

मेरी मां तो दो दिन तक रोती रही। मैं उसे अपने साथ रखने लगी। छोटे बच्चे की तरफ वो मेरे पीछे-पीछे घूमती। लेकिन वह गाय का बच्चा है,इंसान नहीं जिसे हमेशा घर में रखा जा सके,यह भी हम जानते हैं। अकेली अब वह रह नहीं सकती,गौशाला में डालने के विचार से ही दिल दुखता है।

एक जीजा ने बंसी को अपने यहां रखने की हामी भरी। सौभाग्य से उनके पास पहले से एक गाय और बछड़ी है, बड़ा खेत और हरा चारा भी है। बंसी वहां आराम से रहेगी,इस आश्वस्ति से हमने उसे भेजने की हामी तो भर ली पर भेजना कितना मुश्किल था यह मैं जानती हूं। मैं दो दिन तक रोती रही। उस पर लिखे संस्मरण का एक अंश-

(मैं इसके लिए आधी रात को सुबक रही हूं और यह इन सब से अनजान अपनी गोल-गोल आंखें घुमाती हुई मेरी ओर ही देखे जा रही है। उसके भोलेपन को देख रूदन में एकाएक हिचकी आ अटकी। इस बार स्थिति की गंभीरता देख वह उठ खड़ी हुई,मुझे सूंघते हुए पलंग को चक्कर मारा और चाटने लगी।

इसका चाटना सुकून कम, छीलन ज्यादा देता है। जीभ पर मानो ग्राइंडर की प्लेट जैसे दाने लगे हों। मैं उसे बार-बार धकियाती हूं और वो ढीठता से कभी मेरे बाल खींचती है तो कभी बेडशीट के पल्ले। वो मुझे इरिटेट करने पर उतर आई है और न चाहते हुए मुझे जालीदार दरवाजे को हम दोनों के बीच लाना पड़ा। )

उसे भेजने के पिताजी ने विशेष इंतजाम करवाए,गाड़ी में मिट्टी डलवाई गई ताकि खुरों में चोट न लगे,शाम का वक्त चुना ताकि धूप न लगे,गाड़ी को बिल्कुल धीरे चलाया जाए। गाय बछड़ों को गाड़ी में चढ़ाने के लिए विशेष इंतजामों की जरूरत होती है पर बंसी तो मेरे पीछे ही टपक-टपक चलती हुई फुदककर गाड़ी में बैठ गई।

उसे डर था कि कहीं मैं उसे छोड़कर न चली जाऊं पर वह एक इंसानी धोखे की शिकार हुई, मैं उसे गाड़ी में छोड़कर उतर गई और वह बस कातर दृष्टि से देखती रही,उसकी आवाज को शायद भय ने सोख लिया। मैं खूब रोई। अब भी फोन पर हालचाल पूछते रहते हैं।

जीजा वीडियो कॉलिंग कर दिखा देते हैं। खुली हरियाली में उसे कूद-फांद करती देख कर संतुष्टि है कि वह खुश है।

कहने का आशय यही कि लोगों की नजर में जो हिंसक कुत्ता है,मालिक की नज़र में वह सिर्फ एक बच्चा है।

उस व्यक्ति की विडंबना को कौन समझेगा जिसने अपने दो प्यार एक साथ खोए हों और वह भी इतने दुखद तरीके से। प्यार करने वाला अंतिम दुलार भी न करे?यह कहां का न्याय है?