नीलू की कलम से: एक राजर्षि जिन्होंने ड्रेस कोड वालों के मुंह उतार दिए
युवक आत्मविश्वास के साथ दनदनाता हुआ गया और बातचीत करके ठरके से लौटा तो सूट-बूट वालों के चेहरे उतरे हुए थे और हिज हाईनेस हतप्रभ! यह युवक कोई और नहीं राजर्षि मदन सिंह जी दांता थे जिनकी सादगी के किस्से दांता और आस-पास के गांवों में खूब प्रचलित हैं।
ब्रिटिश महारानी के स्वागत में नगर और शाही महलों को सजाया गया। पीलखाने में खासी हलचल थी।
हाथियों के पांवों में चांदी के रत्न जड़ित झांझर और माथे पर खूबसूरत नक्काशीदार फलक, रंग-रंगीले मांडने और अंबाबाड़ी सजाए गए।
महारानी अपने पति के साथ जयपुर आ रही थी और नगर की जनता रास्तों पर गोरी महारानी की झलक पाने को बेताब हो रही थी।
सूरजपोळ पर जरी-बादळों के बेस पहने,हाथों में कलश लिए, डावड़ियों ने राजा-रानी की आरती उतारी।
शाही महलों में अभूतपूर्व स्वागत के बाद शानदार भोज का आयोजन किया गया जिसमें ठिकानेदार, जागीरदारों को भी आमंत्रित किया गया।
चूंकि समारोह और भोज का आयोजन शाही महलों में किया गया था अतः राजसी गरिमा के अनुकूल ड्रेस कोड भी निर्धारित किया गया।
सबको सूट-बूट ('प्रिंसेस रिमेंबर्स' के अनुसार जरी और कशीदेदार अचकन) पहनकर शामिल होना था। किंतु यह क्या? एक युवा ठिकानेदार धोती, कुर्ता और साफा पहने स्वागत कक्ष में प्रवेश कर रहे हैं।
आयोजक अधिकारियों ने बिना ड्रेस कोड के प्रवेश देने से मना कर दिया। युवक अंग्रेजी में अधिकारियों से रोबीले अंदाज़ में बहस कर रहे थे - "मेरी सच्चाई यही है, अब सूट-बूट के क्या मायने?"
"किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्"
सुंदर काया के लिए ऐसा क्या है जो उसकी शोभा नहीं बढ़ाता?
महल के दालान से गुजरते हुए ड्यूक को राजस्थानी वेश लुभा गया। वे कहने लगे- "मैंने रास्ते में खड़े लोगों को ऐसी आकर्षक वेशभूषा में देखा।
मैं उनसे बात करना चाहता था पर न तो वे मेरी भाषा समझते हैं न ही मैं उनकी भाषा किंतु यह युवक अंग्रेजी जानते हैं, मैं इनसे मिलना चाहता हूं।"
युवक आत्मविश्वास के साथ दनदनाता हुआ गया और बातचीत करके ठरके से लौटा तो सूट-बूट वालों के चेहरे उतरे हुए थे और हिज हाईनेस हतप्रभ!
यह युवक कोई और नहीं राजर्षि मदन सिंह जी दांता थे जिनकी सादगी के किस्से दांता और आस-पास के गांवों में खूब प्रचलित हैं।
- नीलू शेखावत