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अब तक की सारी प्रक्रिया का निष्पादन घर के पुरुष वर्ग द्वारा किया जाती है। व्यवस्था करने के बाद उन्हें 'इदम् न ममः' कहकर यहाँ से हट जाना है। तीज के दिन हींडा जनानियों का है। तीज पूजने के बाद उनका झूलरा हीन्डे की ओर रूख करता है।
अब हींडा तैयार है। ट्रायल के लिए कीड़ी को बिठाया जाता है। हींडने को व्यग्र बच्चे पूछते हैं- पहले कीड़ी को क्यों, हमें क्यों नहीं? वो यूं कि यदि शाख कच्ची हो या लाव ढीली हो तो पता चल जाए। कोई हड्डी पसली टूटनी ही हो तो कीड़ी की टूटे।
बच्चे खिलखिलाकर हँसेंगे। नहीं, नहीं। यह मजाक है। फिर? घर के सबसे छोटे को हींडने का मौका सबसे पहले मिलना चाहिए कि नहीं? अब कीड़ी से छोटा कौन होगा? सच क्या है पता नहीं पर कीड़ी बाई सबसे पहले हींडती है यह सच है।
हींडो घला द् यो सा ओ सा म्हारा जामण जाया बीर
बीरोसा म्हाने हींडो घला द् यो सा
कदमा की डाळी जी बाई म्हारी रेसम डोर बंधाय
बाईसा थांके हीन्डो घलायो सा
ग्रामीण अंचल में तीज का मतलब घेवर नहीं होता, तीज का मतलब होता है हींडा (झूला) । हींडा भी छोटे बच्चों वाला नहीं जो तनिक इधर तो तनिक उधर हिल कर मोजी-मोजी करा देता है।
हींडे के लिए पहली जरूरत है दीर्घकाय रुंख। किसी योग्य वृक्ष की तलाश की जाती है जो बढ़िया ऊँचाई लिए हो, जिसकी शाखा पर्याप्त मजबूत हो। सीधी और सपाट हो। खुरदरी डाल रस्से को नुकसान पहुंचा सकती है और रस्सा रसवंतियों को। तीज तिगरे में न बदले इसलिए एहतियात जरूरी है।
अब बात आती है रस्से की। अक्सर कुएं से पानी निकालने में काम आने वाले खूब लम्बे रस्से का चयन किया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में 'लाव' कहा जाता है। पेड़ की शाख पर रस्सा बांधते समय जूट के बोरे आदि बीच में रखे जाते थे जिससे न पेड़ को खरोंच आये और न ही रस्से को। अब क्या बाकी रहा!
फाटकड़ी या गोटकड़ी। घर के बड़े बुजुर्ग खाती या सुथार के यहाँ जाकर इसका निर्माण करवा लाते हैं। एक सीधी लकड़ी का एक डेढ़ हाथ का पतला लंबा गुटका जिसके दोनों छोरों को रस्सा फिट बैठने लायक काट दिया जाता है बीच से।
अब हींडा तैयार है। ट्रायल के लिए कीड़ी को बिठाया जाता है। हींडने को व्यग्र बच्चे पूछते हैं- पहले कीड़ी को क्यों, हमें क्यों नहीं? वो यूं कि यदि शाख कच्ची हो या लाव ढीली हो तो पता चल जाए। कोई हड्डी पसली टूटनी ही हो तो कीड़ी की टूटे।
बच्चे खिलखिलाकर हँसेंगे। नहीं, नहीं। यह मजाक है। फिर? घर के सबसे छोटे को हींडने का मौका सबसे पहले मिलना चाहिए कि नहीं? अब कीड़ी से छोटा कौन होगा? सच क्या है पता नहीं पर कीड़ी बाई सबसे पहले हींडती है यह सच है।
अब तक की सारी प्रक्रिया का निष्पादन घर के पुरुष वर्ग द्वारा किया जाती है। व्यवस्था करने के बाद उन्हें 'इदम् न ममः' कहकर यहाँ से हट जाना है। तीज के दिन हींडा जनानियों का है। तीज पूजने के बाद उनका झूलरा हीन्डे की ओर रूख करता है।
चलिए थोड़ा तीज का नेगचार भी जान लेते हैं। रात के भिगोये हुए मूंग, मोठ या चवळे, मेहंदी-मोळी और घेवर आदि एक थाल में सजाकर सभी स्त्रियाँ एक झाड़ी (बेर की) के नीचे इकट्ठी होती हैं।
आजकल शहरों में झाड़ी के नीचे जाने का अवसर न मिल पाने की स्थिति में झाड़ी की छोटी डाली काटकर ही उसका पूजन कर लिया जाता है। भीगे मूंग, मोठ के दानों को झाड़ी के काँटों में पिरोया जाता है और पल्लू से उतारा जाता है।
कुँआरी और विवाहिता दोनों प्रकार की महिलाएं तीज पूजती हैं। सब लहरिया जरूर ओढ़ती है। राजशाही लहरियों के अपने वेरियशन हैं- महीन डंकोली, मोटी डंकोली, समदर लहर, भोपाल शाही न जाने कितने ही। पूजन के दौरान गीत और गीतों में सावन, हींडा और लहरिया।
टूंक बीचे टोडा बीचे कोई
आई आई लेरिया री पोट राज
लेहरियो ले दो जी राज
ल्याय उतारियो चानण चौक में जी कोई
सौदागर फिर फिर जाय राज
ऐ कुण लेरिया रा गायकी
ऐ कुण करे ला दाम राज
बाबोसा लेरिया रा गायकी (ग्राहक)
बीरोसा करे ला दाम राज
नानकड़ा बीरोसा लेरियो ले आया
बां री बेनड़ ओढण जोग राज
हींडे पर हींडनें की एक शर्त है- पहले अपने पति का नाम बताओ। बड़ा मुश्किल काम है, जो स्त्रियाँ नींद में भी पति का नाम नहीं ले पाए वे जाहिर में कैसे बताये। देवरानी-जेठानियाँ नीम आदि की पतली कामड़ी तोड़कर सटासट शुरू होती हैं। इधर हींडे पर सवार स्त्री कौन कच्ची मिट्टी की है!
तीन नंबर गियर में सखियाँ झोटे दे रही थी जोरके। अब कामड़ी से बचना है तो चार नंबर या पांच नंबर तक खुद जाना होगा। बैठे बैठे ही उठाया पैर, टिकाई गोडी और अब यह हींडेगी नहीं, उड़ेगी। सन्न सन्न करती हवा में बीस हाथ इधर तो बीस हाथ उधर।
'चली छ-सातक हाथ' से पार नहीं पड़ेगी।
इस प्रक्रिया को पाटकड़ी/ गोटकड़ी या ऊबकल्या मचकाना कहते हैं जिसमें खड़े होकर हींडना होता है। हींडे को ऊँचा चढ़ाते वक्त घुटने मोड़कर पैरों को आगे की और बल देते हुए खड़ा होना होता है। एक प्रकार की दंड-बैठक। उतरो तो दंड, चढ़ो तो बैठक। ऐसे तूफान मेल हींडे के आसपास भी नहीं आती देवरानी-जेठानी ।
वे भी सोचती हैं-कोई बात नहीं उड़ ले थोड़ी देर। आना तो जमीन पर ही है। वे प्रतीक्षा करती हैं। अभी थकेगी, हींडा धीमा पड़ेगा और वे घेर लेंगी। अब बताओ नाम- नाम भी सीधे सीधे नहीं, बढ़िया सजा धजाकर दोहे, सोरठे या गीत की शक्ल में बताओ।
एक कहेगी-
गढ़ पर गोखा, गढ़पत गांव
बापजी सा का बेटा को फलाण सिंघ नांव
दूजी कहेगी-
काच की पेई, कंचन का ताळा
म्हारा भाई फलाण सिंघ सा का साळा
देवरानी-जेठानी के अलावा ननद भी लपेटे में आती है। ननद कुँआरी है तो कह देती है-
लसरक लोढी लसरक पान
बिना सगाई किसका नाम?
विवाहिताएँ निर्धारित तरीके से नाम बता कर ही नीचे उतर सकती हैं। बूढ़ी-ठाडी महिलाएं तो सांकेतिक रूप से हींडे पर बैठती हैं, मारने वाली सांकेतिक ही मारती है और वे अपने पतिदेव का नाम भी खुद ही चुपके से बता देती है।
सूण का काम स्वेच्छा से किया जाता है, जोर जबरदस्ती कैसी। काळी घटाएं, सावन का महीना, मेह की झड़ और तीज तिंवार रोज कहाँ पड़े हैं-
काळी कळायण सैंया ऊमटी
ऊमट आयो मेह
मेवा झड़ लाग
सावन में गेरो गाज
भादुड़े चमके बीजळी
सावन तो आयो सैंया म्हे सुणी
सावण का दिन च्यार
अबके तो भेजो बाबोसा बीर ने
म्हारी पेला सावण की तीज
- नीलू शेखावत