Rajasthan: RPS दिव्या मित्तल को क्लीनचिट, घूसकांड में ACB को झटका

जयपुर: राजस्थान पुलिस सेवा (Rajasthan Police Service) की अधिकारी दिव्या मित्तल (Divya Mittal) को 2 करोड़ (2 Crore) के घूसकांड में क्लीनचिट मिल गई है। तीन साल पहले एसीबी (ACB) ने उन्हें गिरफ्तार किया था, लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल पाई।

दिव्या मित्तल को क्लीनचिट: ACB को झटका

जयपुर: राजस्थान पुलिस सेवा (Rajasthan Police Service) की अधिकारी दिव्या मित्तल (Divya Mittal) को 2 करोड़ (2 Crore) के घूसकांड में क्लीनचिट मिल गई है। तीन साल पहले एसीबी (ACB) ने उन्हें गिरफ्तार किया था, लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल पाई।

सरकार ने राजस्थान पुलिस सेवा (आरपीएस) की अधिकारी दिव्या मित्तल को क्लीनचिट दे दी है। यह मामला तीन साल पहले का है, जब एसीबी ने उन्हें अजमेर में गिरफ्तार किया था।

दवा बिजनेसमैन से 2 करोड़ की रिश्वत मांगने के आरोप में एसीबी ने यह कार्रवाई की थी। लेकिन अब एसीबी की इस कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

एसीबी को क्यों नहीं मिली अभियोजन स्वीकृति?

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की ओर से ठोस सबूत पेश नहीं किए जा सके। इसी कारण आरपीएस दिव्या मित्तल के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल पाई।

सूत्रों के मुताबिक, एसीबी ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा-17ए के तहत कार्रवाई के लिए पहले स्वीकृति नहीं ली थी। इसके अलावा, ट्रांसक्रिप्ट में भी कथित तौर पर काट-छांट की गई थी।

इन खामियों के चलते ही जांच एजेंसी को अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल सकी। यह एसीबी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

दिव्या मित्तल के आरोप और वॉयस सैंपल का मामला

एसीबी की कार्रवाई के बाद दिव्या मित्तल ने पुलिस अधिकारियों पर भी गंभीर आरोप लगाए थे। उनकी गिरफ्तारी के समय वह एसओजी में पोस्टेड थीं।

उनके कई अन्य ठिकानों पर भी तलाशी अभियान चलाया गया था। दिव्या मित्तल 70 दिन से ज्यादा अजमेर जेल में बंद रही थीं।

इस दौरान एएसपी के महिला बंदियों के साथ लाइन में खड़े हुए फोटो भी सामने आए थे। यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था।

वॉयस सैंपल देने से इनकार

इस केस में एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि संबंधित ऑडियो की एफएसएल ने पुष्टि तो कर दी थी। लेकिन रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि आवाज किसकी थी।

आरपीएस दिव्या मित्तल ने अपना वॉयस सैंपल देने से साफ इनकार कर दिया था। एसीबी की ओर से पर्याप्त और ठोस सबूत पेश नहीं किए गए।

एसीबी के प्रस्ताव में कई खामियां थीं, जिसके कारण सरकार ने दिव्या मित्तल का पक्ष जानने के बाद अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।

क्या था 2 करोड़ की रिश्वत का पूरा मामला?

यह मामला 23 मई 2021 को शुरू हुआ था, जब जयपुर की विश्वकर्मा थाना पुलिस ने 5 करोड़ की दवाइयों से भरा एक टेम्पो पकड़ा था। अगले दिन अजमेर के रामगंज के ट्रांसपोर्ट नगर स्थित एक गोदाम से 114 कार्टन नशीली दवाइयां बरामद की गईं।

इस मामले में नोएडा, दिल्ली और कोलकाता में भी छापेमारी की गई थी। कुल 16 करोड़ रुपए की दवाइयों के इस मामले की जांच एसओजी की अजमेर चौकी प्रभारी आरपीएस दिव्या मित्तल को सौंपी गई थी।

रिश्वत की मांग और ट्रैप फेल

हरिद्वार की एक दवा कंपनी के मालिक ने एसीबी में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में बताया गया कि केस से नाम हटवाने के लिए आरपीएस दिव्या मित्तल ने एक बर्खास्त कॉन्स्टेबल के जरिए 2 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी।

आरोप था कि कॉन्स्टेबल से 50 लाख रुपए में सौदा तय हुआ था। पहली किस्त के 25 लाख रुपए कॉन्स्टेबल को देने गया, लेकिन एसीबी का ट्रैप फेल हो गया।

इस मामले से जुड़े एक रिसॉर्ट पर भी उदयपुर में कार्रवाई की गई थी। बताया गया था कि यह रिसॉर्ट दिव्या मित्तल का था।

दिव्या मित्तल के एसीबी पर आरोप

एसीबी ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17ए के तहत स्वीकृति के बिना ही 16 जनवरी 2023 को एसओजी की तत्कालीन एएसपी दिव्या मित्तल को रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।

जमानत मिलने के बाद एसीबी ने आरपीएस दिव्या मित्तल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का एक और केस दर्ज किया था। इस संबंध में दिव्या मित्तल ने सरकार के समक्ष आरोप लगाया कि एसीबी ने मनगढ़ंत साक्ष्य बनाकर कार्रवाई की है।

मुकदमे की इजाजत मांगने और मिलने का प्रोसेस

किसी भी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए एक तय प्रक्रिया का पालन करना होता है। इसमें कई चरण शामिल होते हैं।

  • सबसे पहले संबंधित मामले में एसीबी द्वारा एक एफआईआर दर्ज की जाती है।
  • उसके बाद जिस भी अधिकारी को पकड़ा जाता है, उससे पूछताछ की जाती है और उसे कोर्ट में पेश किया जाता है।
  • कोर्ट उसे रिमांड पर देने, जमानत देने या जेल भेजने का निर्णय करता है।
  • जब एसीबी आरोपों को प्रमाणित कर चालान पेश करने की तैयारी करती है, तो उसे सरकार से अभियोजन स्वीकृति (मुकदमा चलाने की इजाजत) मांगनी पड़ती है।
  • अभियोजन स्वीकृति देना या नहीं देना नियोक्ता (जो भी सरकार हो) का विवेकाधिकार होता है।
  • सरकार के लिए यह स्वीकृति कितने दिनों में दी जाए, इसकी कानूनन कोई समय सीमा तय नहीं है।
  • हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक मामले में फैसले के अनुसार, सरकार को 3 महीने में यह स्वीकृति देनी होती है।
  • उसी आदेश में यह भी छूट है कि विशेष परिस्थिति में सरकार तीन महीने से अधिक का समय भी ले सकती है।