भाजपा के साथ आएँगे बेनीवाल : भाजपा की नई सोशल इंजीनियरिंग, ब्राह्मण - राजपूत को साथ लेकर कमल खिलाने की कोशिश, पूनिया की कमी पूरी करेंगे बेनीवाल

इन दिनों राजस्थान भाजपा में बड़े संगठनात्मक बदलावों के साथ ही एक नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार हो रही है जिसमे भाजपा की ब्राह्मण और राजपूतों को साथ लेकर कमल खिलाने की कोशिश है.ऐसे में सवाल है जाट समाज को साधने के लिए भाजपा का अगला दांव क्या होने वाला है.

rajendra rathore and cp joshi

 दिनों राजस्थान भाजपा में बड़े संगठनात्मक बदलावों के साथ ही एक नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार हो रही है जिसमे भाजपा की ब्राह्मण और राजपूतों को साथ लेकर कमल खिलाने की कोशिश है.ऐसे में सवाल है जाट समाज को साधने के लिए भाजपा का अगला दांव क्या होने वाला है. 


सीपी जोशी की प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद भाजपा ने ब्राह्मण वर्ग में ना केवल बड़ा मेसेज दिया है बल्कि आने वाले चुनाव के लिए एक बड़ा सियासी दांव भी  फेंक दिया है. हालाँकि भाजपा से नाराज चल रहे बड़े ब्राह्मण चेहरे घनश्याम तिवाड़ी को मनाकर राजयसभा भेजकर भी भाजपा ने ब्राह्मण वर्ग को साधने का एक बड़ा सियासी दांव चला था लेकिन अब सीपी जोशी को अध्यक्ष बनाकर पूरे राजस्थान के ब्राह्मण वर्ग को खुश कर दिया है. 

अरुण चतुर्वेदी इन दिनों फ्रंट पर खेल रहे है 

सीपी जोशी के अध्यक्ष पद ताजपोशी के बाद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ख़ास सक्रिय देखे गए है. सतीश पूनिया के कार्यकाल में हासिये पर रहे चतुर्वेदी ना केवल अब पार्टी के कार्यक्रम में जाने लगे है बल्कि नए प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से उनकी नजदिकियों की भी खास चर्चा है.

ऐसे में अब चर्चा है कि सीपी जोशी के कमान संभालते ही एक ओर ब्राह्मण फेस अरुण चतुर्वेदी फिर से प्रदेश भाजपा की मुख्यधारा में आ चुके है और आने वाले चुनाव में ब्राह्मण वोटबैंक को साधने के लिए चतुर्वेदी को भाजपा कोई बड़ी भूमिका दे सकती है. 

बीते चुनाव में भाजपा से नाराज रहा राजपूत समाज 

राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव को देखे तो राजपूत समाज के समाजिक नेताओं ने वसुंधरा राजे की खुली खिलाफत की थी. लिहाजा भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.कांग्रेस सत्ता में लौटी तो अशोक गहलोत की सरकार में धर्मेन्द्र राठौड़ जैसे क्षत्रप उभरे और राजपूत समाज का एक वर्ग कांग्रेस से भी जुड़ाव महसूस करने लगा. ऐसे में पिछले चुनाव से ही भाजपा से नाराज राजपूत समाज को साधने की कोशिशे अब तेज हो गई है.

क्या राठौड़ के बहाने साथ आएँगे राजपूत 

पिछले चुनाव से ठीक पहले केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के भाजपा अध्यक्ष पद पर जिस तरह से उनकी नियुक्ति अटकी उस विवाद पर भी राजपूत समाज की भाजपा से अदावत रही और उसके बाद लगातार भाजपा संगठन में किसी भी राजपूत को कोई बड़ा पद नहीं दिया गया.हालाँकि प्रदेश भाजपा प्रभारी अरुण सिंह राजपूत तबके से ही आते है लेकिन मूलत राजस्थान का नहीं होने के कारण राजस्थान का राजपूत उनसे जुड़ाव महसूस नहीं करता. 

.ऐसे में राजेन्द्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा राजपूतों की नाराजगी दूर कर सकती है. राजेन्द्र राठौड़ के एक सीनियर नेता होने के साथ ही राजपूत समाज ना केवल उनसे जुड़ाव महसूस करता है बल्कि उन्हें सीएम फेस के तौर पर भी देखता है. इस बात को ध्यान में रखकर अगर राजेन्द्र राठौड़ को आने वाले चुनाव में एक बड़ी भूमिका दी जाती है तो राठौड़ का लम्बा राजनीतिक अनुभव, राजपूत समाज पर पकड़ और जोड़ तोड़ की गहरी समझ आने वाले चुनाव में भाजपा के लिए ना केवल फायदेमंद साबित हो सकती है बल्कि राजपूतों की नाराजगी को भी दूर किया जा सकता है. 

पूनिया की भरपाई करेंगे हनुमान बेनीवाल 

भाजपा में इन बड़े बदलावों के साथ ही सतीश पूनिया की भूमिका को लेकर भी चर्चा तेज हो चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष पद से पूनिया की विदाई और उसके बाद जाट समाज में पनपे असंतोष को शांत करने के लिए भी भाजपा ने कोशिश तेज कर दी है. खबर है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राजेन्द्र राठौड़ आज दिल्ली गए है जहां उन्होंने लोकभाभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से मुलाक़ात की .

खास बात यह रही कि इस मुलाक़ात में हनुमान बेनीवाल भी शामिल रहे. बेनीवाल के इस बैठक में शामिल होने के बाद एक नए समीकरण की चर्चा तेज हो गई है. जिस तरह पिछले चुनाव में बेनीवाल ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और काफी सीटों के नतीजों को प्रभावित किया उसके बाद भाजपा बेनीवाल को आने वाले विधानसभा चुनावो में भी साथ लेकर चलना चाहती है. 

 ऐसे में संभावना है कि जल्द ही भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच कोई नया गठबंधन नजर आए. अगर हनुमान बेनीवाल भाजपा के साथ समझौता करते है तो यकीनन सतीश पूनिया की भूमिका बहुत कम रहने वाली है . क्योकि हनुमान बेनीवाल ना केवल जाट समाज में लोकप्रिय है बल्कि एक बड़े वोटबैंक पर भी प्रभाव रखते है.