Rajasthan: राजस्थान में शॉर्ट-टर्म खनन पर रोक: हाईकोर्ट का अवैध खनन पर सख्त रुख

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने पूरे प्रदेश में 'शॉर्ट टर्म परमिट' (Short Term Permit - STP) के आधार पर चल रही खनन गतिविधियों पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि अवैध खनन होने पर माइनिंग इंजीनियर (Mining Engineer) व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे और पुलिस (Police) तत्काल ऐसी खदानों को सीज करे।

अवैध खनन पर हाईकोर्ट का सख्त आदेश

जोधपुर:राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने पूरे प्रदेश में 'शॉर्ट टर्म परमिट' (Short Term Permit - STP) के आधार पर चल रही खनन गतिविधियों पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि अवैध खनन होने पर माइनिंग इंजीनियर (Mining Engineer) व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे और पुलिस (Police) तत्काल ऐसी खदानों को सीज करे।

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में बेरोकटोक चल रहे अवैध खनन पर लगाम कसने के लिए एक महत्वपूर्ण और सख्त कदम उठाया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस बलजिंदर सिंह संधू की खंडपीठ ने यह आदेश जारी किए हैं, जिससे राज्य की खनन गतिविधियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह निर्णय अवैध खनन की बढ़ती समस्या को गंभीरता से लेने का संकेत है।

शॉर्ट-टर्म परमिट पर तत्काल प्रतिबंध

अदालत ने पूरे राजस्थान राज्य में 'शॉर्ट टर्म परमिट' (एसटीपी) के आधार पर संचालित हो रही सभी खनन गतिविधियों पर अगली सुनवाई तक पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह फैसला अवैध खनन की बढ़ती चुनौती और खनन विभाग द्वारा इस पर प्रभावी नियंत्रण न कर पाने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कोर्ट ने परमिट की अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन जारी रहने को चिंताजनक बताया है।

खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि परमिट की मियाद खत्म होने के बाद भी कहीं अवैध खनन जारी रहता है, तो संबंधित माइनिंग इंजीनियर को व्यक्तिगत रूप से इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह कड़ा निर्देश खनन विभाग के अधिकारियों पर जवाबदेही तय करने और उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा।

पुलिस प्रशासन को भी इस आदेश के तहत सख्त निर्देश दिए गए हैं। यदि कोई शॉर्ट टर्म परमिट के तहत खनन करता पाया जाता है, या परमिट की अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन जारी रखता है, तो पुलिस को ऐसी खदानों को बिना किसी देरी के तुरंत जब्त करने का अधिकार होगा। इसके बाद, खनन विभाग को इन सीज की गई खदानों का प्रभार संभालना होगा ताकि किसी भी प्रकार के अवैध खनन को पूरी तरह से रोका जा सके।

फलोदी के आमला गांव की जनहित याचिका

यह महत्वपूर्ण आदेश फलोदी जिले की लोहावट तहसील के गांव आमला की आम जनता द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया। याचिकाकर्ताओं में मूलाराम, हीराराम और रायमल सिंह जैसे स्थानीय निवासी शामिल हैं, जिन्होंने अपने गांव में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाई थी।

याचिकाकर्ताओं ने मैसर्स मांगीलाल मागाराम और विक्रमादित्य सिंह नामक कंपनियों द्वारा किए जा रहे खनन को चुनौती दी थी। उनका आरोप था कि ये कंपनियां नियमों का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर अवैध खनन गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं।

इस मामले में राज्य सरकार के राजस्व विभाग सचिव, खान एवं पेट्रोलियम विभाग सचिव, माइन्स एंड जियोलॉजी निदेशक (उदयपुर), फलोदी कलेक्टर, जोधपुर सर्कल के सुपरिंटेंडिंग माइनिंग इंजीनियर और बालेसर के असिस्टेंट माइनिंग इंजीनियर सहित कई महत्वपूर्ण अधिकारियों और कंपनियों को प्रतिवादी बनाया गया था।

खनन विभाग की विफलता पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता जी.आर. पूनिया और संजय रेवर ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार द्वारा विभिन्न कंपनियों को खनन के लिए शॉर्ट टर्म परमिट जारी किए जाते हैं। हालांकि, इन कंपनियों द्वारा अक्सर परमिट की अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन गतिविधियां जारी रखी जाती हैं।

वकीलों ने तर्क दिया कि खनन विभाग का ऐसी गतिविधियों पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य भर में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह स्थिति न केवल पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है, बल्कि राज्य के राजस्व को भी भारी नुकसान पहुंचा रही है।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन तर्कों से सहमति जताई और पाया कि खनन विभाग का ऐसी गतिविधियों पर वास्तव में कोई नियंत्रण नहीं है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा: "अवैध खनन बड़े पैमाने पर हो रहा है। शॉर्ट टर्म परमिट देने की प्रक्रिया प्रथम दृष्टया (Prima facie) गलत पाई गई है, जिससे अवैध खनन की स्थिति पैदा हो रही है।" यह टिप्पणी विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाती है।

आदेश का व्यापक प्रभाव और विस्तृत निर्देश

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह महत्वपूर्ण आदेश केवल फलोदी जिले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे राजस्थान राज्य के लिए लागू होगा। यह एक व्यापक निर्देश है जिसका उद्देश्य राज्य भर में अवैध खनन पर प्रभावी ढंग से रोक लगाना और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करना है।

कोर्ट द्वारा दिए गए प्रमुख निर्देश:

  • तत्काल रोक: राज्य सरकार द्वारा दिए गए सभी शॉर्ट टर्म परमिट (एसटीपी) पर अगली सुनवाई तक पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
  • पुलिस की सक्रिय भूमिका: यदि कोई व्यक्ति या संस्था शॉर्ट टर्म परमिट की आड़ में या उसकी अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन करता पाया जाता है, तो संबंधित पुलिस अधिकारी बिना किसी देरी के ऐसी खदानों को तुरंत सीज करेंगे।
  • खनन विभाग का नियंत्रण: खनन विभाग को ऐसी सीज की गई खदानों को अपने कब्जे में लेने का निर्देश दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अवैध खनन किसी भी परिस्थिति में जारी न रह सके।
  • अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी: यदि अवैध खनन होता है, या ऐसी गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो संबंधित खनन अभियंता इसके लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।

कोर्ट ने माइनिंग इंजीनियर को यह भी निर्देश दिया है कि वह अदालत को पिछले एक साल में कंपनियों को दिए गए शॉर्ट टर्म परमिट के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करे। साथ ही, यह भी बताए कि क्या इन कंपनियों ने अपनी परमिट अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन गतिविधियां जारी रखी थीं। विभाग को अगली सुनवाई तक यह विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करनी होगी।

राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता महावीर बिश्नोई ने कोर्ट का नोटिस स्वीकार किया और अदालत ने उन्हें अगली सुनवाई की तारीख से पहले अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस महत्वपूर्ण मामले में अगली सुनवाई 10 दिसंबर 2025 को निर्धारित की गई है।