Karnataka Election 2023: कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत समाज का है दबदबा, जानें कौन हैं लिंगायत धर्म के प्रणेता ’बासवन्ना’ ? 

’Karnataka Election 2023: बासवन्ना’ कर्नाटक में लिंगायत धर्म के प्रणेता हैं। एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले बासव ने हिंदू धर्म से अच्छी बातें लेकर एक नए संप्रदाय की स्थापना की। जिसे लिंगायत संप्रदाय के नाम से जाना गया।

Basavanna Statue Karnataka

बैंगलोर | Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनावों में एक और नया मोड देखने को मिल रहा है। जिसके चलते सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल कुछ बढ़ गई है। 

यहां चुनावों से पहले वीरशैव लिंगायत फोरम ने एक घोषणा पत्र जारी करते हुए कांग्रेस पार्टी को समर्थन का ऐलान कर दिया है। 

वीरशैव और लिंगायत में दिखता है विरोधाभास

दरअसल, ये देखा गया है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं, लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते है। उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना से भी पहले से था।

वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। बासवन्ना ने अपने प्रवचनों के सहारे जो समाजिक मूल्य दिए, कालांतर में वे बदल गए। हिंदू धर्म की जिस जाति-व्यवस्था का विरोध किया गया, वो लिंगायत समाज में ही आ गया।

कौन हैं  ’बासवन्ना’ ? 

’बासवन्ना’ कर्नाटक में लिंगायत धर्म के प्रणेता हैं। एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले बासव ने हिंदू धर्म से अच्छी बातें लेकर एक नए संप्रदाय की स्थापना की। जिसे लिंगायत संप्रदाय के नाम से जाना गया।

बासवन्ना का जन्म कर्नाटक के बागेवाड़ी जिले में हुआ था। उनके माता-पिता मदारास और मदलाम्बे थे। 

बासवान्ना का जन्म सन 1131 में कार्तिक शुद्ध पूर्णिमा के दिन आधी रात को हुआ था। जन्म के बाद वह नवजात शिशु ना तो रोया, ना ही हिला-डुला। जिसके चलते माता-पिता घबरा गए।

उसी समय वहां ईश्नाया गुरु नाम के संत आए। उन्होंने तुरंत उस बच्चे को गोद में उठाया और उसके कानों में पंचाक्षरी मंत्र पढ़ा और बोले, ’आओ बासव, आ जाओ’।

बस फिर क्या था... बच्चे में जान आ गई और बच्चा हिलने-डुलने लगा। उसी दिन से उस बच्चे का नाम बासव पड़ गया जिसे भक्त बासवन्ना कहने लगे।

इसी बालक ने 10 साल गुरूकुल में रहकर कर्म-कांड, धर्म, वेद, उपनिषद और ग्रंथों की शिक्षा ली, लेकिन हिंदू धर्म के लोगों में  अन्धविश्वास, बलि और बहुत सी बुराइयों को देखकर बासव को बहुत दुख हुआ और नए संप्रदाय की स्थापना की। 

इसी संप्रदाय के लोगों का भी कर्नाटक की राजनीति में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। ये संप्रदाय चुनावों का रूख किसी भी पार्टी की ओर मोड़ने में सक्षम माना जाता है।